Lambodar Katha: सूर्यदेव से वरदान पाकर 'महादैत्य' ने तीनों लोकों पर कर लिया था कब्जा, तब लम्बोदर ने देवताओं का ऐसे किया उद्धार
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Lambodar Katha: सूर्यदेव से वरदान पाकर 'महादैत्य' ने तीनों लोकों पर कर लिया था कब्जा, तब लम्बोदर ने देवताओं का ऐसे किया उद्धार

Lord Lambodar Katha: दुनियाभर में 31 अगस्त को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी. भगवान गणेश से जुड़ी अनेक कहानियां प्रसिद्ध हैं. आज हम आपको उनके लम्बोदर अवतार के बारे में विस्तार से बताते हैं. 

Lambodar Katha: सूर्यदेव से वरदान पाकर 'महादैत्य' ने तीनों लोकों पर कर लिया था कब्जा, तब लम्बोदर ने देवताओं का ऐसे किया उद्धार

Story of Lord Lambodar and Krodhasur: महागणपति गणेश जी (Lord Ganesh) के अनेक रूप हैं. आज हम आपको उन के लम्बोदर (Lord Lambodar) अवतार के रूप में बताते हैं. उन्हें यह अवतार किसलिए धारण करना पड़ा. आखिर उन्होंने लम्बोदर के रूप में किस असुर का संहार किया. आज हम इस बारे में आपको विस्तार से बताते हैं. दरअसल भगवान  श्रीगणेश का 'लम्बोदर' नामक अवतार सत्स्वरूप तथा शक्तिब्रह्म का धारक है. इस अवतार में भी मूषक ही उनका वाहन है. 

लम्बोदरावतारो वै क्रोधासुर निबर्हणः। 
शक्तिब्रह्माखुगः सद् यत् तस्य धारक उच्यते॥ 

शिव के कामारिक मन से जन्मा क्रोधासुर

भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर भगवान शिव काम मोहित हो गए. जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप का त्याग किया तो कामारिका मन दुखी हो गया. उससे एक परम प्रतापी काले रंग के असुर का जन्म हुआ, उसके नेत्र तांबे की तरह चमकदार थे. वह असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास गया और कहा-' प्रभो ! मुझे शिष्य स्वीकार कर मेरा नामकरण करने की कृपा करें. शुक्राचार्य कुछ क्षण ध्यानमग्न हो गये. विचार करने के बाद अपने इस योग्य शिष्य का नाम क्रोधासुर (Krodhasur) रखा.  

सूर्य देव को प्रसन्न कर मांगा वरदान

एक दिन क्रोधासुर ने आचार्य के समक्ष हाथ जोड़कर कहा, 'मैं आपकी आज्ञा से सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों पर विजय प्राप्त करना चाहता हूं. अतः आप मुझे यश प्रदान करने वाला मन्त्र दें. शुक्राचार्य ने उसे सविधि सूर्य-मन्त्र की दीक्षा दी. क्रोधासुर (Krodhasur) ने कई वर्षों तक सूर्य-मन्त्र का जप किया. सहस्रों वर्षों की तपस्या के बाद भगवान सूर्य प्रसन्न होकर प्रकट हुए. क्रोधासुर ने उनका भक्तिपूर्वक पूजन किया और 'मृत्यु न हो, मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों को जीत लूं, सभी योद्धाओं में मैं अद्वितीय सिद्ध होऊं' का वरदान मांगा. 

कुछ समय बीतने के पश्चात क्रोधासुर ने पृथ्वी पर सहज ही अधिकार कर लिया. फिर अमरावती पर भी चढ़ाई कर दी. स्वर्ग भी उसके अधीन हो गया. बैकुण्ठ और कैलाश पर भी उस महादैत्य का राज्य स्थापित हो गया. क्रोधासुर ने सूर्यलोक को भी जीत लिया. वरदान देने के कारण सूर्यदेव ने भी दुखी हृदय से सूर्यलोक का त्याग कर दिया. 

असुर ने लम्बोदर से की क्षमायाचना

क्रोधासुर के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए सभी देवी देवताओं ने अत्यन्त दुखी होकर श्रीगणेश (Lord Ganesh) की आराधना की. उनकी प्रार्थना सुनकर लम्बोदर (Lord Lambodar) प्रकट हुए. क्रोधासुर का अहंकार चूर्ण कर दूंगा, इसलिए सभी लोग निश्चिन्त होकर जाएं. लम्बोदर के साथ क्रोधासुर (Krodhasur) का भीषण संग्राम हुआ. क्रोधासुर के बड़े-बड़े योद्धा समर भूमि में आहत होकर गिर पड़े. इसे देखकर वह दुखी होकर लम्बोदर के चरणों में गिर गया और उनकी भक्तिभाव से स्तुति करने लगा. सहज कृपालु लम्बोदर ने उसे अभयदान दे दिया. इसके बाद देवता अभय और प्रसन्न होकर भगवान लम्बोदरका गुणगान करने लगे. जय हो लम्बोदर महाराज की जय!

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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