1940 के दशक की शुरुआत में लाहौर के एक कॉलेज में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के संरक्षक और पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत प्रकाश सिंह बादल के सहपाठी रहे व वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे शमशेर सिंह का कहना है कि वह अपने कॉलेज के दोस्त के गुजर जाने से दुखी हैं.
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Prakash Singh Badal: 1940 के दशक की शुरुआत में लाहौर के एक कॉलेज में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के संरक्षक और पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत प्रकाश सिंह बादल के सहपाठी रहे व वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे शमशेर सिंह का कहना है कि वह अपने कॉलेज के दोस्त के गुजर जाने से दुखी हैं. 1954 में वाशिंगटन डीसी आने वाले पहले भारतीयों में से एक 95 वर्षीय शमशेर सिंह कहते हैं, बादल और मैं लाहौर के सिख नेशनल कॉलेज में 1943 से 1945 तक सहपाठी रहे. वह पंजाब के मालवा क्षेत्र के उन छात्रों में से एक थे, जिन्होंने उस कॉलेज में पढ़ाई की.
उन्होंने कहा, बादल एक लंबा, सुंदर युवक था जो एक धनी जमींदार परिवार से आया था. हालांकि हम घनिष्ठ दोस्त नहीं थे, फिर भी मैं उसे बहुत अच्छी तरह से जानता था. उन्होंने कहा, कॉलेज में लगभग 560 छात्रों में से लगभग 500 छात्र कॉलेज के तीन छात्रावासों में रहते थे. बादल और मालवा क्षेत्र के उनके दोस्त एक साथ रहते थे और हम उन्हें फिरोजपुरिया कहते थे.
सिंह कहते हैं कि बादल और मालवा के छात्रों को उनके गांवों से लगातार देसी घी की आता रहता था. वह पंजाबी में कहते हैं, उन्हा दे घरान तोह देसी घी दे पिपय भर भर के औंदे आते बादल और उहदे दोस्त सारे तकदे जवानों से वे कहते हैं, लेकिन बादल पढ़ाई में बहुत औसत थे और उन्होंने ट्यूशन की बदौलत परीक्षा पास की. बादल प्रोफेसर अर्जुन सिंह से ट्यूशन लिया करते थे, जो हमें हमारे कॉलेज में केमिस्ट्री पढ़ाते थे.
उनका कहना है कि बादल ने 1945 में लाहौर के फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज में शामिल होने के लिए सिख नेशनल कॉलेज छोड़ दिया था. एक बार जब उन्होंने हमारे कॉलेज को छोड़ दिया, तो मेरा उनसे बहुत कम संपर्क था, क्योंकि बादल लाहौर की सिख छात्र राजनीति में सक्रिय नहीं थे, सिंह कहते हैं, जो 1947 के बाद दिल्ली चले गए.
वह कहते हैं कि बादल को 1950 के दशक की शुरुआत में सिख दिग्गज ज्ञानी करतार सिंह द्वारा राजनीति में लाया गया था, जो विभाजन के समय अकाली दल के अध्यक्ष थे और बाद में पंजाब के राजस्व मंत्री थे. मैं ज्ञानी करतार सिंह को बहुत अच्छी तरह से जानता था कि उन्होंने बादल को कैसे सलाह दी. जब संत फतेह सिंह ने अकाली नेता के रूप में मास्टर तारा सिंह की जगह ली, तो उन्होंने बादल को बढ़ावा दिया.
उनका कहना है कि बादल की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि उन्होंने हर तरह के नेताओं और लोगों से संबंध बनाए. शमशेर सिंह कहते हैं, आखिरी बार मैं उनसे 1999 में चंडीगढ़ में मिला था, जब उन्होंने लाहौर के नेशनल सिख कॉलेज के बारे में मेरी किताब 'अनब्लॉसमड बड' का विमोचन किया था. शमशेर अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिश की मां श्यामला गोपालन के भी मित्र थे. वह कहते हैं, मैं श्यामला को बहुत अच्छी तरह जानता था. वह वह 1861 में वह बर्कले आई थी, तब वह सिर्फ 18 साल की थी.