Chaitra Navratri 2023: इन 7 मंत्रों के जप से जल्द प्रसन्न हो जाती हैं मां भगवती, जीवन भर बनाए रखती हैं कृपा
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Chaitra Navratri 2023: इन 7 मंत्रों के जप से जल्द प्रसन्न हो जाती हैं मां भगवती, जीवन भर बनाए रखती हैं कृपा

Navratri 2023: मां आदिशक्ति की उपासना का पर्व नवरात्रि शुरू होने में महज कुछ घंटे बाकी हैं. ऐसे में सभी लोगों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. आज एक ऐसे श्लोकों के बारे में बताएंगे, जिनका पाठ करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं. 

चैत्र नवरात्रि

Chaitra Navratri: 22 मार्च से वासंतिक नवरात्र का प्रारंभ होने जा रहा है. मां भगवती को प्रसन्न करने और उनसे मनवांछित फल पाने का यह महत्वपूर्ण समय होता है. देवी आराधना के कई विधान और मंत्र हैं, लेकिन जो लोग नवरात्र में मन और शरीर से शुद्ध होने के बाद श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मंत्र का पाठ करता है. मां दुर्गा उसके जीवन के सभी कष्टों का हरण कर उसे सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करती हैं. 

मृत्युलोक में दुर्गा सप्तश्लोक के सात मंत्रों से व्यक्ति को अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है. शिवजी ने स्वयं पार्वती से आग्रह किया कि 'हे देवि! तुम तो भक्तों के लिए सुलभ और सभी कर्मों का विधान करने वाली हो. कलयुग में मनुष्यों के कल्याण के लिए जो उपाय हो, उसे स्वयं ही कहो'. शिवजी की बात सुनने के बाद देवी ने कहा, सात श्लोकों के कारण ही इसे सप्तश्लोकी कहा जाता है. यह अम्बा स्तुति है और जो व्यक्ति इसका पाठ करता है, उसके सभी प्रकार के भय दूर हो जाते हैं. मां दुर्गा इसके फलस्वरूप कल्याण करने वाली बुद्धि प्रदान करती हैं. मां तो अपनी शरण में आए हुए दीनों और पीड़ितों की रक्षा करने के साथ ही उनकी पीड़ा को हरने वाली हैं, वह अपना ध्यान करने वाले मनुष्यों के रोगों को दूर करती हैं. सच तो यही है कि मां दुर्गा अपनी शरण में आने वालों को कभी कोई परेशानी होने ही नहीं देती हैं. 

सप्तश्लोकी दुर्गा 

ऊँ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा, बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि, 

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके, शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते। 

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे 

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते ते। सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते,  भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवि नमोस्तुते ते।

रोगानशेषानपंहसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्ठान्, त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि, एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्। 

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