गुरु के सम्मान में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है.
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नई दिल्ली: आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. इस बार ये पावन पर्व 05 जुलाई 2020 को पड़ रहा है. मान्यता है कि इसी दिन तमाम ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. तभी से उनके सम्मान में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है.
सनातन परंपरा में गुरु का नाम ईश्वर से पहले आता है क्योंकि गुरु ही होता है जो आपको गोविंद से साक्षात्कार करवाता है, उसके मायने बतलाता है. जीवन में जिस तरह नदी को पार करने के लिए नाविक पर, गाड़ी में सफर करते समय ड्राइवर पर, इलाज कराते समय डॉक्टर पर विश्वास करना पड़ता है, बिल्कुल उसी तरह जीवन को पार लगाने के लिए सद्गुरु की आवश्यकता होती है और उनके मिल जाने पर उन पर आजीवन विश्वास करना होता है. ऐसा इसीलिए क्योंकि गुरु की अग्नि भी शिष्य को जलाती नहीं है बल्कि उसे सही राह दिखाने का काम करती है.
यदि आप इस गुरु पूर्णिमा पर किसी को अपना गुरु बनाने की सोच रहे हैं तो उससे पहले खूब सोच-विचार लें क्योंकि जीवन में गुरु सिर्फ एक बार बनाया जाता है. उसे बार-बार नहीं बदला जाता है. भागती-दौड़ती जिंदगी में किसी को भी गुरु बनाने से पहले कबीरदास जी के दोहे की इस पंक्ति को जरूर याद कर लेना चाहिए.
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि । बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥
अर्थात जिस तरह पानी को छान कर पीना चाहिए, उसी तरह किसी भी व्यक्ति की कथनी-करनी जान कर ही उसे अपना सद्गुरु बनाना चाहिए. अन्यथा उसे मोक्ष नहीं मिलता और इस पृथ्वी पर उसका आवागमन बना रहता है. कुल मिलाकर सद्गुरु ऐसा होना चाहिए जिसमें किसी भी प्रकार लोभ न हो और वह मोह-माया, भ्रम-संदेह से मुक्त हो. वह इस संसार में रहते हुए भी तमाम कामना, कुवासना और महत्वाकांक्षा आदि से मुक्त हो.
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गुरु की पूजा के नियम?
- देश की राजधानी दिल्ली के पंडित राम गणेश के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण भी लग रहा है लेकिन उसका भारत में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और न ही सूतक काल लगेगा. ऐसे में इस दिन अपने गुरु का पूजन गुरु पूर्णिमा के दिन सिंह लग्न में प्रात: 08:41 मिनट से लेकर 10: 15 तक करना उचित रहेगा.
- कोरोना काल में सर्वप्रथम आपका प्रयास होना चाहिए कि आप अपने घर में रहकर ही अपने गुरु की पूजा, ध्यान एवं सुमिरन करें. ब्रह्मलीन हो चुके सद्गुरुओं की प्रतिमा, चित्र या फिर उनकी पादुका का पूजन करके और जीवित गुरुओं को सोशल मीडिया की की मदद से लाइव दर्शन करके या फिर उनके चित्र का पूजन करके अपने भक्ति-भाव को प्रकट करें.
- यदि आपको गुरु के पास जाना जरूरी भी हो तो उनके पास विनम्र भाव से जाएं और उन्हें झुक कर प्रणाम करें. जिस तरह कुंए में रस्सी के जरिए डाला गया बर्तन ज्यादा झुकाए जाने पर ज्यादा पानी अपने भीतर समाता है, बिल्कुल उसी तरह गुरु के पास समर्पित भाव से जाने पर उनकी अत्यधिक कृपा बरसती है.
- गुरु के पास उनकी आज्ञा लेकर ही मिलने जाएं और उनकी आज्ञा लेकर ही प्रस्थान करें.
- गुरु से मिले दिव्य मंत्र का जप और मनन करें. कभी भूलकर भी दूसरे से इसकी चर्चा नहीं करनी चाहिए.
- सच्चे गुरु का सान्निध्य, उनकी कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए पहले सुपात्र बनें क्योंकि यदि आपके पात्र में जरा सा भी छेद है तो गुरु से मिले अमृत ज्ञान को आप खो देंगे.
- भूलकर भी अपने गुरु को नाराज न करें क्योंकि एक बार यदि ईश्वर आपसे नाराज हो जाएं तो सद्गुरु आपको बचा लेंगे. लेकिन यदि गुरु नाराज हो गए तो ईश्वर भी आपकी मदद नहीं कर पाएंगे. कहने का तात्पर्य सद्गुरु के नहीं होने पर आपकी कोई मदद नहीं कर सकता.
- गुरु की पूजा का अर्थ सिर्फ फूल-माला, फल, मिठाई, दक्षिणा आदि चढ़ाना नहीं है बल्कि गुरु के दिव्य गुणों को आत्मसात करना है. गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करने दिन है.
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