कोई कैसे हमें इतना मजबूत बना देता है कि हम दुनिया का सामना हंसते हुए आसानी से कर लेते हैं. ठीक इसके उलट कैसे कोई एक रिश्‍ता हमें इतना कमजोर बना देता है कि जिंदगी छोटे से उलटफेर का सामना नहीं कर पाती!


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इस तरह देखेंगे तो पाएंगे कि रिश्‍ते जिस तरह की धूप में खिलते हैं, कुछ वैसी ही धूप में कुम्‍हलाते भी हैं. हमें उस ‘कैमिस्‍ट्री' को समझने की जरूरत है, जिनसे रिश्‍तों को विटामिन मिलता है! इस समय दिल्‍ली जैसे महानगर के साथ भोपाल, लखनऊ, पटना, रांची और जयपुर जैसे शहर में भी हर दिन जैसे एक खबर के लिए पहले से ही जगह तय होती जा रही है. यह खबर है, आत्‍महत्‍या की!


मैं हर दिन दिल्‍ली, देश के लगभग दस से पंद्रह अखबार से गुजरने के बाद यह बात कहने जा रहा हूं. आत्‍महत्‍या की खबरों के प्रकार, सामने आए संभावित कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि अधिकांश आत्‍महत्‍या के किरदार, कारण मानसिक हैं. यदि आप उस दिन के अखबार पढ़कर यूं ही छोड़ नहीं दें, तो जब आप ऐसी खबर के मूल कारण तक जाने की कोशिश करते हैं तो पता चलता है कि उसमें कहीं न कहीं ‘मन के पेंच’ गहरे हैं.


डियर जिंदगी: आपने मां को मेरे पास क्‍यों भेजा!


अभी दिल्‍ली में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसमें एक युवा दंपति, जिसने घरवालों की मर्जी के खिलाफ प्रेम विवाह किया. मुश्किल से बाद में सबको मनाया. जब सब ठीक हो गया तो एक-दूसरे से लड़ना शुरू कर दिया!


पहली नजर में आपको यह बात अजीब लग सकती है, लेकिन अनेक रिश्‍तों, किरदारों को देखने, कई बरस के अध्‍ययन, संवाद के बाद मैं यह बात कह रहा हूं कि जब हम बाहरी चीजों से जीत जाते हैं, तो उसके बाद उस व्‍यक्ति से हमारा संघर्ष शुरू हो जाता है, जो सबसे निकटतम होता है!


डियर जिंदगी: बच्‍चों को रास्‍ता नहीं , पगडंडी बनाने में मदद करें!


अगर आप अकेले हैं तो यह निकटतम व्‍यक्ति आपका दोस्‍त, सखा, भाई हो सकता है. अगर आप विवाहित हैं तो बहुत संभव है कि यह आपका जीवनसाथी हो!


ऐसा होना स्‍वाभाविक है, अगर आप एक-दूसरे को सुनने, समझने की क्षमता विकसित नहीं कर पाए हैं. यह एक जीवनशैली है. जो एक दिन में आपमें समाहित नहीं होती. एक प्रक्रिया के तहत आपको इसमें ढलना होता है.


लेकिन अगर आप हमेशा अपनी नजर से चीजों को देखेंगे तो रिश्‍तों की बगिया महकने की जगह कुम्‍हलाने लगेगी. आपको अपने जीवनसाथी, दोस्‍त, परिवार की कोई बात कितनी भी चुभ जाए, खराब लगे, लेकिन उसका समाधान ‘आत्‍महत्‍या’ कैसे हो सकती है. आत्‍महत्‍या तो असल में सज़ा है, जिसे आप अभी कुछ देर, समय, साल पहले इतना प्रेम करते थे कि उसके बिना जीवन ही संभव नहीं दीखता था.


डियर जिंदगी: ‘गंभीर’ परवरिश !


इसलिए, मेरा विनम्र सुझाव है कि अपने को भीतर से रिक्‍त करने के केंद्र बनाइए. साहित्‍य, सिनेमा, संवाद यह तीन सबसे सुलभ साधन हैं, स्‍वयं को मुक्‍त करने, अपने भीतर समाई निगेटिव ऊर्जा को बाहर निकालने के. इनकी अंगुली पकड़िए ताकि जिंदगी का साथ बना रहे.


जीवन का साथ बनाए रखने, जिंदगी का साथ निभाने के लिए उस रास्‍ते को न चुना जाए, जिससे संवाद हमेशा के लिए टूट जाता है. इतना ही नहीं उस टूटन की चुभन आजीवन उनके मन में रह जाती है, जिन्‍हें आप सबसे अधिक प्रेम करने का दावा कुछ देर पहले तक करते थे!


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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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