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नई दिल्ली: धर्म शास्त्रों में दिन के अलग-अलग समय का अपना अलग महत्व बताया गया है. फिर चाहे सूर्योदय से पहले के ब्रह्ममुहूर्त (Brahma muhurat) की बात हो या फिर सूर्यास्त के समय गोधूलि बेला (Godhuli Bela) की. गोधूलि का शाब्दिक अर्थ है गायों के पैरों से उठने वाली धूल. यानी वैसा समय जब गाय आदि अन्य पशु चरने के बाद अपने घर की तरफ वापस लौट रहे हों. सूर्यास्त से ठीक पहले का समय जब आपने देखा होगा कि चिड़ियों का झुंड, पशुओं का समूह अपने-अपने घोसलों और घरों की ओर लौटने लगते हैं, आकाश में सूर्य की किरणों का रंग हल्का पीला हो जाता है, तो इस समय को ही गोधूलि बेला कहा जाता है. आमतौर पर शाम के समय साढ़े 5 बजे से लेकर 7 बजे तक के समय को गोधूलि बेला के तौर पर देखा जाता है.
सूर्यास्त (Sunset) से ठीक पहले का समय जिसे गोधूलि बेला कहा जाता है, एक ऐसा समय है जब दिन और रात दोनों बेलाओं का मिलन हो रहा होता है. इसलिए इस समय को पूजा-पाठ के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है. आपने देखा होगा कि ज्यादातर घरों में इसी समय पर दीया-बाती की जाती है, संध्या काल की पूजा की जाती है. पूजा-पाठ के साथ ही विवाह जैसे मांगलिक कार्यों (Auscipious Time) के लिए भी गोधूलि बेला जिसे मंगल बेला भी कहा जाता है को श्रेष्ठ समय माना गया है. विवाह (Wedding) आदि के लिए निकाले गए वांछित मुहूर्त में जब कोई शुद्ध लग्न नहीं निकलता तो इस स्थिति में गोधूलि बेला को मान्यता देकर इस समय विवाह किया जा सकता है.
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- गोधूलि बेला यानी शाम के समय किसी को भी पैसे देने या उधार देने से बचना चाहिए. इसका कारण ये है कि गोधूलि बेला को लक्ष्मी आने का समय माना जाता है. इस समय पूजा-पाठ आदि करके आप लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं कि ताकि वे आपके घर आएं. लिहाजा इस समय उधार पैसे बिल्कुल न दें.
- गोधूलि बेला के समय अगर कोई दूध या दही मांगने आए तो उसे भी ये चीजें नहीं देनी चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा करने से लक्ष्मी जी नाराज हो जाती हैं.
- गोधूलि बेला के समय पूजा के बाद तुलसी जी के आगे दीपक जलाना चाहिए लेकिन भूलकर भी इस समय तुलसी के पत्तों को छूना या तोड़ना नहीं चाहिए. ना ही तुलसी में पानी डालना चाहिए.