नई दिल्ली: एक कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. जरूरत पड़ने पर लोग किसी पर भी भरोसा कर लेते हैं और कूटनीति में कुछ भी असंभव नहीं है. ये जिक्र यहां इसलिए क्योंकि अफगानिस्तान में पाकिस्तान के दखल और दिलचस्पी की कहानी नई नहीं है. इसी तरह चीन (China) की निगाह भी लंबे समय से अफगानिस्तान (Afghanistan) की जमीन पर रही है. पाकिस्तान-अफगानिस्तान-चीन के गठजोड़ की बुनियाद कई साल पहले किस तरह पड़ी थी?
बात कुछ दशक पुरानी है साल 2000 की सर्दियों के सीजन में, पाकिस्तान (Pakistan) में चीन (China) के राजदूत, लू शुलिन (Lu Shulin) ने तालिबान (Taliban) के संस्थापक मुल्ला उमर (Mullah Omar) से मुलाकात की थी. माना जाता है कि इसी दौरान चीन ने काबुल में अपनी आज की मौजूदा स्थिति की बुनियाद रख दी थी.
(नोट- सभी फोटो साभार: AFP)
हमारी सहयोगी वेबसाइड WION के मुताबिक साल 2000 की शुरुआत में ही चीन (China) ने अपने इरादे साफ कर दिए थे. उस दौरान चीनी अधिकारी ने खुलकर तालिबानी नेता से मुलाकात की जिसके बाद कम्युनिस्ट देश चीन ने अफगानिस्तान में गोपनीय युद्धाभ्यास किया था. हालिया अपडेट की बात करें तो चीन ने तालिबान की सरकार को खाद्य आपूर्ति में मदद के साथ कोरोना वायरस वैक्सीन मुहैया कराने के साथ 31 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद का वादा किया है. यानी इन तीन देशों की वर्तमान दोस्ती की पटकथा 20 साल पहले लिखी जा चुकी थी.
चीन ने अफगानिस्तान (Afghanistan) में अमेरिका (US) की मौजूदगी के दौरान भी अपनी रुचि बनाए रखी क्योंकि चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने उस दौर में भी काबुल का दौरा किया और वहां 'रचनात्मक' भूमिका निभाने और अफगान सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करने में मदद करने का वादा किया था.
चीन ने इससे पहले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में अफगानिस्तान को पर्यवेक्षक की भूमिका में आने का मौका दिया था. वहीं नवंबर 2000 में मुल्ला उमर की लू शुलिन के साथ हुई मीटिंग के दौरान, तालिबान नेता ने कथित तौर पर वादा किया था कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल चीन के खिलाफ गतिविधियों के लिए नहीं होने दिया जाएगा. अब साल 2021 में मौजूदा तालिबान नेतृत्व द्वारा दिए जा रहे बयान, उसी पुरानी दोस्ती से प्रेरित लग रहे हैं. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई (Hamid Karzai) खुद चीन (China) की यात्रा पर गए थे.
तालिबान (Taliban) ने अब अब खुलकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के प्रोजेक्ट में शामिल होने की इच्छा जताई है. इसके जरिये वो भविष्य में अपने देश के व्यापार जगत की राह आसान करना चाहता है.
परिस्थितियां और जरूरतें जो न कराए वो कम है. कुछ ऐसा ही अफगानिस्तान के साथ हुआ. अमेरिका (US) और पश्चिमी देशों के दबाव में तालिबान के नेता पाकिस्तान (Pakistan) के साथ अपने हित साधते नजर आए. इसके बाद जब इसी साल अगस्त में तालिबान ने पूरे देश में अपने शासन का ऐलान किया तो काबुल में पाकिस्तानी दखल और मंसूबों को खुलकर देखा गया.
दुनिया जानती है कि चीन ने 1980 के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) कब्जे के दौरान अफगान मुजाहिदीन और पाकिस्तान को सैन्य मदद दी थी. फिर साल 2002 में करजई की सरकार के गठन के बाद चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री यांग जिएची ने कहा था कि अफगानिस्तान के युद्ध के बाद शांति पुनर्निर्माण में, चीन एक सक्रिय समर्थक और प्रमोटर रहा है.
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