6500 साल पहले धरती पर 'भूतों का पहिया' क्यों बनाया गया था? नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा
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6500 साल पहले धरती पर 'भूतों का पहिया' क्यों बनाया गया था? नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

Ancient Wheel Of Ghosts: गोलान हाइट्स पठार पर स्थित 'रज्म अल-हिरी' (Wheel of Ghosts) एक अद्भुत प्राचीन स्मारक है. अभी तक ऐसा माना जाता था कि यह एक तरह की खगोलीय वेधशाला हुआ करता था. लेकिन नई स्टडी इस विचार को चुनौती देती है.

6500 साल पहले धरती पर 'भूतों का पहिया' क्यों बनाया गया था? नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा

Science News in Hindi: इजरायली रिसर्चर्स ने गोलान हाइट्स के पठार पर मौजूद प्राचीन स्मारक 'रज्म अल-हिरी' के रहस्य से पर्दा उठाने का दावा किया है. इस जगह को 'भूतों का पहिया' या 'व्हील ऑफ घोस्ट्स' भी कहा जाता है. अब तक माना जाता रहा कि यहां एक खगोलीय वेधशाला (astronomical observatory) थी. लेकिन, एक नई स्टडी ने इस धारणा पर सवाल खड़े किए हैं. तेल अवीव यूनिवर्सिटी और बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने पाया कि रज्म अल-हिरी ने पिछले हजारों सालों में अपनी स्थिति में अहम बदलाव किया है. इसका मतलब है कि यह संरचना आज जिन खगोलीय पिंडों के साथ अलाइन होती है, वह अलाइनमेंट हमेशा से ऐसा नहीं था.

बार-बार हुआ कंस्ट्रक्शन और एक्सटेंशन

रिसर्चर्स का मानना है कि इस जगह पर कंस्ट्रक्शन 4500 ईसा पूर्व से ही शुरू हो गया होगा. हालांकि, कांस्य युग के दौरान लगभग 3600 से 2300 ईसा पूर्व तक, कई हिस्सों का पुनर्निर्माण और विस्तार किया गया होगा, शायद बाद की शताब्दियों में कुछ और बदलाव किए गए होंगे. पिछली कुछ स्टडीज ने प्रस्तावित किया है कि इसका उपयोग किले या लोकल सभा की जगह के रूप में किया गया होगा.

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इजरायली रिसर्चर्स ने जियोमैग्नेटिक एनालिसिस, टेक्टोनिक रीकंस्ट्रक्शन और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करके यह निष्कर्ष निकाला. उन्होंने पाया कि यह जगह समय के साथ काउंटर-क्लॉकवाइज घूमा है और अपनी मूल स्थिति से दर्जनों मीटर खिसका हुआ है.

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AI को ट्रेनिंग देने में यूज हो सकता है डेटा

रज्म अल-हिरी में केंद्रीय पत्थर के ढेर के चारों ओर कई वृत्ताकार संरचनाएं हैं, जो लगभग 150 मीटर के क्षेत्र में फैली हैं. रिसर्चर्स ने आसपास के इलाकों में अन्य संरचनाओं, दीवारों और दफन टीलों की भी पहचान की है. उनका मानना है कि यहां और भी बहुत कुछ खोजा जा सकता है. रिसर्चर्स के मुताबिक, भविष्य में, इस तरह की जानकारी का इस्तेमाल एआई मॉडलों को ट्रेन करने में किया जा सकता है, जो सैटेलाइट फोटोज चित्रों में मानव निर्मित संरचनाओं की पहचान करने में सक्षम होंगे. रिसर्च के नतीजे 'रिमोट सेंसिंग' पत्रिका में छपे हैं.

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