डियर जिंदगी : उसके ‘जैसा’ कुछ नहीं होता!
कोई किसी के जैसा नहीं होता! हम किसी का पूरा सच नहीं जानते, इसलिए उसके जैसे अरमान में घुलते रहते हैं, यह जीवन के प्रति सबसे बड़ा छल है.
ख्वाहिश का पुलिंदा एक बार खुल जाए, तो उसमें 'काश!' का सैलाब उमड़े बिना नहीं रह सकता. एक बार मन की खिड़की में 'काश!' का पिंडोरा बॉक्स खुला नहीं कि उसे बंद करना बहुत मुश्किल हो जाता है. ‘डियर जिंदगी’ को गुड़गांव से बहुत स्नेहिल, प्रेम से भरा ई-मेल मिला है. शालिनी मल्होत्रा ने लिखा है कि तुलना के धागे कैसे दांपत्य जीवन को उलझाने लगे थे. उनमें तनाव की गांठ पड़ने को ही थी, तभी उनकी मां ने किश्ती को भंवर की ओर जाते देखा, सकुशल निकाल लिया.
उनकी शादी आईटी इंजीनियर रोशन से हुई. रोशन में कोई कमी नहीं थी, बस उनका रंग सांवला था. उनका कद कुछ छोटा था. जबकि शालिनी के परिवार में सब एकदम गोरे-चिट्टे थे. उनके भाइयों के कद अमिताभ बच्चन शैली के थे. शालिनी को यह बात शुरू में ही खटकी थी. लेकिन उनके अभिभावक लड़के को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित थे. इसलिए शादी से इनकार करना मुश्किल था. रोशन की काबिलियत, हुनर, प्रतिभा, व्यक्तित्व से सब इस कदर मोहित थे कि उनके कद और रंग की ओर ध्यान ही नहीं गया.
डियर जिंदगी: गैस चैंबर; बच्चे आपके हैं, सरकार और स्कूल के नहीं!
शालिनी को शादी के एक महीने बाद यह बात पहली बार तब खटकी जब शादी के एलबम बनकर आए! उनकी एक सहेली ने कहा, शालू बाकी सब ठीक है, लेकिन रोशन का रंग तेरे सामने फीका है! अरेंज मैरिज में यही दिक्कत है. तेरे भाइयों के सामने तो रोशन ‘थोड़ा’ कमजोर है. शालिनी के मन में यह बात बैठ गई. संयोग से कुछ समय बाद उसकी छोटी बहन की शादी हुई. तो वहां दोनों की जोड़ी उसके अनुसार एकदम सही थी. शालिनी और रोशन बाहर से तो ठीक थे, लेकिन भीतर कुछ ऐसा था, जिसकी झलक सतह पर दिखनी शुरू हो गई थी.
डियर जिंदगी : रो लो, मन हल्का हो जाएगा!
बातों का कहीं से शुरू होना, कहीं को निकल जाना. छोटी-छोटी बहस का अचानक बड़ी में बदल जाना. शालिनी की मां ने यह सब पकड़ लिया. क्योंकि उन्हें कुछ दिन साथ रहने का मौका मिल गया. उन्होंने शालिनी को अपने स्नेह की छांव में लेकर हर बात को सरलता से सुलझा दिया. मां ने शालिनी से क्या कहा, आप भी पढि़ए, शायद कहीं काम आ जाए!
‘शालिनी, तुम जानती हो! तुम्हारी भाभियां क्यों परेशान रहती हैं. तुम्हारी छोटी बहन के यहां क्या दिक्कत है. उनके पति जो तुम्हारे भाई भी हैं, महिलाओं के लिए उतना सम्मान नहीं, जितना रोशन तुम्हें देता है. हमारे घर के दूसरे पुरुष जिसमें तुम्हारे पिता भी शामिल हैं, पहले पुरुष हैं, बाद में कुछ और. उनके भीतर अपने कद, काठी, सौंदर्य को लेकर न जाने कैसा गुमान है. एक झूठा खानदानी रौब है. लेकिन रोशन में नहीं. शायद इसलिए क्योंकि उसके जीवन में कद, काठी से अधिक उसका व्यक्तित्व प्रधान है. वह पहले तुम्हारा पति है, उसके बाद पुरुष है. उसे अपने भाई, पिता जैसा मत बनाओ, क्योंकि वैसा होना संभव नहीं. और क्यों तुम उसे किसी और की तरह बनाना चाहती हो! मैं तुम्हारी मां हूं, लेकिन तुम्हारी सास तुम्हारी सास है. हम दोनों अलग हैं, यह बातें कि वह मेरी मां जैसी हैं, वह पिता जैसे हैं. एकदम झूठी हैं. सब अलग हैं, सारे रिश्ते खूबसूरत होंगे, बशर्ते वह एक-दूसरे से अलग हों. एक-दूसरे के जैसे नहीं ! क्योंकि कोई किसी के जैसा नहीं होता! हम किसी का पूरा सच नहीं जानते, इसलिए उसके जैसे अरमान में घुलते रहते हैं, यह जीवन के प्रति सबसे बड़ा छल है.’
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