क्या 60 साल बाद लोग नहीं खा पाएंगे रोटियां?

हालात तो कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. प्रदूषण की समस्या ये संकेत दे रही है कि आने वाले समय में स्थिति बेकाबू हो सकती है हैं. बढ़ते कार्बनडाइआक्साइड स्तर के कारण साठ साल बाद  वाकई ये स्थिति आ सकती है कि लोगों को खाने के लिए रोटियां ही नहीं मिलेंगी. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 23, 2020, 12:44 PM IST
    • वर्ष 2080 में हम नहीं खा पाएंगे रोटियां
    • वजह है ग्लोबल वार्मिंग
    • शोध से मिली जानकारी
    • गेंहू में ग्लूटेनिन में कमी से होगा ऐसा
    • तब आटे गूंथना मुमकिन होगा
क्या 60 साल बाद लोग नहीं खा पाएंगे रोटियां?

नई दिल्ली.  इसकी जानकारी बिलकुल नहीं है कि स्थिति के नियंत्रण की दिशा में क्या किया जा रहा है. लेकिन ये अब ये अवश्य पता चल गया है कि साठ साल बाद रोटियां म्यूज़ियम में देखी जाएंगी क्योंकि रोटियां खाई नहीं जा सकेंगी क्योंकि रोटियां बनाई ही नहीं जा पाएंगी.

 

 वजह है ग्लोबल वार्मिंग 

ये है ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम जिसके कारण वातावरण में प्रदूषण अपना रौद्र रूप दिखायेगा. ग्लोबल वार्मिंग के कारण हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में बढ़ोत्तरी हो जायेगी और फिर हालत इतनी बिगड़ जायेगी कि गेहूं से चपातियां बनाना एक बीते दिनों की याद बन जाएगा.

शोध से मिली जानकारी 

प्रदूषण पर किये जा रहे एक शोध से ये जानकारी सामने आई है, शोध के अनुसार विगत 10 सालों में हवा में कार्बन डाई ऑक्साईड यानी सीओटू की मात्रा में हर साल में 1.पीपीएम की बढ़ोत्तरी होती जा रही है. यदि इस क्रम को रोका न गया और यह ऐसे ही चलता रहा तो आगामी 60 सालों में सीओटू की मात्रा और विकराल हो जाएगी जिसका प्रभाव दानों में जमा होने वाले प्रोटीन और स्टार्च पर पड़ेगा.

क्या होगा इसका परिणाम 

 कार्बन डाई ऑक्साइड की अधिकता गेहूं के भीतर स्टार्च को बढ़ाएगा और प्रोटीन पर इसका बुरा असर दिखाई देने लगेगा. गेहूं में ग्लूटेनिन नामक एक प्रोटीन होता है जो कि अपने चिपचिपेपन के गुण के कारण आटा गूंथना सम्भव करता है. अगर ग्लूटेनिन में कमी हुई तो आटे का चिपचिपापन खत्म हो जाएगा और तब आटा गूंथना मुमकिन न हो पायेगा. और तब रोटियां बनाना और रोटियां खाना  दोनों ही एक सपना बन जाएंगी. 

पर्यावरण वैज्ञानिकों का अनुमान 

पर्यावरण वैज्ञानिकों ने पर्यावरण में सीओटू एमिशन पर चिंता जाहिर करते हुए बताया कि इस वायु प्रदूषण का असर सीधे मिटटी पर पडेगा और तब गेहूं की गुणवत्ता में गिरावट आने लगेगी. गेहूं के दाने पतले हो जाएंगे और उनकी आंतरिक संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

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