Belt and Road Initiative: G-20 समिट में भारत की कूटनीति का बड़ा असर हुआ है. इटली ने चीन को इस बात के संकेत दे दिया है कि वो बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से बाहर निकल सकता है. अगर ऐसा हुआ तो ये जिनपिंग के लिए बड़ा झटका होगा.
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Italy To Leave BRI: जी-20 समिट (G-20 Summit) चीन (China) के लिए दोहरा झटका लेकर आई है. जहां एक ओर भारत-मिडिल-ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (India Middle East Europe Economic Corridor) पर ऐतिहासिक समझौता हुआ. वहीं, G20 के सदस्य देश इटली (Italy) की पीएम जॉर्जिया मेलोनी ने चीन के पीएम ली कियांग को ये साफ-साफ बता दिया है कि उनका देश चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से बाहर निकल सकता है. हालांकि, मेलोनी ने चीन के पीएम को ये बताया कि इसपर अभी फैसला लिया जाना है. इटली और चीन के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात जी20 सम्मेलन के इतर हुई थी. जॉर्जिया मेलोनी हालांकि ये जरूर कह रही है कि बीआरआई छोड़ने से इटली-चीन के संबधों पर असर नहीं होगा. जान लें कि इटली G7 का एकमात्र ऐसा सदस्य देश है जिसने बीआरआई का हिस्सा बनने का फैसला किया था. इटली ने चीन में BRI को लेकर 2019 में समझौता किया था. पर इटली ऐसा क्यों कर रहा है ये जानना भी दिलचस्प है.
निकल जाएगी चीन के BRI की हवा
बता दें कि चीन अपने दो बड़े प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के जरिए दुनिया में अपनी धाक जमाना चाहता है. लेकिन भारत, यूरोप और मिडिल ईस्ट देशों के बीच इकॉनमिक कॉरिडोर पर बनी सहमति को चीन के इन्हीं दो प्रोजेक्ट्स का जवाब माना जा रहा है. क्योंकि G20 सम्मेलन में भारत का दम देखकर चीन चिढ़ गया है. समिट में भारत, मिडिल ईस्ट और यूरोप के बीच इकोनॉमिक कॉरिडोर शुरू करने को लेकर सहमति बनी. जिस पर चीन ने गीदड़भभकी देते हुए कहा है कि उसे अलग-थलग करने का लक्ष्य पूरा नहीं होगा.
चीन ने दी गीदड़भभकी
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में इकोनॉमिक कॉरिडोर पर चीनी विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी है, जिसमें कहा गया है कि आर्थिक गलियारा सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाएगा और मिडिल ईस्ट में चीन को अलग-थलग करने की अमेरिका की चाल कामयाब नहीं होगी. चीनी विशेषज्ञों ने ग्लोबल टाइम्स में लिखा कि ये पहली बार नहीं है कि अमेरिका ने बहुत कुछ कहा और बहुत कम किया. भारत, यूरोप और मिडिल ईस्ट देशों के बीच एक बहुराष्ट्रीय रेल और बंदरगाह सौदे की घोषणा चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का जवाब माना जा रहा और यही वजह की चीन पूरी तरह चिढ़ गया है.
चीन की नीयत में है खोट
मुख्य बात ये है कि चीन की नीयत पर किसी को विश्वास नहीं है. चीन किस तरह दूसरे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाता है ये किसी से छिपा नहीं है. श्रीलंका के साथ चीन पहले ही ऐसा कर चुका है. चीन कर्ज जाल की नीति पर काम करते हुए पहले किसी देश को जरूरत से ज्यादा कर्ज देता है और जब वह देश कर्ज चुका नहीं पाता है तो वह उसके संसाधनों पर कब्जा कर लेता है. यही वजह है कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से तमाम देश जुड़े तो जरूर लेकिन उनके मन में चीन लेकर शंका जरूर बनी रही. चीन विश्वासपात्र नहीं है, ये जगजाहिर है. जब इटली को दिखा कि चीन के बीआरआई के जवाब में भारत समेत बाकी देश यूरोप तक आर्थिक गलियारा बना रहे हैं तो इटली ने चीन के बीआरआई से हटने का मन बना लिया. चीन सिल्क रोड की तर्ज पर अफ्रीका-यूरोप तक आर्थिक गलियारा बनाना चाहता है. जो आगे चलकर फुस्स साबित हो सकता है.
भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे का मकसद
भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे का उद्देश्य मध्य पूर्व के देशों को रेलवे से जोड़ना और उन्हें बंदरगाह के माध्यम से भारत से जोड़ना है. इकोनॉमिक कॉरिडोर बनने से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बड़ा फायदा होने वाला है. इससे शिपिंग समय, लागत में कटौती होगी. कॉरिडोर में रेलवे, शिपिंग नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे. रेल एंड शिपिंग कॉरिडोर देशों को ऊर्जा उत्पादों समेत ज्यादा व्यापार के लिए सक्षम बनाएगा. कॉरिडोर की वजह से ग्लोबल साउथ में कनेक्टिविटी गैप खत्म होगा और मिडिल ईस्ट, भारत और यूरोप एक साथ जुड़ेंगे.