डियर जिंदगी: कुछ धीमा हो जाए...
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डियर जिंदगी: कुछ धीमा हो जाए...

धीमा होना कोई खराब चीज़ नहीं. न चलना ठीक नहीं. लेकिन धीमे होने में कोई बुराई नहीं. सबसे जरूरी केवल चलते जाना है!

डियर जिंदगी: कुछ धीमा हो जाए...

हम एक ऐसे समय की ओर बढ़ रहे हैं, जहां सब कुछ इतना तेज़ होता जा रहा है कि धीमे होने को योग्‍यता में कमी माना जाने लगा है. हम खुद को कहीं भूल आए हैं. अपने उस होने को जिससे मेरी पहचान थी. अब यह जो 'मैं' बचा हूं, वह तो दुनिया के बनाए ढांचे के अनुसार तैयार किया गया 'मैं' हूं. इसीलिए, जब-जब दुनिया का दबाव बढ़ता है, हमारा दम घुटने लगता है. हम खुद को बहुत पीछे छूटता हुआ मानने लगते हैं. यह असल में स्‍वयं से 'डिस्कनेक्शन' (अलगाव) से उपजा भाव है.

हमारा स्‍वयं से 'डिस्कनेक्शन' इतना ज्‍यादा होता जा रहा है कि हम अपनी आवाज़ से दूर होते जा रहे हैं. अपने मिज़ाज से अलग-थलग. खुद से अकेले. ऐसे में अपनी आवाज़ कहां से सुन पाएंगे. हम खुद के जितने अधिक नजदीक रहते हैं, हमारे ऊपर दूसरी चीज़ों का असर उतना ही कम होता है.

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आइए, 'डिस्कनेक्शन' को एक उदाहरण से समझें. कभी-कभी अपने को सभी व्‍यस्‍ताओं से दूर ले जाएं. वैसे तो इसके लिए आप कोई भी जगह चुन सकते हैं, जहां आप यथासंभव अकेले हों. कई विकल्‍प हो सकते हैं, लेकिन प्रकृति इनमें सबसे बेहतर है. प्रकृति की छांव में थोड़ा भीतर तक जाइए. जंगल, पार्क, नदी का किनारा जहां मोबाइल, आपको दुनिया से जोड़ने वाला शोर न हो. वहां आप देखेंगे कि पेड़ से अगर पत्‍ता भी गिरता है, तो उसकी आवाज सुनाई देती है. पत्‍तों की सरसराहट, हवा की आहट, फूलों की महक, मिट्टी की गमक आसानी से महसूस हो रही है.

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पहले यह सब आसानी से महसूस होता था. हम ठहरकर चीज़ों का सुख लेते थे. अब केवल तस्‍वीर लेते हैं. हमारे लिए कुछ सुंदर, अच्‍छे के अहसास से अधिक कीमती 'तस्‍वीर' हो गई. ऐसे में प्रकृति के पास जाकर खुद को महसूस करना हमें जिंदगी की लय को पाने में मदद करेगा. जिंदगी से सांसों के संवाद को तनाव से मुक्‍त करेगा! अपने ख्‍याल, होने का एहसास हम न जाने किस गली में छोड़ आए. इसीलिए, बाहरी चीज़ों के फेर में आसानी से उलझते हैं. यह खुद से अलगाव का स्‍पष्‍ट संकेत है.

एक रोज़ कोई आकार हमें अहसास कराता है कि अरे! दुनिया तो कहां निकल गई, आप पीछे रह गए. हम घबरा जाते हैं कि न जाने हमारा क्‍या होगा. जबकि धीमे होने से कुछ नहीं होता! धीमा होना कोई खराब चीज़ नहीं. न चलना ठीक नहीं. लेकिन धीमे होने में कोई बुराई नहीं. सबसे जरूरी केवल चलते जाना है!

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इसलिए जब कभी आपको लगे कि आप दूसरों से पिछड़ रहे हैं. दूसरों के मुकाबले आप कम हासिल कर पाए. कहीं और तक पहुंचना था, लेकिन कहीं अटककर रह गए. ऐसी स्थिति में हमें सबसे पहले  जांचना है कि स्‍वयं से हमारे संवाद की स्थिति क्‍या है. कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा कि सब कुछ पकड़ने के चक्‍कर में हमारा खुद से 'डिस्कनेक्शन' हो गया है.

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अगर हां, तो इसके लिए समय रहते प्रयास करना होगा. बाकी सब ठीक है. सबसे खतरनाक स्‍वयं से दूरी है. इसलिए सब संभल जाएगा, बस खुद के पास रहें. अपने को किसी भी स्थिति में खुद से दूर नहीं होने देना है!

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पता : डियर जिंदगी (दयाशंकर मिश्र)
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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)

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