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नई दिल्ली: पृथ्वी (Earth) के निर्माण के दौरान नाइट्रोजन (Nitrogen) के स्रोत (Source) की जानकारी से सौरमंडल (Solar System) के निर्माण के समय के बहुत से रहस्य अब साफ हो सकते हैं. गौरतलब है कि अंतरिक्ष (Space) के ज्यादातर अध्ययन जीवन की उत्पत्ति (Origin of life) की खोज से संबंधित होते हैं. ये एक बड़ी चुनौती है हमरे जिनके जवाब की हमारे वैज्ञानिकों के सामने जिसे ढूंढने की कोशिश लगातार जारी है. ऐसा ही एक सवाल है पृथ्वी (Earth) पर नाइट्रोजन गैस (Nitrogen gas) की उत्पत्ति का. शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि पृथ्वी पर नाइट्रोजन उसके आसपास से ही आई है.
राइस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि उल्कापिंडों में पृथ्वी पर नाइट्रोजन उसे आसपास से ही मिली थी. लोह उल्कापिंडों में आइसोटोपिक संकेतों से इस बात का खुलासा हुआ है कि पृथ्वी पर नाइट्रोजन गुरू ग्रह की कक्षा के आगे से ही नहीं बल्कि ग्रह निर्माण के अंदरूनी डिस्क की धूल से भी आई थी.
नाइट्रोजन एक उड़नशील तत्व है जो पृथ्वी पर जीवन संभव बनाने वाले तत्वों जैसे- कार्बन और हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की तरह बेहद महत्वपूर्ण है. नाइट्रोजन के स्रोत की जानकारी वैज्ञानिकों को यह जानने में मदद करेगी कि हमारे सौरमंडल के अंदरूनी हिस्से में कैसे पथरीले ग्रहों का निर्माण हुआ. इसके अलावा प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क के गतिविज्ञान को समझने में भी सहयाक होगा.
नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित इस अध्ययन में प्रमुख लेखक और राइस स्नातक दमनवीर ग्रेवाल (Daman Veer Grewal), राइस फैकल्टी राजदीप दासगुप्ता (Rajdeep Dasgupta) और फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ लॉरेन के जियोकैमिस्ट बर्नार्ड मार्टी (Barnard Marty) शामिल हैं. यह शोध पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य पथरीले ग्रहों में जीवन के लिए आवश्यक उड़नशील तत्वों पर हो रही बहस पर विराम लगाने का काम कर सकती है.
ग्रेवाल ने बताया कि रिसर्चर हमेशा ही सोचते थे कि गुरू ग्रह की कक्षा के पहले के सौरमंडल के अंदरूनी हिस्से नाइट्रोजन और दूसरे उड़नशील तत्वों के ठोस रूप में संघनित होने लिए बहुत गर्म थे. इसका मतलब यह था कि उड़नशील तत्व आंतरिक डिस्क में गैसीय अवस्था में थे.
आज के पथरीले ग्रहों के पहले के हिस्से, जिन्हें प्रोटोप्लैनेट (Protoplanet) कहा जाता है, स्थानीय धूल से आंतरिक डिस्क में बढ़ने लगे थे. ऐसा लगता था कि इसमें नाइट्रोजन और दूसरे उड़नशील तत्व शामिल नहीं थे, जिससे यह धारणा बनी कि ये सौरमंडल के बाहरी हिस्से से ही आए होंगे. इस टीम के पिछले अध्ययन से यह पता चला है कि बहुत सारा उड़नशील समृद्ध सामग्री पृथ्वी से उस टकराव के दौरान आई जिससे चंद्रमा का निर्माण हुआ था.
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लेकिन नए संकेत साफ तौर पर बताते हैं गुरू ग्रह से बाहर से केवल कुछ ही मात्रा में नाइट्रोजन पृथ्वी पर आई थी. हाल के कुछ सालों में वैज्ञानिकों ने उल्कापिंडों में अवाष्पशील तत्वों का अध्ययन किया जिसमें लौह उल्कापिंड भी शामिल हैं जो पृथ्वी पर गिरे हैं. इससे यह पता चला है कि बाहरी और आंतरिक सौरमंडल की धूल में बहुत ही अलग कर आइसोटोपिक संरचना है.
शोधकर्ता जानना चाहते थे कि क्या यह अंतर उड़नशील तत्वों पर भी लागू होता है. जहां लौह उल्कापिंड प्रोटो प्लैनेट की कोर के अवशेष थे जो आज के पथरीले ग्रहों के बीज की तरह थे जिससे शोधकर्ता अपनी परिकल्पना की जांच करना चाहते थे. शोधकर्ताओं ने इन उल्कापिंडों में नाइट्रोजन एक विशेष आइसोटोपिक संकेत पाया जिसकी सौरमंडल के निर्माण के तीन लाख साल बाद ही बारिश हुई थी.
शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी आंतरिक डिस्क के उल्कापिंडों में नाइट्रोजन-15 की मात्रा कम है, लकिन बाहरी डिस्क में ज्यादा इससे पता चलता है कि पहले कुछ लाखों सालों में ही प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क दो अलग नाइट्रोजन के भंडारण में बंट गई थी. शोधकर्ताओं का मानना है कि यह पड़ताल बाह्यग्रहों के अध्ययन के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी.
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