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Ahoi Ashtami Fasting Method: हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी व्रत का विशेष महत्व है. यह पर्व हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी को मनाई जाती है. यानी कि इस बार यह पर्व 5 नवंबर रविवार के दिन मनाया जाएगा.
इस दिन माताएं अपने अपने बच्चों की सुखी जीवन, खुशियां, लंबी उम्र और उनके जीवन में किसी भी चीज की कोई कमी ना हो साथ ही करियर में सफलता हासिल हो की कामना करते हुए पूरे दिन का व्रत रखती हैं.
ज्योतिष अनुसार, यह व्रत वह महिला भी रखती हैं जिन्हें अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है. इस दिन अहोई माता की पूजा करते हैं. शाम के समय व्रती तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं. वहीं कुछ लोग चांद को देख कर ही अपना व्रत तोड़ती हैं. बतादें कि चंद्रदोदय का समय 11 बजकर 45 मिनट पर होगा.
जानें पूजा की विधि
इस दिन महिलाएं नहाकर साफ और नए कपड़े पहन कर व्रत का संकल्प कर के संतान की लंबी उम्र और उनकी सफलता की कामना करते हुए व्रत को पूरा करें. शाम के समय में घर की उत्तर पूर्व दिशा में साफ सफाई कर के एक लकड़ी की चौकी पर नया कपड़ा बिछाएं और उस पर अहोई माता की तस्वीर रखें. बहुत सी माताएं इस दिन चांदी की अहोई बनवाकर गले में पहनती हैं. इसे स्याहु के नाम से जाना जाता है. माता की स्थापना करने के बाद चौकी उत्तर दिशा में जमीन पर गोबर से लिप कर उस पर जल से भरा कलश जिसमें चावल छिटकर रखते हैं.
कलश पर कलावा जरूर बांधे साथ ही रोली का टीका करें. अब अहोई माता को रोली चावल का टीका करें और भोग लगाएं. भोग के रूप में आठ पूड़ी और आठ मीठे पूड़े रखते हैं. वहीं पूजा के समय एक कटोरी में मां के सामने चावल, मूली और सिंघाड़े भी रखते हैं. अब दीपक जलाकर अहोई मां की आरती करते हैं और उसके बाद पाठ करें. कथ सुनते वक्त दाहिने हाथ में थोड़े से चावल के दाने जरूर रखें. कथा खत्म होने के बाद चावल के दानों को अपने पल्लू में गांठ बांध कर रख लें. फिर शाम के समय अर्घ्य देते समय गांठ के चावल को कलश में डाल दें. वहीं पूजा में शामिल भोग में लगी चीजों को ब्राह्मण को दान में दें. वहीं अहोई माता की तस्वीर को दिवाली तक लगा रहने दें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)