देवाधिदेव महादेव की उपासना दिलाती है विष्‍णु जी की कृपा! बेहद रोचक है इसके पीछे की कथा
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देवाधिदेव महादेव की उपासना दिलाती है विष्‍णु जी की कृपा! बेहद रोचक है इसके पीछे की कथा

भगवान विष्‍णु की कृपा पाने का उपाय: भगवान विष्‍णु और देवाधिदेव महादेव में एक खास कनेक्‍शन है. वो यह है कि ये दोनों भगवान अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि एक हैं. यह कनेक्‍शन खुद भगवान विष्‍णु ने माता लक्ष्‍मी को बताया था.  

देवाधिदेव महादेव की उपासना दिलाती है विष्‍णु जी की कृपा! बेहद रोचक है इसके पीछे की कथा

महादेव की कृपा पाने का उपाय: भगवान विष्‍णु और भगवान शिव की कृपा जीवन से हर कष्‍ट दूर कर देती है. साथ ही सुख-समृद्धि, सफलता, सौभाग्‍य से जातक की झोली भर देती है. हालांकि अधिकांश लोग भगवान विष्णु और शिव जी को अलग-अलग समझते हैं, जबकि यह उनकी भूल है क्‍योंकि वास्तव में दोनों एक ही हैं. यानी विष्णु जी में महेश हैं और महेश्वर में विष्णु जी हैं. यह रहस्य स्वयं विष्णु जी ने माता लक्ष्मी के पूछने पर उन्हें बताया था. 

रोचक है यह कथा 

कथा के अनुसार एक बार बैकुंठ लोक में विश्राम करते हुए भगवान विष्णु स्वप्न में अपने आराध्य महादेव को नृत्य करते देखा तो वह आश्चर्यचकित हो गए और गहरी नींद से उठ बैठे. कुछ क्षण तक उस दृश्य पर विचार करने के बाद मुस्कुराने लगे तो उन्हें देख माता लक्ष्मी ने वजह पूछी - भगवन क्या हुआ आप अचानक ही क्यों जाग गए. ऐसी क्या उलझन है. इस पर उन्होंने बताया कि देवी, मुझे स्वप्न में भगवान शंकर ने दर्शन दिया, लगता है वह मुझे याद कर रहे हैं. 

इतना कहते ही विष्णु जी माता लक्ष्मी को साथ लेकर कैलाश पर्वत पर महादेव के दर्शन करने चल पड़े. उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि भगवान शंकर माता पार्वती के साथ उनकी ओर ही चले आ रहे हैं. दोनों एक दूसरे से भाव विह्वल हो कर मिले. उन दोनों की ही आंखों में प्रेम के आंसू आ गए क्योंकि जिस समय विष्णु जी स्वप्न में महादेव को देख रहे थे, उसी समय महादेव विष्णु जी को सपने में देख रहे थे और उन्होंने भी इसे बुलाने का संकेत समझा तो पार्वती जी के साथ वैकुंठ धाम की ओर निकल पड़े. 

एक ही विष्‍णु-महेश 

मिलने के बाद भगवान विष्‍णु और भगवान शिव आपस में एक दूसरे को अपने धाम पर ले जाने की बात कहने लगे तभी देवर्षि नारद वहां पहुंच गए. वे दोनों भगवानों को एक साथ देख कर भक्ति से भाव विभोर हो गए. दोनों ने यह निर्णय नारद जी पर छोड़ दिया कि वही बताएं कौन किसके धाम जाएगा. लेकिन नारद जी तो अपनी सुध बुध ही खो बैठे थे, तो कुछ देर के लिए खिंचे सन्नाटे को चीरते हुए माता पार्वती बोलीं. मुझे तो लगता है आप दोनों में कोई भेद नहीं है और आप दोनों एक ही हैं, जैसे दो शरीरों में एक ही आत्मा हो. इसलिए बैकुंठ ही कैलाश है और कैलाश ही बैकुंठ धाम. आप दोनों की तरह ही मेरे और लक्ष्मी जी में कोई अंतर नहीं है मैं ही लक्ष्मी हूं और लक्ष्मी ही पार्वती. उन्होंने आगे कहा कि अब मिलन तो ही चुका है, दोनों अपने-अपने धाम यह सोच कर जाएं कि भगवान शंकर बैकुंठ जा रहे हैं और भगवान विष्णु कैलाश धाम. 

बैकुंठ धाम पहुंचने पर माता लक्ष्मी ने विष्णु जी से पूछा कि यह सब क्या है, तब उन्होंने रहस्य बताते हुए कहा कि हम दोनों में कोई भेद नहीं है. जो व्यक्ति शिव की आराधना करता है उसे मेरा आशीर्वाद प्राप्त होता है और मेरी पूजा करने वाले से शिव जी स्वतः प्रसन्न हो जाते हैं. 

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