नवजात शिशु के कमरे की सेटिंग करते वक्त इन वास्तु टिप्स का जरूर रखें ध्यान
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नवजात शिशु के कमरे की सेटिंग करते वक्त इन वास्तु टिप्स का जरूर रखें ध्यान

अगर आप अपने नवजात शिशु के लिए सब कुछ बेस्ट करना चाहते हैं तो बच्चे के कमरे की सेटिंग इन वास्तु टिप्स (vastu tips for toddlers) के हिसाब से करिए.

बच्चे का संसार हो खुशियों भरा

नई दिल्ली:  हम सभी जानते हैं कि किसी भी बच्चे के लिए शुरुआती कुछ साल कितने महत्वपूर्ण होते हैं. यही शुरुआती साल उनके संपूर्ण विकास में मदद करते हैं और आने वाले वर्षों के लिए बच्चे की मानसिक और शारीरिक वृद्धि के लिए मजबूत आधार बनाते हैं.

  1. बच्चे के शुरुआती कुछ साल उसके संपूर्ण विकास में सहायक होते हैं
  2. बच्चे का कमरा वास्तु के हिसाब से सेट किया जाना चाहिए
  3. नवजात शिशु के कमरे में पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होना जरूरी है

नवजात के शुरुआती सालों में माता-पिता आमतौर पर बाल रोग विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार ही बच्चे का लालन-पोषण करते हैं. बच्चे के शुरुआती दिनों को खास और सकारात्मक बनाने के लिए वास्तु टिप्स का सहारा भी लिया जा सकता है. वास्तु शास्त्र में अलग-अलग समस्याओं के लिए कई तरह के समाधान मौजूद हैं. उन्हें अपनााकर अपनी ज़िंदगी को सरल और सहज बनाया जा सकता है.

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अगर आप भी अपने नवजात शिशु के लिए सब कुछ बेस्ट करना चाहते हैं तो बच्चे के कमरे की सेटिंग इन वास्तु टिप्स के हिसाब से करिए. नवजात शिशु के कमरे को डिजाइन करते समय वास्तु विशेषज्ञ और वास्तु रविराज के सह-संस्थापक डॉ.रविराज अहिरराव के इन वास्तु टिप्स को ध्यान में रखें:

1. बच्चे के कमरे का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह तथ्य है कि उसे पर्याप्त धूप मिलनी चाहिए, विशेष रूप से सुबह की धूप. इससे उसका दिन सकारात्मक ऊर्जा के साथ शुरू होगा और सुबह की सूरज की किरणें उन अधिकांश कीटाणुओं को मार देंगी जो आमतौर पर हमारे घरों में मौजूद होते हैं. 
2. शिशुओं के लिए सोने की व्यवस्था पूर्वोत्तर क्षेत्र में होनी चाहिए. शिशु के बेडरूम के लिए उत्तर, उत्तर-पूर्व और पूर्व क्षेत्र की दिशाएं आदर्श मानी जाती हैं.
3. बच्चे का पालना दीवार से 2-3 फीट की दूरी पर होना चाहिए और उसे कमरे के ठीक दक्षिण पश्चिम में रखा जाना चाहिए.
4. सोते समय बच्चे का सिर दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए.
5. पूर्वोत्तर दिशा की प्राकृतिक ऊर्जा नकारात्मक शक्तियों को दूर रखने में मदददार साबित हो सकती है.
6. घर के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में उचित संतुलन (जो वायु तत्व से जुड़ा हुआ है), शिशुओं में श्वसन संबंधी समस्याओं को रोकने में मदद करता है.
7. दक्षिण पूर्व क्षेत्र में रसोई या नारंगी रंग का उपयोग होने से (जो अग्नि तत्व से जुड़ा होता है), चया-पचय शक्ति के विकास में मदद मिलती है.
8. पूर्वोत्तर क्षेत्र में जल तत्व की उपस्थिति और आध्यात्मिकता का एक तत्व होने से विचार, नवीनता और रचनात्मकता की स्पष्टता बढ़ जाती है.
9. शिशु के कमरे में कच्चा या सेंधा नमक रखने से नकारात्मक ऊर्जाओं को अवशोषित करने में मदद मिलती है. हालांकि इस नमक को बदलते रहना चाहिए.
10. गहरे और भड़कीले  रंगों से बचते हुए विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि बच्चे के कमरे में हल्का और जीवंत रंग होना चाहिए. यहां तक कि बच्चे के खिलौने भी हल्के और जीवंत रंगों के होने चाहिए. 
11. बच्चे के कमरे में शांति, आध्यात्मिकता और प्रेरणा के दृश्यों को दर्शाने वाले चित्र रखे जाने चाहिए. ये उनके मानसिक विकास में सहायक साबित होंगे. सूरजमुखी की पेंटिंग विशेष रूप से पिट्यूटरी ग्लैंड को सक्रिय करती है, जिससे मानसिक विकास में मदद मिलती है.

वास्तुशास्त्र के माध्यम से माता-पिता अपने बच्चों के समग्र विकास में एक अतिरिक्त सहायता प्रदान कर सकते हैं. बच्चे विशेष रूप से ऊर्जा के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं, इसलिए सकारात्मक वातावरण का चारों ओर मौजूद होना बहुत महत्वपूर्ण है.

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