Bhaum Pradosh Vrat 2021: लाइलाज बीमारियों और कर्ज से भी मुक्ति दिलाता है भौम प्रदोष व्रत, जानें इसकी कथा
वैसे तो हर महीने में 2 बार प्रदोष का व्रत आता है लेकिन मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. इस दिन व्रत रखने से असाध्य रोग और कर्ज से मुक्ति मिलती है.
नई दिल्ली: जिस तरह से हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (Ekadashi) श्रीहरि भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित है और उस दिन उनके लिए व्रत रखा जाता है, ठीक उसी तरह हर महीने दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित है और इस दिन प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से अच्छी सेहत और लंबी आयु की प्राप्ति होती है. साथ ही हर प्रकार के ऋण या कर्ज से भी मुक्ति मिलती है और व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता हासिल करता है.
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष का व्रत जब मंगलवार के दिन पड़ता है तो उसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) कहा जाता है क्योंकि भूमि के पुत्र होने के कारण मंगल को भौम नाम से भी जाना जाता है. मंगलवार का दिन हनुमानजी (Lord Hanuman) का दिन होता है जो खुद रुद्र यानी भगवान शिव के 11वें अवतार माने जाते हैं. सामान्य प्रदोष व्रत में जहां सिर्फ शिव जी की पूजा होती है वहीं भौम प्रदोष व्रत में शिवजी के साथ ही हनुमान जी की पूजा होती है इसलिए भौम प्रदोष व्रत का अपना अलग ही महत्व है. भगवान शिव जहां सभी दुखों का अंत करते हैं वहीं हनुमान जी भक्तों को हर मुश्किल और विपत्ति से बाहर निकाल लेते हैं.
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भगवान शिव के साथ ही हनुमान जी की पूजा
भौम प्रदोष के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है, कर्ज के जंजाल से छुटकारा मिल जाता है और साथ ही यह व्रत सुख-समृद्धि बढ़ाने वाला भी माना जाता है. इस व्रत को शाम के समय प्रदोष काल में किया जाता है इसलिए जब सूर्यास्त हो रहा हो उस वक्त भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती (Goddess Parvati) की भी पूजा करनी चाहिए. पूजा के दौरान ओम नमः शिवाय का जाप करें, शिव चालीसा का पाठ करें और साथ ही में हनुमान चालीसा का भी पाठ अवश्य करें.
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भौम प्रदोष व्रत कथा
एक नगर में एक वृद्धा रहती थी. उसका एक ही पुत्र था. वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी. वह हर मंगलवार को व्रत रखकर हनुमानजी की पूजा करती थी. एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची. हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे? पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज. हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे.
वृद्धा दुविधा में पड़ गई. अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज, लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी.
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साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला. मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा. यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया. वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई. आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई. इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले.
इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ. लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई. अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी. हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया.
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