हाल ही में त्रिवेन्द्र सरकार ने इसके रचयिता का ऐलान कर दिया जबकि पहले पहले माना जाता था कि बद्रीनाथ धाम की आरती नंदप्रयाग के पोस्टमास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने 1860 में की थी.
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संदीप गुसाईं/पुष्कर चौधरी, देहरादून/चमोली(उत्तराखंड): हिमालय में नर नारायण पर्वत की तलहटी में स्थित बद्रीनाथ धाम की 100 साल से जो आरती बद्रीनाथ धाम में होती है, उसे किसने लिखा इस पर विवाद गहराता जा रहा है. आप जब बद्रीनाथ धाम आएं तो शाम के वक्त होने वाली आरती का नजारा देखते ही बनता है. हालांकि, इस साल वहां की हवा में आरती के मंत्रों के साथ एक सवाल भी गूंज रहा है कि 'पवन मंद सुगंध शीतल' आरती असल में लिखी किसने है. इस आरती को 100 से भी ज्यादा साल हो चुके हैं, लेकिन हाल ही में त्रिवेन्द्र सरकार ने इसके रचयिता का ऐलान कर दिया जबकि पहले पहले माना जाता था कि बद्रीनाथ धाम की आरती नंदप्रयाग के पोस्टमास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने 1860 में की थी. अब फखरुद्दीन सिद्दीकी के वंशजों ने एक फिर दावा किया है कि ये आरती उनके पूर्वज ने ही लिखी है. वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र से स्पष्ट कर दिया है कि बद्रीनाथ धाम की आरती स्थानीय लेखक धान सिंह बर्थवाल ने लिखी है.
आखिर क्या है बद्रीनाथ धाम की आरती का पूरा मामला
बद्रीनाथ भगवान के लिए लिखी आरती के सम्बन्ध में सालों से यह मान्यता चली रही है कि चमोली में नंदप्रयाग के एक पोस्टमास्टर फखरुद्दीन सिद्दीकी ने 1860 के दशक में यह आरती लिखी थी. सिद्दीकी भगवान बद्री के अनन्य भक्त थे और लोग बाद में उन्हें 'बदरुद्दीन' बुलाने लगे थे. लेकिन पिछले साल रुद्रप्रयाग जिले विजराणा गांव में स्वर्गीय धन सिंह बर्थ्वाल के वंशजों ने दावा किया कि बद्रीनाथ धाम की आरती उनके पूर्वज धान सिंह बर्थवाल ने लिखी है.
उसके बाद राज्य सरकार ने उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र को शोध कर पता लगाने के निर्देश दिए. यूसैक ने धान सिंह बर्थवाल के वंशजों से पांडुलिपि की प्रतिलिपि की कार्बन डेटिंग की तो मालूम चला कि यह वर्ष 1775 वर्ष में लिखी गई है. उसके बाद राज्य सरकार ने बद्रीनाथ धाम की आरती के असली लेखक धान सिंह बर्थवाल को घोषित कर दिया. उस समय बदरुद्दीन का परिवार कोई भी सबूत नही दे सका तो फिर धान सिंह बर्थवाल के वंशजों के दावे को सच मान लिया गया.
एक बार फिर बदरुद्दीन के वंशजों ने बद्रीनाथ की आरती पर किया दावा
1889 में प्रकाशित एक किताब में यह आरती है और बदरुद्दीन के रिश्तेदार को इसका संरक्षक बताया गया है. यह किताब अल्मोड़ा के एक संग्रहालय में रखी है. उसके मालिक जुगल किशोर पेठशाली का कहना है, 'अल-मुश्तहर मुंसी नसीरुद्दीन को किताब का संरक्षक बताया गया है जो हिंदू धर्म शास्त्र स्कंद पुराण का अनुवाद है और इसके आखिरी पन्ने में आरती लिखी है.'
बदरुद्दीन के वंशजों को इस बात का दुख है कि परिवार की विरासत को उनसे छीना जा रहा है. उनके परपोते अयाजुद्दीन ने कहा, 'वह भगवान बदरीनाथ के भक्त थे, इसलिए परिवार ने उनके विश्वास को जीवित रखा है.' हर साल होने वाली रामलीला में अयाज लंका के राजा रावण के बेटे मेघनाद की भूमिका निभाते हैं. इसलिए मेरे दादा जी ने बद्रीनाथ मंदिर समिति को नंदप्रयाग में केशर व फूल उगाने के लिए जमीन भी दे रखी है, वहीं हमको इस संबंध में किसी ने भी हम से जानकारी नहीं मांगी है.
सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने धन सिंह बर्त्वाल को बताया असली लेखक
बद्रीनाथ धाम की आरती विवाद पर सीएम त्रिवेंद्र ने कहा इसमें विवाद की स्थिति ही नहीं है. सीएम त्रिवेंद्र ने कहा कि बद्रीनाथ धाम की आरती धान सिंह बर्थवाल ने ही लिखी है और कार्बन डेटिंग से ये शोध से सिद्ध हो चुका है और अब इसमें कोई भी शोध की जरूरत नहीं है. जबकि मन्दिर समिति ने दावा किया है कि धन सिंह बर्त्वाल ने ही भगवान बद्रीनाथ की आरती लिखी है जिसका उनके परिजनों के पास सबूत के रूप पांडुलिपी मौजूद है. वहीं बद्रीनात धाम के तीर्थ पुरोहितों व व्यापारियों का कहना है कि हमने आज तक यही सुना है कि बद्रीनाथ जी की आरती किसी मुस्लिम ने लिखी है, लेकिन साथ ही पुरोहितों का ये भी कहना है कि आरती जिस ने भी लिखी हो सरकार इसमें सही ढंग से जांच करें और प्रमाणिकता के साथ सही लेखक को सामने लाये यही सनातन धर्म के लिए अच्छा है.
भगवान बद्रीनाथ धाम में आरती को लेकर हो रहे विवाद पर वरिष्ठ रंगकर्मी जुगल किशोर पेटशाली ने आरती को लेकर सच्चाई खोजने की बात कही है. रंगकर्मी और लेखक जुगल किशोर पेटशाली का कहना है कि उनके संग्रहालय में श्री बदरीश महात्मा नाम की एक किताब रखी है. 1889 में छपी किताब 40 पृष्ठों की है. इसमें भगवान बद्रीनाथ की आरती लिख हुई है. किताब की कीमत उस दौर में चार आना रखी गयी थी. किताब के मुख्य पृष्ठ पर हरि कृष्ण डिमरी ने सही तर्जुमा (व्याकरण संबंधी गलती न हो) किया है. किताब के अंतिम पेज पर भगवान बद्रीनाथ की आरती के साथ अल मुस्तहर मुंशी नसुरूद्दीन ने इत्तलां आम लिखा है. इत्तलां आम के तहत रजिस्ट्रेशन एक्ट 1927 के अनुशार बिना परमिशन इस किताब को कोई अन्य नहीं छाप सकता है. जुगल किशोर पेटशाली का कहना है कि किताब में इत्तलां आम मुस्लिम समुदाय के अल मुस्तहर मुंशी नसुरूद्दीन ने लिखा था और हो सकता है कि उनके रिश्तेदार फखरूद्दीन सिद्दीकी उर्फ बदरूद्दीन ने यह आरती लिखी हो.