उनको पिता से बहुत शिकायत है. इतनी कि कई बार वह उनसे ऐसे रूठ जाती हैं कि महीनों बात नहीं करतीं. उनका कहना है कि अगर पिता ने साथ दिया होता, तो वह आज कुछ ‘और’ होतीं. उनकी शिकायत कितनी बासी है, इसका अनुमान ऐसे लगाइए कि उनकी पंद्रह बरस की बेटी को भी पता है कि मां कभी-कभी नाना से क्‍यों अचानक नाराज हो जाती है. इस बच्‍ची की मां और नाना में इस तरह रूठना, मनाना चलता रहता है, क्‍योंकि दोनों एक ही शहर में हैं.


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अपने पिता से नाराज रहने वाली इस पर्याप्‍त बड़ी हो चुकी बेटी की सबसे बड़ी नाराजगी है कि उसका इंजीनियरिंग में दूसरे शहर के कॉलेज में प्रवेश इसलिए नहीं हो सका, क्‍योंकि पिता ने उसे अकेले बाहर जाने की अनुमति नहीं दी. उन्‍हें यह जरूर कहा गया कि अगर शहर का ही दूसरा कॉलेज मिल जाए तो वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई जारी रख सकती हैं. लेकिन उसके बाद घर की स्थि‍त‍ियों ने ऐसा मोड़ लिया कि सब कुछ हमेशा के लिए बदल गया.


डियर जिंदगी: जो बिल्‍कुल मेरा अपना है!


अगले साल दिल्‍ली में सिख समाज विरोधी दंगों के चलते उनके परिवार को द‍िल्‍ली से पंजाब पलायन करना पड़ा. उनका इंजीनियर‍िंग का सपना हमेशा के लिए टूट गया!


हरप्रीत कौर का अपने पिता से गुस्‍सा होना स्‍वाभाविक है. लेकिन कब तक! हर चीज की उम्र होती है. जब जिंदगी बेहिसाब नहीं, तो नाराजगी कैसे हमेशा रहनी चाहिए. दूसरों को क्षमा करने की प्रक्रिया असल में खुद को खाली करने की दिशा में बड़ा काम है. हमें क्षमा की अर्जियां आने की प्रतीक्षा में समय नहीं गंवाना है. बल्कि माफ करते चलना है. जिससे हम खाली होते रहें. हमारी आत्‍मा की नदी का प्रवाह रुके नहीं, सतत चलता रहे. दूसरों के प्रति विचार जितने निर्मल, आशा, विश्‍वास से भरे होंगे. हम स्वयं भी जीवन का उतना ही आनंद ले पाएंगे!


डियर जिंदगी: असफल बच्‍चे के साथ!


हरप्रीत कौर के दिल्‍ली से पंजाब लौटने के बाद जल्‍द ही शादी कर दी गई. उसके बाद उनके पति, परिवार उन्‍हें बार-बार आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए मनाने की कोशिश करते रहे, लेकिन हरप्रीत नहीं मानीं.


उनके मन में पिता के प्रति गहरा असंतोष है, जो बढ़ती उम्र के साथ गहरी उदासी, नकारात्‍मकता में बदलता जा रहा है. यह असंतोष उम्र बढ़ने के साथ घटना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके लिए अकेली हरप्रीत जिम्‍मेदार नहीं, उनके पिता के सामंती, बेटियों के बारे में पुरातन विचार भी जिम्‍मेदार हैं.


डियर जिंदगी : बच्‍चों को अपने जैसा नहीं बनाना !


लेकिन पिता की गलती के लिए हरप्रीत स्‍वयं को कब तक जिम्‍मेदार मानती रहेंगी! आज जबकि वह खुद अभिभावक की भूमिका में हैं, संभव है वह पिता की मनोदशा को कुछ हद तक महसूस कर लें. उसके बाद भी यह कहना संभव नहीं कि वह खुद को अपनी सजा से कब तक आजाद कर पाएंगी.


ध्‍यान रहे, हर व्‍यक्ति की सोच स्‍वतंत्र है. क्‍योंकि हर मनुष्‍य आजाद है. जब हम सबकी सोच नहीं बदल सकते, तो दूसरे के गलत निर्णय को दिमाग में कब तक लादे भटकते रहेंगे. यहां आपके अलावा हर कोई दूसरा है. भले ही वह पिता क्‍यों न हों. क्‍योंकि निर्णय उनका था.


जिंदगी में सब कुछ नियंत्रण में होना संभव नहीं. हमें हर चीज के लिए दूसरों को दोष देने, खुद को कोसते रहने की जगह नई ‘कोपल’ की तरह मुश्किलों के बाद भी खिलने की कोशिश करनी चाहिए.


जरा ध्‍यान से देखिए, कहीं हरप्रीत की तरह आप भी किसी दूसरे के निर्णय की सजा स्‍वयं को तो नहीं दे रहे!


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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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