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अंटार्कटिका में बर्फ के नीचे सोये हुए हैं सैकड़ों ज्वालामुखी, कभी जाग पड़े तो क्या होगा

अंटार्कटिका को बाकी दुनिया बर्फ में दबे एकांत महाद्वीप के रूप में जानती है. लेकिन यह बात पूरी तरह सच नहीं. बाकी भूभाग की तरह, अंटार्कटिका के नीचे भी जमीन धधक रही है. अंटार्कटिका में बर्फ की मोदी चादर के नीचे सैकड़ों ज्वालामुखी मौजूद हैं. यहां पर मौजूद बर्फ की पश्चिमी परत को दुनिया का सबसे बड़ा ज्वालामुखी क्षेत्र माना जाता है. वहां कम से कम 138 ज्वालामुखी मौजूद हैं. इनमें से 91 की खोज पहली बार 2017 में छपी एक स्टडी में की गई थी. क्या अंटार्कटिका में मौजूद ज्वालामुखियों में कभी विस्फोट हो सकता है? जियोलॉजिस्‍ट्स की मानें तो यह ज्वालामुखी पर निर्भर करता है. 2017 वाली स्‍टडी में रिसर्चर्स ने कहा था कि तमाम ज्वालामुखी बेहद नौजवान हैं. वैज्ञानिक यह पता नहीं लगा पाए थे कि वे ज्वालामुखी के लिहाज से सक्रिय हैं या नहीं. अभी अंटार्कटिका के केवल दो ज्वालामुखियों को सक्रिय माना जाता है- डिसेप्‍शन आइलैंड और माउंट एरेबस. (All Photos : NASA)

माउंट एरेबस

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माउंट एरेबस

माउंट एरेबस, अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी है. इसका शिखर 12,448 फीट पर है. माउंट एरेबस को दुनिया का सबसे दक्षिणी सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है. यह 1972 से लगातार लावा उगल रहा है. माउंट एरेबस से गैस और भाप का गुबार निकलता है और कभी-कभी पत्थर भी. यहां की सबसे दिलचस्प बात लावा की वो झील है जो शीर्ष में क्रेटर पर कब्जा जमाए है, उसकी सतह पर पिघला हुआ लावा है.

डिसेप्‍शन आइलैंड

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डिसेप्‍शन आइलैंड

घोड़े की नाल जैसा दिखने वाला इस द्वीप में मौजूद ज्वालामुखी आखिरी बार 1970 में फूटा था. अभी इस आइलैंड को 'ग्रीन' कैटेगरी में रखा गया है मतलब यहां विस्‍फोट होने की संभावना नहीं है. 

अंटार्कटिका के फ्यूमरोल्स से निकलती हैं गैसें और भाप

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अंटार्कटिका के फ्यूमरोल्स से निकलती हैं गैसें और भाप

केवल दो सक्रिय ज्वालामुखी होने के बावजूद, अंटार्कटिका में तमाम ज्वालामुखीय छेद जिन्‍हें फ्यूमरोल्स कहते हैं, मौजूद हैं. ये हवा में गैसों और वाष्प को छोड़ते हैं. यदि परिस्थितियां सही हैं तो इन छेदों से निकलने वाला जमाव 10 फीट (3 मीटर) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है. इन्‍हें फ्यूमरोलिक बर्फ टावरों के नाम से जाना जाता है.

कौन सा ज्वालामुखी कब फट पड़े, कुछ कह नहीं सकते

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कौन सा ज्वालामुखी कब फट पड़े, कुछ कह नहीं सकते

वैज्ञानिक लगातार अंटार्कटिका के ज्वालामुखियों पर नजर रखते हैं. इसके बावजूद यह बता पाना मुश्‍किल है कि कौन सा ज्वालामुखी कब सक्रिय हो सकता है. बाकी जगह की तुलना में, अंटार्कटिका तक वैज्ञानिक उपकरण पहुंचा पाना कहीं ज्यादा मुश्किल है.

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