Neanderthal Extinction: वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता! जानें कैसे विलुप्त हुए थे आदिमानव, विनाशकारी इतिहास दोहराने के करीब पृथ्वी
Neanderthal Extinction: एक स्टडी में दावा किया गया है कि ये आदिमानव की प्रजाति जलवायु परिवर्तन से लड़ते हुए खत्म हो गई. धरती का चुंबकीय क्षेत्र खत्म होने और ध्रुवों के पलटने के कारण यह जलवायु परिवर्तन हुआ था. वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि जिस तरह धरती का चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो रहा है, हो सकता है कि ध्रुवों के पलटने का वक्त करीब आ रहा हो.
नई दिल्ली: आदिमानव की प्रजाति निअंडरथल मानव (Neanderthal) पृथ्वी से कैसे विलुप्त हुए? वैज्ञानिकों को इस सवाल का जबाब मिल गया है. अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपनी नई स्टडी मे ये दावा किया गया है कि धरती का चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) खत्म होने और ध्रुवों (Poles) के पलटने के कारण ऐसा हुआ होगा.
दरअसल यह घटना (Laschamp Excursion) 42 हजार साल पहले हुई थी और करीब एक हजार साल तक बिलकुल ऐसे ही हालात बने रहे थे. वहीं, वैज्ञानिकों का अंदाजा है कि यह घटना 2 से 3 लाख साल के अंतराल पर होती है. वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि जिस तरह धरती का चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो रहा है, हो सकता है कि ध्रुवों के पलटने का वक्त करीब आ रहा हो.
धरती का चुंबकीय क्षेत्र क्यों है महत्वपूर्ण
गौरतलब है कि धरती का चुंबकीय क्षेत्र इंसान और दूसरे जीवों के लिए जीवन मुमकिन बनाता है. यह सूरज से आने वाली हानिकारक किरणों जैसे सोलर विंड, कॉस्मिक रेज और हानिकारक रेडिएशन से ओजोन की परत को बचाता है. साथ ही, खत्म होने से काफी पहले कमजोर होते चुंबकीय क्षेत्र के कारण बड़ा नुकसान हो सकता है.
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नाटकीय जलवायु परिवर्तन
स्टडी में कहा गया है कि ध्रुवों में हुए बदलाव के नाटकीय नतीजे रहे होंगे और जलवायु के हालात भीषण बन गए होंगे. इसकी वजह से स्तनपायी जीव विलुप्त हो गए. प्रोफेसर क्रिस टर्नी ने बताया है, 'हम इस काल में उत्तरी अमेरिका के ऊपर बर्फ की परत में तेज बढ़ोतरी देखते हैं, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में ट्रॉपिकल रेन बेल्ट्स तेजी से बदलती हुई दिखती हैं और दक्षिणी महासागर में हवाओं की बेल्ट और ऑस्ट्रेलिया का सूखना भी दिखता है.'
गुफाओं में रहने लगे निएंडरथल
वैज्ञानिकों के अनुसार, इस भयानक बदलाव की वजह से खराब मौसम से बचने के लिए निअंडरथल मानव गुफाओं में छुप कर रहने लगे थे. इस विपरीत हालात की वजह से आपस में हमारे पूर्वजों में प्रतिद्वंदिता बनने लगी होगी और आखिर में वे विलुप्त हो गए. अपनी स्टडी के लिए रिसर्चर्स ने रेडियोकार्बन अनैलेसिस की मदद ली. दुनियाभर से मिले मटीरियल को स्टडी करने पर वैज्ञानिकों ने देखा कि जब कार्बन-14 की मात्रा बढ़ी हुई थी, उसी दौरान पर्यावरण में बड़े बदलाव हो रहे थे.
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विनाश की ओर धरती
वैज्ञानिकों के मुताबिक, धरती के ध्रुव हर 2 से 3 लाख साल में बदल जाते हैं. कुछ वैज्ञानिकों ने कहा है कि धरती का चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो रहा है और इस वजह से ध्रुवों के पलटने का वक्त नजदीक आ रहा हो. हालांकि, कई वैज्ञानिक इस आशंका को नकारते भी हैं. दक्षिण ऑस्ट्रेलियन म्यूजियम के ऐलन कूपर (Alan Cooper of the South Australian Museum) का कहना है कि यह जरूरी नहीं है कि ध्रुव फिर से पलटेंगे ही लेकिन अगर ऐसा होता है तो यह विनाशकारी होगा.
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