Kati Bihu in Assam: कार्तिक महीने की शुरुआत के साथ ही असम और पूर्वांचल के कोने-कोने में आज काति बिहू का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. अश्विन मास की पूर्णिमा को मां लक्ष्मी की पूजा के साथ इस उत्सव की शुरुआत होती है.
धन और अन्न की देवी मां लक्ष्मी की आराधना करते हुए, किसान अपने खेतों में जाकर नए फसल की खुशहाली के लिए दीप जलाते और दिखाते हैं. यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि किसानों की कड़ी मेहनत और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भी प्रतीक माना जाता है.
असम और आसपास के क्षेत्रों में मनाए जाने वाले काति बिहू को कंगाली बिहू के नाम से भी जाना जाता है. इस त्योहार का नाम कंगाली इसलिए पड़ा क्योंकि इस समय किसानों के घरों में पिछली फसल का अनाज खत्म होने को होता है और नई फसल अभी पकने की प्रक्रिया में होती है. यही कारण है कि इस दौरान किसान आर्थिक रूप से थोड़ा संकट में होते हैं. हालांकि, इसी समय खेतों में नई फसल की सुनहरी बालियां लहराने लगती हैं, जो आने वाले समय के लिए उम्मीद की किरण होती है.
काति बिहू के दिन सूर्यास्त के साथ ही एक खास अनुष्ठान की शुरुआत होती है. किसान दंपति अपने खेतों में जाकर नई फसलों की पूजा करते हैं और दीपक जलाए जाते हैं. इसी के साथ, इस दिन से महिलाएं पूरे कार्तिक मास भर तुलसी के पौधे की पूजा करती हैं और दीप जलाती हैं.
यह परंपरा मां लक्ष्मी की पूजा के साथ जुड़ी हुई है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है. हालांकि, काति बिहू में कोई कठोर नियम नहीं हैं, और लोग अपनी श्रद्धा और विश्वास के अनुसार इस त्योहार को मनाते हैं.
कटि बिहू में खेतों को कीड़ों और कीटों से बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है. युवा फसलों की सुरक्षा के लिए भी विधि विधान से पूजा की जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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