Vastu Shastra: वास्तु में दिशा का है विशेष महत्व, इस यंत्र से यूं किया जाता है दिशा का निर्धारण
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Vastu Shastra: वास्तु में दिशा का है विशेष महत्व, इस यंत्र से यूं किया जाता है दिशा का निर्धारण

Vastu Tips For Direction: वास्तु शास्त्र में किसी भी चीज का लाभ तभी होता है, जब उसकी सही दिशा और सही जगह पर रखा जाए. वास्तु में दिशा का विशेष महत्व बताया गया है. आइए जानें वास्तु में दिशा का निर्धारण कैसे किया जाता है. 

 

फाइल फोटो

Vastu Direction Significance: सामान्यतः दिशाओं का निर्धारण सूर्योदय के आधार पर किया जाता है जो सैद्धांतिक रूप से सही नहीं है क्योंकि सूर्य भी तो अपनी दिशा में परिवर्तन करते हैं. दिशा का सही निर्धारण करना है तो दिशा बताने वाले यंत्र का उपयोग करना चाहिए, कभी भी दिशा का निर्धारण अंदाज से नहीं करना चाहिए. दिशा बताने वाले यंत्र को कंपास या कुतुबनुमा कहते हैं. कंपास की सुई हमेशा उत्तर दिशा में रहती है क्योंकि यह उत्तर की दिशा से आने वाली तरंगों को आकर्षित करती है. यही कारण है कि दिशाओं का निर्धारण उत्तर दिशा को आधार बना कर किया जाता है. अब आजकल तो आधुनिक मोबाइल फोन में भी कंपास की सुविधा उपलब्ध है जो बिना किसी विलंब के क्षण भर उसे ऑन करते ही दिशा बताने लगता है.

ऐसे करें दिशा का निर्धारण

किसी भूखंड या भवन की दिशा ज्ञात करने की विधि अत्यंत सरल है. कंपास को भूखंड या भवन के मध्य में रख दीजिए और देखिए कि तीर जैसी सुई उत्तर दिशा में होती है. इसे देखते हुए भूखंड पर उत्तर और दक्षिण की रेखा खींचने से पूरा भूखंड दो बराबर भागों में विभाजित हो जाएगा. इसी तरह भूखंड के केंद्र से पूर्व और पश्चिम की ओर भी निशान लगाकर लाइन खींचने से पूर्व और पश्चिम की दिशा भी तय हो जाएगी.

वास्तु का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष दिशा का सही ज्ञान होना है. बहुत से लोग तकनीकी ज्ञान के अभाव में अनुमान के आधार पर दिशाओं का निर्धारण कर वास्तु की समस्याओं का समाधान बता देते हैं, जो अनुचित है. वास्तु पद विन्यास के अनुसार हर स्थान के अपने देवता हैं और दिशा निर्धारण में जरा भी चूक होने पर वास्तु तुरंत ही बदल जाता है. ऐसा होने पर इससे मिलने वाले लाभ के स्थान पर हानि की आशंका अधिक हो जाती है. दिशा निर्धारण के लिए कंपास का प्रयोग पूर्णतया वैज्ञानिक है और इसे भूमि के मध्य में रखकर ही देखना चाहिए. अन्य स्थान पर कंपास रखने पर उचित दिशा का ज्ञान कभी भी नहीं हो सकेगा. 

महत्व चहारदीवारी का है, निर्मित या खुले स्थान का नहीं

वास्तु निर्धारण करने में निर्मित और खुला स्थान दोनों ही लेना चाहिए. कुछ लोगों को यह मानना होता है कि निर्मित भवन पर ही वास्तु को प्रभावी माना जाए या भवन के आगे पीछे जो लॉन, बगीचा या चहारदीवारी के अंदर छूटा हुआ खुला स्थान है, उस पर प्रभावी न माना जाए, यह उचित नहीं है और यह भ्रांति मात्र है. वास्तु में दिशा निर्धारण और पग विन्यास पूरी चहारदीवारी का ही होता है. इसमें निर्माण किए जाने वाला क्षेत्र और चहारदीवारी के अंदर का छूटा हुआ क्षेत्र दोनों शामिल होते हैं, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए. सामान्यतः देखा जाता है कि उचित ज्ञान या मार्ग दर्शन के अभाव में लोगों को इस संदेह के कारण बहुत असुविधा उठानी पड़ती है क्योंकि यह वास्तु शास्त्र का प्रारंभिक व अनिवार्य बिंदु है, जिसके गलत होने पर आगे के सारे सिद्धांत अर्थहीन हो जाते हैं.

उत्तर में कुबेर और दक्षिण में यम का स्थान

प्राचीन काल में लोग दिशा के ज्ञान के लिए ध्रुव तारे को आधार मानते थे,  जो वैज्ञानिक रूप से भी सही प्रतीत होताहै. ध्रुव तारा ठीक उत्तर में हैं और इसका नाम ध्रुव इसलिए है कि क्योंकि यह अडिग है, स्थिर है, इसमें किसी प्रकार का विचलन नहीं है. वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के उत्तरी मध्य बिंदु यानी उत्तरी ध्रुव से एक सीधी रेखा उत्तर की ओर ही खींचते चले जाएं तो यह सीधे ध्रुव तारे पर जाकर मिलेगी अर्थात घूमती पृथ्वी का उत्तरी बिंदु सीधे ध्रुव तारे की सीध में रहता है. यह तो सब जानते हैं कि उत्तर की ओर से चुंबकीय तरंगों का प्रवाह सतत दक्षिण की ओर बहा करता है. 

वास्तु में इसीलिए उत्तर दिशा को कुबेर का स्थान कहते हैं क्योंकि इसी ओर से सदा तरंगों का निर्बाध आगमन होता है. इन तरंगों के उचित उपयोग का सिद्धांत ही वास्तु शास्त्र का मूल आधार है. उत्तर जीवन की दिशा है, स्थायित्व की दिशा है.ऋषि मुनियों ने उत्तर को कुबेर तो दक्षिण को यम की दिशा बताया है. उत्तर को जीवन और दक्षिण को मृत्यु या उत्तर को आगमन और दक्षिण को निगमन की दिशा बताया है.

सूर्य को दिशा का आधार मानना उचित नहीं

घर की छत पर खड़े होकर हर दिन सूर्योदय देखते रहें तो पता लगेगा कि सूर्य भी अपना स्थान बदलता रहता है. देखा जाता है कि लोग दिशाओं का निर्धारण सूर्य से करते हैं, जिस दिशा से सूर्य उदय होता है उसे पूरब मानकर चारों कोण और दिशाएं निश्चित कर लेते हैं पर हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि सूर्य उत्तरायण और दक्षिणायन भी  हुआ करते हैं. सभी जानते हैं कि मकर संक्रांति के बाद सूर्य उत्तरायण और कर्क संक्रांति के बाद दक्षिणायण होते हैं. इसलिए सूर्य उदय के स्थान को ही ठीक पूरब दिशा मान लेना उचित नहीं होगा क्योंकि सूर्य उदय का स्थान निश्चित नहीं है, यह उत्तर या दक्षिण की ओर अयन के आधार पर खिसकता रहता है. दिशा का निर्धारण करने के लिए एक स्थिर बिंदु चाहिए। 

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

 

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