मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) के पिता, नीता अंबानी के ससुर और रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) का जन्म एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके चार भाई-बहन थे - त्रिलोचना बेन, रामनिकलाल अंबानी, जसुबेन और नटुभाई. त्रिलोचना धीरूभाई अंबानी से बड़ी थीं और उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना में अप्रत्यक्ष लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
त्रिलोचना बेन और उनके पति के निजी जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी सार्वजनिक नहीं है. हालांकि, कहा जाता है कि दंपत्ति का एक बेटा था - रसिकलाल मेश्वानी, जो रिलायंस के संस्थापक निदेशकों में से एक थे. त्रिलोचना बेन के परिवार की तीसरी पीढ़ी में उनके दो पोते हैं - निखिल आर मेश्वानी और हितल आर मेश्वानी, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज में अहम भूमिका निभाते हैं. निखिल 1986 में रिलायंस में शामिल हुए और कंपनी के बोर्ड में एक कार्यकारी निदेशक बनाए गए. वे मुख्य रूप से पेट्रोकेमिकल डिवीजन की देखरेख करते हैं और इसमें कई महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए जिम्मेदार हैं. इसके अलावा, वे आईपीएल टीम मुंबई इंडियंस और इंडियन सुपर लीग को भी संभालने में शामिल हैं.
त्रिलोचना बेन के छोटे पोते हितल आर मेश्वानी 1995 में कंपनी में शामिल हुए और उनके बड़े भाई निखिल की तरह ही कार्यकारी निदेशक का पद संभाला. हितल कंपनी के कई बड़े कारोबारों की देखभाल करते हैं, जिनमें पेट्रोलियम रिफाइनिंग और मार्केटिंग, पेट्रोकेमिकल निर्माण और साथ ही कंपनी के अन्य कार्यों जैसे मानव संसाधन प्रबंधन (एचआर), सूचना प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी शामिल हैं.
रिलायंस ग्रुप के प्रमुख मुकेश अंबानी ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि जब उन्होंने काम शुरू किया था, तब उनके पहले बॉस और उनकी बुआ त्रिलोचन बेन के बेटे रसिकलाल मेसवानी ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया था और सही रास्ता दिखाया था.
साल 1981 की बात है. निखिल और हितल के पिता, रसिकभाई मेसवानी मेरे पहले बॉस थे. कंपनी में काम करने का तरीका बहुत ही खुला था. हम एक-दूसरे के कमरे में जा सकते थे, मीटिंग में शामिल हो सकते थे या किसी भी बातचीत में हिस्सा ले सकते थे. मेरे पिताजी भी इस तरह के माहौल को बढ़ावा देते थे. लेकिन जब मैं रिलायंस में नियमित रूप से काम करने लगा, तो उन्होंने कहा कि मुझे एक बॉस की जरूरत है और मुझे रसिकभाई के अधीन रखा गया. वे हमारे पॉलिएस्टर के कारोबार को संभाल रहे थे, जिसमें पॉलिएस्टर फाइबर आयात करना, उसे प्रोसेस करना और टेक्सटाइल मिलों को बेचना शामिल था. यह हमारा नरोदा (अहमदाबाद के पास) स्थित टेक्सटाइल मिल की तुलना में एक नया कारोबार था, जो लगभग 60-70 प्रतिशत मुनाफा कमाता था.
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