डियर जिंदगी: कुछ धीमा हो जाए...
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डियर जिंदगी: कुछ धीमा हो जाए...

धीमा होना कोई खराब चीज़ नहीं. न चलना ठीक नहीं. लेकिन धीमे होने में कोई बुराई नहीं. सबसे जरूरी केवल चलते जाना है!

डियर जिंदगी: कुछ धीमा हो जाए...

हम एक ऐसे समय की ओर बढ़ रहे हैं, जहां सब कुछ इतना तेज़ होता जा रहा है कि धीमे होने को योग्‍यता में कमी माना जाने लगा है. हम खुद को कहीं भूल आए हैं. अपने उस होने को जिससे मेरी पहचान थी. अब यह जो 'मैं' बचा हूं, वह तो दुनिया के बनाए ढांचे के अनुसार तैयार किया गया 'मैं' हूं. इसीलिए, जब-जब दुनिया का दबाव बढ़ता है, हमारा दम घुटने लगता है. हम खुद को बहुत पीछे छूटता हुआ मानने लगते हैं. यह असल में स्‍वयं से 'डिस्कनेक्शन' (अलगाव) से उपजा भाव है.


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