कभी ध्‍यान दिया है, आपकी कौन सी बात दूसरों को सबसे ज्‍यादा परेशान करती है. किस बात का लोग अधिक बुरा मानते हैं. क्‍या है, जो दिल में चुभा रहता है और कौन से कांटे हैं जो आसानी से निकल जाते हैं. क्‍या है, जहां रिश्‍ते अटक जाएं, तो ताउम्र अवसाद के जंगल में भटकते रहते हैं!


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अपने समय से कहिए कि आपको कोई दस बरस पीछे ले जाए. उस वक्‍त जब मोबाइल फोन इस तरह नहीं चहकते थे. बात करने के लिए इंतजार एक इम्‍तिहान की तरह था. बात करने से पहले बात करने की तैयारी हमारी जिंदगी का हिस्‍सा थी. हम रिश्‍ते, संवाद में अपने कहे पर कायम रहते थे. अपने कहे पर कायम रहने वाले को सबसे दिलदार, ईमानदार और प्रतिष्ठित व्‍यक्‍ति माना जाता था.


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तभी मोबाइल, चैटिंग और तकनीक से हमारी जिंदगी में 'फ्री टॉक टॉइम' का शोर आ गया. अब इतनी बातें, इतनी बार कही जाने लगीं कि सुबह से शाम तक हम खुद भूलने लगे कि हमने कहा क्‍या था. जब हम खुद ही भूलने लगे कि कहा क्‍या था, तो दूसरे पर सारी जिम्‍मेदारी कैसे उड़ेली जा सकती है. ऐसा करना तो प्रकृति के नियमों से मुंह फेरने जैसा है.


हममें से उन्‍हें जो हिंदी के गलियारे से होते हुए कॉलेज तक गुजरे. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी, 'उसने कहा था' शायद याद होगी. कहानी की बाकी चीज़ों पर वक्‍त की धूल जम सकती है, लेकिन एक संवाद पाठक के दिमाग में हमेशा के लिए बैठ जाता है. वह है, सूबेदारनी का अपने पति, बेटे के लिए नायक से रक्षा का वचन. अपने मन में आए एक ख्‍याल भर की पवित्रता को कोई कैसे समय आने पर निभा सकता है, 'उसने कहा था' का सार इसी में था.


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डियर जिंदगी में 'उसने कहा था' का उपयोग हम ऐसे विचार को मजबूत करने के लिए कर रहे हैं, जिसका नाम विश्‍वास है. प्रेम, आत्‍मीयता के रास्‍ते चलकर उस बात को निभाने में है, जो हमने किसी से सहज भाव में, लेकिन आत्‍मा की गहराई के साथ कही थी.


समय गुजरता है. हम जिंदगी की दौड़ में शामिल होते हैं. खुद को संघर्ष की ताप में झोंकते हैं. जब हम संघर्ष की तपिश में खुद को निखारते हैं, तो सब ख्‍याल रहता है. लेकिन जैसे ही हम तपिश को पार करके थोड़ी सी ऊंचाई पर पहुंचते हैं, हम उन वादों, इरादों और अपने कहे से दूर भागते जाते हैं.


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यहां 'उसने' के दायरे में वह सब हैं, जिन्होंने जिंदगी के मोड़ पर दूसरों से वायदे किए थे. वो जो हममें और हमारे अपनों में करार था, उस करार का क्‍या हुआ! हम राहों पर किए वादे, अगले मोड़ पर भुलाकर अंतर्मन में  शांति तलाश रहे हैं.


यह सब तो वह बातें हुईं, जिनसे हम रोज मिल रहे हैं. जिनका जिक्र आए दिन हो रहा है. लेकिन जीवन की शांति, सुकून के लिए हम अगर इतना भी कर सकें कि सप्‍ताह में एक घंटा उन दिनों के लिए निकाल सकें, जो आपको आपके कहे की याद दिला सकें. तो यह  रिटर्न गिफ्ट से कम नहीं होगा.


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जिंदगी तमाम तरह के स्‍पीड ब्रेकर, दिमागी रुकावटों, रिश्‍तों की सिलवटों से रुक गई है. यह बस मिलकर एक रोज़ हमारे दिल को घेर लेते हैं. जब दिल ज्‍यादा घिर जाए तो इसी संकट को डॉक्‍टरी भाषा में  हम 'हार्ट अटैक' कहते हैं.


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डॉक्‍टर अपना काम जानते हैं, लेकिन उनकी कुछ मदद तो हम कर ही सकते हैं. अपनी यादों की खिड़की में फंसे जालों को हटाइए. जीवन को उदार, सरल और स्‍नेही बनाइए. आपके काम पूरे हों, इसके लिए दूसरों से जो कहा है, पहले उस पर भी खरा उतारिए.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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