आर्थिक तंगी से छुटकारा दिलाएंगे भगवान विष्णु, निर्जला एकादशी के दिन ऐसे करें पूजा
इस साल निर्जला एकादशी 13 जून 2019 को मनाई जाएगी. निर्जला एकादशी के दिन व्रत करने वाले लोगों को सुबह उठकर स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
Trending Photos
)
नई दिल्ली : हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है. साल में 24 बार आने वाली एकादशी को जो भी इंसान व्रत रखता है शास्त्रानुसार उसे धन-धान्य की प्राप्ति होती है. ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते है इस व्रत में पानी भी नहीं पीते हैं. इसलिए इस निर्जला एकादशी कहते हैं. शास्त्रानुसार नर नारी दोनों को यह व्रत करना चाहिए. इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की अराधना का विशेष महत्व है. इस दिन ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करके गोदान, वस्त्र दान, फल का दान करना चाहिए.
13 जून को मनाई जाएगी निर्जला एकादशी
इस साल निर्जला एकादशी 13 जून 2019 को मनाई जाएगी. निर्जला एकादशी के दिन व्रत करने वाले लोगों को सुबह उठकर स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए. मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु को पीले रंग काफी प्रिय है, इसलिए एकादशी के दिन उन्हें पीले फल, पीले फूल, पीले पकवान का भोग लगाएं. दीपक जलाकर आरती करें. इस दौरान ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का भी जाप करें.
शाम को करें तुलसी पूजा
शाम के समय तुलसी जी की पूजा करें. व्रत के अगले दिन सुबह उठकर स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें और गरीब, जरूरतमंद या फिर ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य प्राप्त होता है.
व्रत करने वाले साधक के लिए जल का सेवन करना है निषेध
पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं अनेक रोगों की निवृत्ति एवं सुख सौभाग्य में वृर्द्धि होती है. इस व्रत के प्रभाव से चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्रार्द्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है वही फल इस व्रत की महिमा सुनकर मनुष्य पा लेता है.
हालांकि व्रत करने वाले साधक के लिए जल का सेवन करना निषेध है परंतु इस दिन मीठे जल का वितरण करना सर्वाधिक पुण्यकारी है. भीषण गर्मी में प्यासे लोगों को जल पिलाकर व्रती अपने संयम की परीक्षा देता है अर्थात व्रती अभाव में नहीं बल्कि दूसरों को देकर स्वयं प्रसन्नता की अनुभूति करता है तथा उसमें परोपकार की भावना पैदा होती है. यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला तथा मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है. व्रत से जल की वास्तविक अहमियत का भी पता चलता है. मनुष्य अपने अनुभवों से ही बहुत कुछ सीखता है,यही कारण है कि व्रत का विधान जल का महत्व बताने के लिए ही धर्म के माध्यम से जुड़ा हुआ है.