डियर जिंदगी: मन को मत जलाइए, कह दीजिए !
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डियर जिंदगी: मन को मत जलाइए, कह दीजिए !

आपको जिससे भी परेशानी है , उससे बात कीजिए. अपनी बात सही तरीके से, लेकिन शांति, सौम्यता से रखिए.

डियर जिंदगी: मन को मत जलाइए, कह दीजिए !

आज एक ऐसी कहानी आपके सामने है, जो हममें से बहुत से लोगों के लिए जरूरी खुराक जैसी है. गुड़गांव की स्‍नेहा वर्मा एक बड़ी मल्‍टीनेशनल कंपनी में काम कर रहीं थीं, कुछ समय पहले उन्‍होंने वहां से इस्‍तीफा देकर एक छोटी कंपनी में जाने का फैसला किया. इस फैसले की उनके अनेक मित्रों, रिश्‍तेदारों ने आलोचना की, लेकिन वह अपने फैसले पर कामय रहीं. इसके छह महीने बाद वह ‘डियर जिंदगी’ के एक ‘जीवन-संवाद’ में मिलीं. वहां उन्‍होंने अपने अनुभव साझा किए.

स्‍नेहा ने बताया कि वहां काम करते हुए उनको बहुत कुछ सीखने को मिला. वह जमकर, बढ़िया  तरीके से काम कर रहीं थीं. सब कुछ ठीक ही चल रहा था, इसी दौरान उन्‍होंने पाया कि उनका काम आहिस्‍ता-आहिस्‍ता बढ़ता जा रहा था. उन्‍होंने इसे सहज भाव से स्‍वीकार किया. उन्‍हें लगा कि जिम्‍मेदारी का अर्थ यह है कि उन पर कंपनी का भरोसा बढ़ता जा रहा है. लेकिन धीरे-धीरे उनने पाया कि केवल काम बढ़ रहा है. उसके साथ ही वह अपने बॉस के लिए ऐसी कर्मचारी बन गईं, जिन पर जब चाहे दूसरों के हिस्‍से का गुस्‍सा भी फूटने लगा.

डियर जिंदगी: 'कम' नंबर वाले बच्‍चे की तरफ से!

उन्‍होंने बताया कि इससे उनकी ‘द‍ुनिया’ ही पलट गई. वह अपने पांच साल के बेटे के साथ तक असहज होने लगीं. उनके पति को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अच्‍छी भली ठहाकेबाज़ पत्‍नी का अचानक से आत्‍मविश्‍वास कैसे हिल गया. जबकि इससे पहले वह कहीं बड़ी कंपनियों में काम कर चुकी थीं. आखिर में उन्‍होंने एक मनोचिकित्‍सक के पास जाने का फैसला किया. उन्‍होंने सारी बातें सुनने के बाद केवल दो बातों की सलाह दी.

आपको जिससे परेशानी है, उससे बात कीजिए. अपनी बात सही तरीके से, लेकिन शांति, सौम्यता से रखिए. जिंदगी नौकरी से कहीं जरूरी है. कंपनी का आकार नहीं, वहां मिलने वाले माहौल को महत्‍व दीजिए. अपनी ओर से चीज़ों को ठीक करने की कोशिश करें, लेकिन इसके साथ ही परिवर्तन के लिए भी तैयार रहें.

डियर जिंदगी: चलिए, माफ किया जाए!

इसके बाद स्‍नेहा ने सबसे अच्‍छा काम यह किया कि उन्‍होंने तुंरत अपने बॉस से इस बारे में विस्‍तार से संवाद किया. वह कहती हैं कि पहली बार मुझे समझ में आया कि बॉस भी बुरे व्‍यक्ति नहीं हैं. लेकिन वह अपनी चीज़ों को ठीक से संभाल नहीं पा रहे हैं, यही तनाव का सबसे बड़ा कारण है.

स्‍नेहा ने कहा, 'उनकी असफलता की कीमत मैं कब तक चुकाती!' बॉस ने यह भी स्‍वीकार किया कि वह अक्‍सर दूसरों का गुस्‍सा उनके ऊपर निकाल देते हैं, क्‍योंकि दूसरों के मुकाबले स्‍नेहा का व्‍यक्तित्‍व उदार, संवेदनशील है. स्‍नेहा ने कहा, ये तो उनके प्रति अन्‍याय है . इसका बॉस के पास कोई जवाब नहीं था. इसके बाद स्‍नेहा ने परिवर्तन के हिसाब-किताब को अधिक महत्‍व नहीं दिया. उन्‍होंने जीवन को महत्‍व दिया.

डियर जिंदगी: शोर नहीं संकेत पर जोर!
 
जिंदगी में सबसे कीमती आप हैं . सबसे! आपसे मूल्‍यवान कुछ नहीं. कोई सपना नहीं. कोई वादा, इरादा नहीं. इसलिए, अपनी चिंता सबसे पहले कीजिए. इससे उन सबकी चिंता अपने आप हो जाएगी, जिनके सरोकार हमारे लिए सबसे अधिक मायने रखते हैं.

स्‍नेहा ने जो निर्णय लिया. उस पर हमारे अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं. हम सब अलग-अलग राय के लिए स्‍वतंत्र हैं. जहां तक मेरा प्रश्‍न है, मैं पूरी तरह से उनके साथ हूं. क्‍योंकि जीवन के प्रति मेरी प्राथमिकता एकदम स्‍पष्‍ट है. हमारा जीवन अनंत संभावना से भरपूर है. हमें उसे छोटी-छोटी चीज़ों, विवादों में उलझाए नहीं रखना है. उसे नए आसमां की ओर ले जाना है.

जैसे स्‍नेहा ने किया !

डियर जिंदगी: विश्‍वास के भरोसे का टूटना !

आशा , हमसे दोगुना तेज़ चलती है. बस हमें उसके लिए एक कदम पहले चलना होता है. जिंदगी मुश्किल नहीं, अगर कुछ कठिन है, तो वह हमारे सोचने का तरीका. बस उसे बदलने की जरूरत है!

ईमेल dayashankar.mishra@zeemedia.esselgroup.com

पता : डियर जिंदगी (दयाशंकर मिश्र)
Zee Media,
वास्मे हाउस, प्लाट नं. 4, 
सेक्टर 16 A, फिल्म सिटी, नोएडा (यूपी)

(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)

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