मृत्यु के बाद शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ा जाता! डरावनी है वजह
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मृत्यु के बाद शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ा जाता! डरावनी है वजह

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद शव को अकेला क्यों नहीं छोड़ना चाहिए. इसके पीछे कई धारणाएं है. आजकल लोग इसके बारे में बात नहीं करना चाहते लेकिन ये एक जरूरी प्रक्रिया है और आपको इस बारे में जरूर जानना चाहिए.

प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली: मृत्यु एक अटल सत्य है. जो भी जन्मा है उसे एक दिन मरना ही है. लेकिन मौत एक ऐसा विषय है जिसके बारे में कम ही लोग बात करना चाहते हैं. हालांकि हम सब ने एक विधि जरूर देखी होगी लेकिन उसके बारे में जानकारी कम ही लोगों को होती है. आप सभी ने देखा होगा कि हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद शव को जलाया जाता है और आपने ये भी देखा होगा कि अगर किसी की मृत्यु सूर्यास्त के बाद होती है तो उसका दाह संस्कार अगले दिन किया जाता है. ऐसे में आपने गौर किया होगा कि मृत्यु के बाद व्यक्ति के शव को अकेला नहीं छोड़ा जाता है. दरअसल इसका संबंध गरुड़ पुराण से है. आइए समझते हैं इसके पीछे का कारण

  1. मृत्यु के बाद शव को अकेला नहीं छोड़ा जाता
  2. शव के आस-पास किसी का रहना बहुत जरूरी
  3. मृत्यु के बाद कुछ वजहों से टलता है दाह संस्कार 

मृत्यु के बाद इन 3 कारणों से टलता है दाह संस्कार

  1. हिन्दू धर्म में अगर किसी की मृत्यु सूर्यास्त के बाद होती है तो उसके शव को रात भर घर पर ही रखा जाता है और अगले दिन उसका दाह संस्कार किया जाता है. इस दौरान शव को रातभर घर में ही रखा जाता और किसी न किसी को उसके पास रहना होता है. इसके पीछे की मान्यता है कि यदि रात में ही शव को जला दिया गया तो इससे व्यक्ति को अधोगति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है. ऐसी आत्मा असुर, दानव या पिशाच की योनी में जन्म लेती है.
  2. यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल में होती है तो पंचक काल में शव को नहीं जलाया जा सकता. शव का दाह संस्कार करने के लिए पंचक काल समाप्त होने का इंतजार करना चाहिए. तब तक के लिए शव को घर में ही रखा जाता है और किसी ना किसी को शव के पास रहना होता है. गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में इस बात का वर्णन किया गया है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है. इसी डर के कारण पंचक काल के खत्म होने का इंतजार किया जाता है. लेकिन इसका समाधान भी है कि मृतक के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाए. ऐसा करने से पंचक दोष समाप्त हो जाता है.
  3. हिन्दू धर्म में मान्यता है कि व्यक्ति का अंतिम संस्कार उसके बेटे द्वारा ही किया जाए. ऐसी स्थिति में अगर किसी का बेटा या बेटी कहीं दूर रहता है तो उसका इंतजार किया जाता है और शव को घर पर ही रखा जाता है. कहते हैं कि बेटे या बेटी के हाथों ही दाह संस्कार होने पर मृतक आत्मा को शांति मिलती है अन्यथा वह भटकता रहता है.

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इसलिए नहीं छोड़ते शव को अकेला

मृत शरीर को अकेले नहीं छोड़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि अगर शव को अकेला छोड़ दिया जाए तो हो सकता है कुत्ते-बिल्ली जैसे जानवर उसे नोच खाएं और गरुड़ पुराण की मानें तो ऐसे में मृत आत्मा को को भी यमलोक के मार्ग में ऐसी ही यातनाएं सहनी पड़ती हैं. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि अगर शव को अकेला छोड़ दिया जाए तो उससे बदबू आने लगती है. ऐसे में यह जरूरी है कि वहां कोई ना कोई व्यक्ति बैठा रहे और धूप या अगरबत्ती शव के चारों तरफ लगातार जलती रहे ताकि शव से आने वाली दुर्गन्ध चारों ओर ना फैले.

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बुरी आत्मा का साये से भी शव को बचाना जरूरी

इसके अलावा शव को अकेला इसलिए भी नहीं छोड़ा जाता क्योंकि माना जाता है कि मरे हुए आदमी की आत्मा वहीं पर भटकती रहती है और अपने परिजनों को देखती रहती है. ऐसे में कहा जाता है कि इंसान की मौत के बाद शरीर आत्मा से खाली हो जाता है. जिस वजह से उस मृत शरीर में कोई बुरी आत्मा का साया अपना अधिकार जमा सकता है. यही वजह है कि रात में शव को अकेले नही छोड़ा जाता है और कोई ना कोई इसकी रखवाली करता रहता है.

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