डियर जिंदगी: ‘ऐसा होता आया है’ से मुक्ति!
जिंदगी में कुछ भी हासिल करने का संबंध केवल योग्यता से नहीं. उस योग्यता को साहस, डटे रहने और हिम्मत नहीं हारने का साथ सबसे जरूरी है!
हम सब जिस चीज से सबसे अधिक डरते हैं, वह है भविष्य की चिंता! जिसमें हम सबसे कम रहते हैं, वह गली वर्तमान की है. जिस मोहल्ले में सबसे ज्यादा वक्त गुजारते हैं, वह अतीत है! हमारी जीवन प्रक्रिया वर्तमान, अतीत और भविष्य के गड़बड़झाले में कुछ ऐसी उलझी है कि जिंदगी ‘मनुष्य और मनुष्यता’ के मूल सिद्धांत से बहुत दूर निकल आई.
पहले हमने नियम बनाए. उसके बाद नियम हमें बनाने लगे. हम भूल गए कि हमारा एक काम परिवर्तन भी है! हमने जिंदगी को जकड़न का पर्यायवाची बना लिया. जब भी हमारे सामने कोई सवाल आता है, हम सबसे पहले ‘रूल बुक’ की ओेर दौड़ते हैं. जरा अपने सामाजिक नियम कायदे, परंपरा की ओर ध्यान से देखिए. बहुत आसानी से समझ जाएंगे कि हम किस कदर ‘रोबोटिक’ (यंत्रवत्) हो चले हैं.
डियर जिंदगी: कुछ धीमा हो जाए...
‘ऐसा होता आया है’ का नियम हमारे भीतर गहरा बसा है. जब भी कोई निर्णय करना होता है, हम साहस, स्वतंत्रता और जीवन को महत्व देने की जगह नियम की ओर देखने लगते हैं. हम चीजों को वर्तमान में देखने की जगह हर बार अतीत के आंगन में दौड़ने लगते हैं. इससे जीवन के प्रति हमारी दृष्टि बाधित हो जाती है. मैं क्या कर सकता हूं कि इसका मेरे दादाजी, पिताजी और परिवार से कोई सीधा संबंध नहीं है. उनकी कार्यक्षमता और बौद्धिकता का भी मुझसे कोई संबंध नहीं. अगर ऐसा होता, तो हमारे बीच वह सब महानतम वैज्ञानिक, इंजीनियर, लेखक और शोधार्थी नहीं होते, जिन्होंने एकदम शून्य से आकर दुनिया को महानतम विचार, खोज और आविष्कार दिए.
डियर जिंदगी: मन को मत जलाइए, कह दीजिए !
अगर ‘ऐसा होता आया है’ का चक्रव्यूह नहीं तोड़ा गया होता, तो सोचिए आज महिला, दलित चेतना की स्थिति क्या होती. 'ऐसा होता आया है, इसलिए यही होगा' का सबसे सटीक उदाहरण महिलाओं के बारे में आए नए विचार ही हैं. इस बारे में राजा राममोहन राय हमारे सबसे बड़े नायकों में से एक हैं. उसके बाद इस कड़ी में आरिफ मोहम्मद खान का नाम आता है. जिन्होंने मुस्लिम महिलाओं को तलाक, गुजारा भत्ता जैसे प्रश्नों पर दकियानूसी ख्यालों से आगे निकालने में बड़ी भूमिका निभाई.
आप सोच रहे होंगे कि ‘डियर जिंदगी’ में अचानक हम सामाजिक संदर्भ को क्यों ले आए. वह इसलिए कि इस बीच मुझे जो ई-मेल, फेसबुक मैसेज मिले हैं, उनमें अपनी परिस्थितियों, सामाजिक स्थितियों और पारिवारिक संदर्भों का जिक्र बहुत गहराई से है. हममें से अनेक लोगों को लगता है कि वह जो कुछ नहीं कर पाए, उसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी उनके परिवार और पारिवारिक स्थितियों की रही है.
डियर जिंदगी: 'कम' नंबर वाले बच्चे की तरफ से!
कुछ ऐसे युवा हैं, जो लगभग हर दिन लिखते हैं कि वह अपने परिवार के सामंती, दकियानूसी विचारों का विरोध केवल इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उनके यहां ऐसा ही होता आया है. उनके पिताजी ऐसा करते थे, क्योंकि दादाजी को ऐसा करते देखा गया था. अब बेटा भी वही कर रहा है. जैसे ही वह राह बदलने की कोशिश करता है, सबसे पहले परिवार की बाधा उसके सामने आती है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि क्या किया जाए!
डियर जिंदगी: चलिए, माफ किया जाए!
मैं अपने पारिवारिक, सामाजिक-आर्थिक अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूं कि अगर आप कुछ करना चाहते हैं लेकिन मुश्किल, बाधा को नहीं पार करना चाहते, तो आप हमेशा लक्ष्य से दूर रहेंगे! जिंदगी में कुछ भी हासिल करने का संबंध केवल योग्यता से नहीं. उस योग्यता को साहस, डटे रहने और हिम्मत नहीं हारने का साथ सबसे जरूरी है!
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