इन दिनों तिरुपति के लड्डू काफी चर्चा में हैं. तिरुपति लड्डुओं में एनिमल फैट के इस्तेमाल पर हुए खुलासे के बाद मंदिर की ऑथोरिटी पर सवाल उठने लगे हैं. गुजरात की एक लैब रिपोर्ट का हवाला देते हुए, आंध्र सरकार ने कहा कि तिरुपति के लड्डू में इस्तेमाल किए गए घी के नमूनों में गोमांस की चर्बी, मछली का तेल और चरबी के अंश पाए गए. इन सब के बीच आपको उस व्यक्ति का ख्याल जरूर आता होगा, जिसने तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर में लड्डू बांटने की प्रथा शुरू की. आइये आपको उस इंसान से मिलवाते हैं, जिसने इसकी शुरुआत की.
तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर एक हिंदू मंदिर है जो भारत के आंध्र प्रदेश के तिरुपति जिले के पहाड़ी शहर तिरुमला में स्थित है. तिरुपति मंदिर भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं और माना जाता है कि वे मानवता को कलियुग के कष्टों और क्लेशों से मुक्ति दिलाने के लिए धरती पर आए थे. हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि इसे कब बनाया गया, लेकिन कहा जाता है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था. ये भी कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था.
भगवान वेंकटेश्वर के प्रसाद के रूप में मिलने वाला तिरुपति लड्डू अपने अनोखे स्वाद और बनावट के लिए बहुत प्रसिद्ध है. लड्डू का यह प्रसाद पहली बार 300 साल पहले बनाया गया था. इसे भगवान वेंकटेश्वर के पहाड़ी मंदिर में मंदिर के अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया था. इंटरनेट पर जो जानकारी उपलब्ध है उसके के अनुसार, आज हम जो लड्डू देखते हैं, उसका वर्तमान स्वाद, आकार और स्वाद 1940 के आसपास मद्रास सरकार के अधीन लगभग छह अलग-अलग संशोधनों से गुजरने के बाद मिला. प्राचीन शिलालेखों के अनुसार, लड्डू का अस्तित्व 1480 से है, जब इसे पहली बार ठीक से दर्ज किया गया था. तब इसे 'मनोहरम' कहा जाता था.
अगर रिपोर्ट्स पर यकीन किया जाए तो माना जाता है कि लड्डू प्रसादम के निर्माता कल्याणम अयंगर थे. लड्डू को तिरुपति का पर्याय बनाने के पीछे उनका ही दिमाग थाः वे 'परम राजा' थे जिन्होंने अपनी थाली, शादी की चेन और शादी के कपड़े भी ज़रूरतमंद लोगों को दान कर दिए थे.
रिपोर्टों के अनुसार, अयंगर एक परोपकारी व्यक्ति थे और उन्होंने गरीबों और दलितों के कल्याण के लिए काम किया. ललित कलाओं के पारखी और संरक्षक के रूप में, उन्होंने तिरुमाला में संगीत और नृत्य समारोह शुरू किए, जिनका आज भी पालन किया जा रहा है. अयंगर ने इस लड्डू साम्राज्य की महान विरासत अपने बेटे, भाई, बहनोई आदि को सौंप दी.
उन्होंने 'मिरासिदरी सिस्टम' भी बनाया, जिसका उद्देश्य मिठाई बनाना था. रसोई में लड्डू बनाने के लिए जिम्मेदार लोगों को गेमकर मीरासीदार कहा जाता था. उन्हें 2001 तक बैच से हिस्सा भी मिलता था. 2001 से पहले और उसके बाद भी, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के कर्मचारी खुद ही लड्डू बनाते थे. हालांकि, समय के साथ, जैसे-जैसे भक्तों की आमद बढ़ती गई, हर दिन बनने वाले लड्डुओं की संख्या बढ़ानी पड़ी.
ट्रेन्डिंग फोटोज़