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बच्चों से हो जाए कितने भी फ्रेंडली, इस उम्र में टीचर्स और पैरेंट्स से छिपाने लगते हैं बातें, जानिए क्यों गुस्सा करना पड़ सकता है भारी

Children Keeping Secrets: बचपन बहुत ही मासूम होता है, तभी तो एक छोटा बच्चा अपने मन की कोई भी बात अपने बड़ों को बताने में जरा भी नहीं झिझकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, वे उन्हीं बातों को फिल्‍टर करके बताने लगते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ही बच्चों को यह एहसास होने लगता है कि उन्‍हें कौन सी और कितनी बात बतानी है और क्या छिपाना है. स्कूल में कई चीजें ऐसी होती है, जिसके कारण बच्चों में ये आदत आने लगती है.

कुछ चीजें पैरेंट्स से छिपाता है बच्‍चा

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कुछ चीजें पैरेंट्स से छिपाता है बच्‍चा

आप भले ही बच्‍चे के लिए बहुत फ्रेंडली पैरेंट बन जाएं, लेकिन बच्चे उम्र के साथ ऐसा करना सीख ही लेते हैं और इससे कहीं ना कहीं उन्‍हें कंफर्ट भी मिलता है. अगर आपका बच्चा भी बढ़ती उम्र के साथ इस चीज का शिकार हो रहा है तो संभल जाइए. उनकी आदतों पर गौर करें और अपने और बच्‍चे के बीच में सेफ्टी जोन बनाकर. यहां जानिए कुछ ऐसी टिप्स जो आपके लिए मददगार साबित होंगी. 

बच्‍चे को कड़े डिसिप्लिन में न रखें

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बच्‍चे को कड़े डिसिप्लिन में न रखें

अगर पेरेंट्स बच्‍चे को कड़े अनुशासन में रखते हैं तो वे टीनएज में पहुंतने तक मां-पापा से सीक्रेट रखना शुरू कर देते हैं. बच्चों पर नजर रखना न छोड़े, लेकिन उन्हें फ्री रखें. बहुत ज्‍यादा डिसिप्लिन में रखने से बच्चे घर वालों से बातें शेयर करने में हिचकने लगते हैं. धीरे-धीरे बच्चे आपसे कई सारे सीक्रेट रखने लगते हैं. 

कुछ न शेयर करने में फ्री महसूस करते हैं

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कुछ न शेयर करने में फ्री महसूस करते हैं

जब बच्चे आपसे चीजे छुपाने लगत हैं, तो उन्हें लगता है कि पेरेंट्स को कुछ पता नहीं और उन्हें गलत करने पर भी डांट नहीं पड़ती या सही-गलत के बारे में कोई बताने वाला नहीं रहता, क्योंकि घर वाले तो इस बात इनजान रहते हैं. फिर बच्चों को ये सबस अच्छा लगते लगता है. इससे बच्‍चों को छोटी उम्र में ही ये समझने लगता है कि उनकी जिंदगी में क्‍या पर्सनल है और कौन सी बातें को छिपाना चाहिए.

बच्‍चे परिवार से होने लगते हैं दूर

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बच्‍चे परिवार से होने लगते हैं दूर

बातें शेयर न करने या फिर उनमें फिल्टर लगाकर बताने की भी एक लिमिट होती है, लेकिन बढ़ते बच्चों को यह समझ कहां आता है. धीरे-धीरे अपने ही बहुत ज्‍यादा सीक्रेट्स के बोझ तले वे दबने लगते हैं और अपनों से दूर होने लगते हैं. इस तरह समय से पहले ही वे मैच्योर हो जाते हैं. धीरे-धीरे उनकी पर्सनल और इमोशनल अटैचमेंट खत्‍म होने लगती है और वो खुद में ही रहने लगते हैं.

बच्चों पर रखें नजर

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बच्चों पर रखें नजर

पेरेंट्स को बच्‍चों की हर एक एक्टिविटीज पर नजर रखनी चाहिए, लेकिन बात-बात में रोकटोक करना सही नहीं होगा. बच्‍चों पर अपने बात मनवाने या उनसे कुछभी जानने के लिए उन्हें इमोशनली फोर्स न करें. उन्हें इस तरह का माहौल दें कि वे खुद आकर आपसे अपनी बातें शेटर कर करें. ऐसा सीक्रेट जिससे नुकसान हो सकता है, उसके बारे में खुलकर बात करने के समझाएं. 

ऐसे निकलवाएं उनसे बातें

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ऐसे निकलवाएं उनसे बातें

अगर आप चाहते हैं कि उसकी टीनएजमें बच्‍चा आपसे दूर न हो,  आपसे कोई सीक्रेट ना रखे और कुछ गलत न कर बैठे तो थोड़ा धैर्य रखें. बच्‍चे को थोड़ा समय दें और कोई भी बात प्यार से पूछे न की बात-बात में डांटे या धमकाए. बच्‍चों से अपने लेवल की मैच्‍योरिटी की उम्‍मीद करना आगे चलकर उसके और आपके लिए गलत सबित हो सकता है.

पनिशमेंट से लगता है डर

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पनिशमेंट से लगता है डर

बच्‍चों को किसी भी तरह की सजा के नाम से ही डर लगता है. इसकी वजह से ही वे सीक्रेट रखना शुरू कर देते हैं, उन्हें सजा से बचने का ये सबसे सही तरीका लगता है.  ऐसे में बच्‍चे को भरोसा दिलाएं कि मन की बात कहने से उन्हें कोई पनिशमेंट नहीं मिलेगी, इससे वे अपनी बात कहेंने में हेजिटेट नहीं करेंगे और आपसे बात करने में कंफर्टेबल रहे. 

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