महिला नागा साधु (Female Naga Sadhu) बनने के लिए शरीर में भी कई तरह के बदलाव करने पड़ते हैं. पुरुष नागाओं की तरह इन्हें भी मुंडन करवाना पड़ता है. इसके अलावा उन्हें अपने गुरु को विश्वास दिलाना पड़ता है कि वे अपने परिवार से दूर हो चुकी हैं और अब उन्हें किसी भी बात का मोह नहीं है. नागाओं की दुनिया में किसी भी तरह के मोह-माया की इजाजत नहीं होती है. ये खुद को भगवान के चरणों में समर्पित कर चुके होते हैं. कई वर्षों की कठिन परीक्षाओं के बाद कोई महिला नागा साधु बन पाती है.
आपको बात दें कि भक्ति और त्याग का प्रतीक ये महिला नागा साध्वी (Female Naga Sadhu) पूरा दिन साधना करती हैं. इन्हें सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है. इसके बाद ये नित्य कर्मों के बाद शिवजी का घोर जप करती हैं. दोपहर में भोजन करने के बाद फिर से शिवजी की साधना में लग जाती हैं. नागाओं के इष्ट भगवान शंकर होते हैं. इसलिए इनका जीवन भी बिल्कुल भगवान शिव की तरह रमता हुआ होता है. ये चौतरफा अग्नि के बीच में बैठ कर साधना करती हैं. गर्मियों की दोपहर हो या पूष की रात, नागाओं का जीवन एक जैसा ही होता है.
महिला नागा साधु बनने के लिए ऐसे चरणों से गुजरना पड़ता है, जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे. इन्हें सबसे पहले भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर के खुद का पिंडदान करना पड़ता है. इसके बाद ये साध्वी मुंडन करवा कर खुद का तर्पण करती हैं. गृहस्थ जीवन से निकल कर खुद का पिंडदान कर ये साध्वी खुद को इस संसार के लिए मृत बना देती हैं. उसके बाद शुरू होता है इनका नया और कठिन जीवन, जहां ये सारी सुविधाओं से दूर हो जाती हैं. फिर इनका एकमात्र काम होता है, भक्ति और साधना.
जब ये नागा साध्वी 10 साल तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं, तब इन्हें सांसारिक मोह-माया से दूर रखा जाता है. इससे इनमें समर्पण की भावना का विकास होता है. साथ ही इन्हें नागाओं के रहन-सहन की जटिलताओं का भी पता चलता है. इतना करने के बाद ही इस बात का निर्णय लिया जाता है कि किसी महिला को नागा साधु बनाया जा सकता है या नहीं. दरअसल, महिला नागाओं का जीवन बहुत कठिन होता है. ऐसे में कई बार ये बीच में ही साधना को छोड़ देती हैं.
किसी भी महिला को नागा साधु (Naga Sadhu) बनने के लिए अलग-अलग तरह की साधना करनी पड़ती है. इन्हें 10 साल तक लगातार पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है. इन सालों में इन साध्वियों को अपनी भक्ति और समर्पण साबित करना पड़ता है. इस समर्पण के बाद ही इन्हें दीक्षा और परीक्षा के लिए भेजा जाता है.
महिला नागा साधुओं की दीक्षा भी आसान नहीं है. इन्हें घोर त्याग और बलिदान का साहस दिखाना पड़ता है. इसके बाद शुरू होता है इनकी कठिन परीक्षाओं का दौर. इनसे गुजरने के बाद इस बात का निर्णय महिला नागा साधु (Female Naga Sadhu) की गुरु करती है कि उन्हें दीक्षा कब दी जाए. इसके बाद ही आगे के सारे काम किए जाते हैं. इसमें उन्हें महिला नागाओं के नियम और परंपराएं बताई जाती हैं.
महिला और पुरुष नागा साधुओं में केवल एक अंतर है. महिला नागा साधुओं को खुद को पीले रंग के कपड़े से ढकना पड़ता है. उन्हें नग्न स्नान करने की अनुमति नहीं है और इसीलिए उन्हें स्नान करते समय भी उस पीले कपड़े का उपयोग करना पड़ता है. ये पीले वस्त्र ही इनकी पहचान भी हैं. नागा साध्वी इस पीले वस्त्र को धारण कर के ही कुंभ (Kumbh) में प्रवेश लेती हैं. महिला नाग साधुओं को कुंभ में इन वस्त्रों में डुबकी लगाते देखा जा सकता है.
किसी महिला को नागा साधु बनने से पहले किसी अखाड़े की महिला संन्यासी से दीक्षा लेनी पड़ती है. अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ही उन्हें दीक्षा देते हैं. इतना ही नहीं, यह दीक्षा बहुत ही कठिन साधना के बाद मिलती है. नागाओं की दुनिया आम साधुओं से बहुत अलग होती है, फिर चाहे पुरुष नागा हों या महिला नागा साधु. इन्हें दीक्षा भी बहुत कठिन परिश्रम के बाद मिलती है. दीक्षा के पहले इन्हें कई ऐसी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, जिन्हें आम इंसान शायद ही दे पाए.
नागा साध्वियों कि लाइफस्टाइल बहुत ही अलग होती है. महिला नागा साधु माथे पर तिलक और सिर्फ एक चोला धारण करती हैं. आमतौर पर यह चोला भगवा या सफेद रंग का होता है. यह रंग पहन कर ही इन्हें विचरण करना होता है. इनका रूप इस रंग में और भी भक्तिमय नजर आता है. आपको बता दें कि नागा साधुओं (Naga Sadhu) को वस्त्र वर्जित रहना होता है. लेकिन महिला होने की वजह से फीमेल नागा साधुओं को ये विशेष रंग के वस्त्र पहनना अनिवार्य होता है.
कुंभ (Kumbh) में नागा साधुओं के साथ ही महिला नागा साधु (Female Naga Sadhu) भी शाही स्नान (Kumbh Shahi Snan) करती हैं. अखाड़े में इन्हें पूरा सम्मान दिया जाता है. इनके लिए कुंभ के मेले में शाही स्नान के लिए अलग से व्यवस्था होती है. ये महिला नागा साधु कुंभ में आए विदेशियों के लिए आस्था का अलग स्तंभ बनाती हैं. विदेशियों में इनके प्रति खास आकर्षण देखने को मिलता है. इनकी दिनचर्या और त्याग के ऊपर विदेशियों ने कई डॉक्युमेंट्री भी बनाई हैं.
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