Why did SUPARCO fail: 1947 के बंटवारे के बाद भारत विकसित देश बनने के करीब है. विकास यात्रा की गौरवगाथा में भारत, चांद पर पहुंच चुका है. वहीं पाकिस्तान स्पेस सेक्टर में जीरो बटा सन्नाटा है. मगर ये बात जानकर आपको हैरानी होगी कि कभी पाकिस्तान, स्पेस रिसर्च में भारत से आगे था.
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Why is Pakistan lagging behind in space exploration: भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र (Space Sector) का नया सिरमौर बन गया है. चंद्रयान-3 की कामयाबी की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे से दिल्ली न आकर सीधे इसरो के वैज्ञानिकों से मिलने बेंगलुरू (PM Modi ISRO Visit) पहुंच जाते हैं. 140 करोड़ हिंदुस्तानी चांद पर विजय की गौरव गाथा गा रहे हैं. भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा की दुनिया कायल है. आज अमेरिका, रूस, जापान समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक भारत के साथ जुड़कर गर्व महसूस करते हैं. लेकिन भारत का पड़ोसी पाकिस्तान स्पेस सेक्टर में फिसड्डी साबित हुआ है.
'भारत चांद पर पाकिस्तान शून्य पर'
भारत के चंद्रयान 3 का लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं. पाकिस्तान की तुलना में भारत स्पेस रिसर्च सेक्टर में काफी आगे निकल गया है. मगर यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि एक वक्त ऐसा भी था जब पाकिस्तान स्पेस रिसर्च में भारत से काफी आगे था. आज पूरी दुनिया में भारतीय स्पेस एजेंसी यानी इसरो (ISRO) का डंका बज रहा है. लेकिन पाकिस्तानी स्पेस एजेंसी कहां और किस हाल में है कोई नहीं जानता. क्योंकि जब पाकिस्तान की सर्वेसर्वा और सर्वशक्तिमान फौज के पास युद्धाभ्यास करने के लिए डीजल-पेट्रोल नहीं है तो स्पेस एजेंसी की हालत समझना कोई मुश्किल काम नहीं है.
भारत से 8 साल पहले शुरू किया स्पेस रिसर्च
1961 में जब करिश्माई नेता जॉन एफ कैनेडी ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया. उसी दौर में तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) ने पहले व्यक्ति को अंतरिक्ष में भेजा. ठीक उसी समय पाकिस्तान में भी कुछ उतना ही महत्वपूर्ण घटनाक्रम घट रहा था. जहां विश्व स्तर पर प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी अब्दुस सलाम राष्ट्रपति अयूब खान को एक राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी स्थापित करने के लिए मना चुके थे. उसी साल सितंबर में सलाम ने अंतरिक्ष और एनवायरमेंट रिसर्च कमीशन आयोग (SUPARCO) की स्थापना की थी. जिसका मुख्यालय कराची में है. यानी भारत द्वारा अपनी स्वयं की अंतरिक्ष एजेंसी को औपचारिक रूप देने से पूरे आठ साल पहले पाकिस्तान में स्पेस सेक्टर की रूप रेखा तय हो चुकी थी.
1962 में पहला रॉकेट लॉन्च
पाकिस्तानी एजेंसी के शुरुआती कुछ साल बेहद आशा से भरे रहे. वहां के चार शीर्ष वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का काम सीखने समझने के लिए नासा (NASA) भेजा जाता है. उस समय अब्दुस सलाम के 1979 में भौतिकी नोबेल पुरस्कार जीतने तक की बातें कही जा रही थीं. 1962 में, पाकिस्तानी एजेंसी सुपारको ने नासा की मदद से कराची तट से अपना पहला रॉकेट, रहबर को लॉन्च कर दिया था. पाकिस्तान ने ये कामयाबी भारत के पहले रॉकेट के थुम्बा लॉन्चिंग स्टेशन से लॉन्च होने से एक साल पहले हासिल की थी. इसके बाद पाकिस्तान, इजरायल और जापान के बाद रॉकेट लॉन्च करने वाला तीसरा एशियाई देश बन गया था.
सेना ने किया सत्यानाश? 1970 के दशक से बेड़ा गर्ग होने की शुरुआत
स्पेस रिसर्च में पाकिस्तान एशिया का तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा. मगर धीरे धीरे पाकिस्तान के स्पेस प्रोजेक्ट को वहां के सैन्य तंत्र ने हथिया कर उसका सत्यानाश कर दिया. उस दौर में पाकिस्तान की अमेरिका से गहरी नजदीकी थी. जिसका फायदा उसे स्पेस सेक्टर में मिला. पाकिस्तान ने पहला रॉकेट अमेरिकी मदद से बनाया था. अगले 10 साल तक पाकिस्तानी स्पेस एजेंसी सुपारको ने कई रॉकेट लॉन्च किए और अमेरिका और चीन की मदद से कुछ प्रोजेक्ट चलाए, लेकिन 1970 के दशक में उसके स्पेस प्रोग्राम की रफ्तार सुस्त पड़ने लगी.
कैसे पिछड़ गई पाकिस्तानी स्पेस एजेंसी?
1978 में जुल्फिकार अली भुट्टो की मौत के बाद जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति का पद संभालते ही पाकिस्तान में सैन्य तंत्र मजबूत होने लगा. उस समय पाकिस्तान अपनी स्पेस एजेंसी का इस्तेमाल हथियारों को उन्नत करने के लिए करने लगा. जनरल जिया के राज में पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम को दिशाहीन और धराशायी कर दिया गया. इस वजह से पाकिस्तानी स्पेस एजेंसी 'सुपारको' भारत की स्पेस एजेंसी 'इसरो' से दशकों पीछे चली गई. वो इतना पिछड़ गई कि आज तक उबर नहीं पाई है.