एक बेटी का भारत माता को खत- मां अब बहुत डर लगता है...
प्यारी सी नन्ही परी तो मां बोलना भी नहीं सीख पाई और आपके ही एक बेटे ने उसे ऐसा घिनौना दर्द और मौत दी कि कलेजा मुंह को आ जाए.
प्यारी भारत मां,
मैं आपके देश की बेटी हूं, ये ख़त में आपको इसलिए लिख रही हूं क्योंकि अब दर्द हद से ज़्यादा बढ़ गया है, ज़ुल्म जानलेवा वहशियाना हो गया है. आप भारत की मां हैं इसलिए अपनी बेटियों की कराह सुन सकती हैं उनका दर्द मेहसूस कर सकती हैं. मैं देश की तमाम बेटियों की आवाज़ आप तक पहुंचाना चाहती हूं. जब मैं आपको ये ख़त लिख रही हूं तो हाथ कांप रहे हैं और आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं. मां हम मासूम बेटियां कहां जाएं यहां तो दरिंदों ने सारी हदें पार कर दी हैं, मां अब बहुत डर लगता है कि हम कहां जाएं. चाहे 80 साल की बुज़ुर्ग हो या फिर आठ महीने की मासूम हम कहीं महफूज़ नहीं हैं. कल ही तो खबर आई इंदौर में 8 महीने की मेरी बहन के साथ उसके ही रिश्ते के मामा ने दुष्कर्म किया. सिर्फ़ 8 महीने की थी वो, जिस्म के नाम पर सिर्फ़ हाथ पैर ही तो बने थे लेकिन बहन से बदला लेने के लिए मामा ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं. कितना दर्द, तकलीफ़ हुई होगी मेरी बहन को, उफ़्फ़ जान ही क्यों ना निकल गई मेरी ये दिन देखने से पहले. प्यारी सी नन्ही परी तो मां बोलना भी नहीं सीख पाई और आपके ही एक बेटे ने उसे ऐसा घिनौना दर्द और मौत दी कि कलेजा मुंह को आ जाए. शरीर के वो अंग जिसको देखकर मर्द बेकाबू हो जाता है वो तो उस मासूम में ठीक से बने ही नहीं थे, फिर ऐसा कौन सा सुख मिल गया होगा उसे हैवान को जो अपना बदला लेने के लिए प्यारी सी परी को फूल बनने से पहले ही रौंद दिया.
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आप तो भारत माता हैं ना पूरे देश की मां, आपके लिए तो बेटे-बेटियां सभी बराबर हैं फिर हमारे साथ ये ज़ुल्म क्यों ? हम मेहफूज़ क्यों नहीं हैं ? कोई घर से, सड़क से, बाज़ार से, स्कूल से, उठा ले जाए हमें. हम कहां जाएं ? किस पर यक़ीन करें ? अब तो हर हाथ से डर लगने लगा है, हर गोदी दहशत पैदा करने लगी है. हां ये सच है कि मैं शायद ज़्यादा डर गई हूं लेकिन क्यों ना डरूं. आखिर रोज़ाना हो तो मेरी मासूम बेटियों को शिकार बनाया जा रहा है, घिनौनी मानसिकता के हैवान लोग किसी को तो नहीं बख़्श रहे हैं. अपनी आपसी नफ़रत मिटानी हो, किसी से बदला लेना हो, किसी को सबक सिखाना हो, किसी धर्म से नफ़रत हो, अपनी हवस मिटानी हो...हर निशाना हम बेटियां ही क्यों बनती हैं ? मां बहुत दर्द हो रहा है, मुझसे सहा नहीं जा रहा है, आखिर क्या हम सिर्फ़ जिस्म से ज़्यादा कुछ नहीं बचे हैं, उफ्फ़ कुछ दरिंदे तो कलियों को भी कुचल देते हैं.
निर्भया के पहले भी और उसके बाद भी कुछ नहीं बदला है, शायद सब और भयावह, डरावना हो गया है. निर्भया के साथ जो दरिंदगी हुई उसने पूरे देश को हिला दिया लेकिन वैसी ही दरिंदगी ना जाने आपकी कितनी बेटियों के साथ होती आई है. एक भी दिन ऐसा नहीं जाता है कि जब अख़बार में किसी बेटी से दरिंदगी की ख़बर ना छपी हो. आप तो भारत माता हैं, इस देश पर आपको गर्व होता होगा लेकिन अब मुझे शर्म आने लगी है मुझे गर्व नहीं होता है, मैं शर्मिंदा हूं कि मेरे देश में. मैं, मेरी बहनें सुरक्षित नहीं हैं, मासूम बच्चियां दरिंदों का शिकार बन रही हैं. कई बार तो लगता है कि हम जानवरों से बिना वजह डरते हैं, असल में सबसे ख़तरनाक़ कोई है तो वो हमारे आसपास मौजूद इंसान ही हैं. हमारे अड़ोस-पड़ोस में ही रिश्तेदार, पहचान वालों के भेष में वहशी हैं. मां अब डर लगने लगा है. डर इतना कि ईश्वर से दुआ करती हूं कि अब इस देश में पैदा ही मत करना.
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हां, अब सरकार ने बच्चियों से बलात्कार करने वाले वहशियों को फांसी देने का फ़ैसला किया है. थोड़ी खुशी तो ज़रूर है कि अब फांसी की सज़ा शायद दहशत पैदा करे और भारत माता की बेटियां खुद को सुरक्षित मेहसूस कर सकें. लेकिन उनका क्या करेंगी आप जो बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को भी धर्म से, राजनीति से जोड़ देते हैं, मुझे शर्म आती है जब हमारे देश के नेता आपकी बेटियों को घरों में रहने की नसीहत देते हैं, मुझे गुस्सा भी आता है जब हेमा मालिनी जैसी सम्मानित सांसद कहती हैं कि अब बलात्कार की घटनाओं की पब्लिसिटी होने लगी है. हां बलात्कार को पहले भी होते थे लेकिन क्या ये आपकी बेटियों का अपमान नहीं है? किसी को हमारे कपड़ों में खामियां नज़र आती हैं, किसी को हमारी लाइफ स्टाइल में, कोई हमें संस्कारी होने की नसीहत देता है तो कोई हमारे चरित्र का चित्रण करता है.
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मां लेकिन 8 साल की आसिफ़ा और 8 महीने की नन्ही परी जैसी दरिंदों का शिकार बनने वाली मासूम बच्चियों ने ऐसा क्या किया होगा. हमारे लिए शर्म से डूब मरने की बात है कि बलात्कारियों का धर्म देखा जाने लगा है, आपकी बेटियां कहां जाएं क्या करें आप ही बताएं. मां अपने बेटों से कहिए ना कि बलात्कारी सिर्फ़ बलात्कारी होता है, बेटी किसी की भी हो वो बेटी होती है. मां शायद मेरी बातें बहुत लोगों को बुरी भी लगें लेकिन मैं क्या करूं अब चुप भी नहीं रहा जाता है. और बेटी मां से शिकायत ना करे, अपना दर्द साझा ना करे तो कहां जाए. मैं आपकी एक बेटी हूं तो देश की तमाम बेटियों की तरफ़ से आपको अपना दर्द लिख रही हूं. आशा है कि आपकी तरह देश के लोग भी आपकी इस बेटी की तक़लीफ़ को समझेंगे.
आपका सम्मान हमेशा बना रहे इसी दुआ के साथ, प्रणाम
आपकी एक मायूस, डरी हुई बेटी
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(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)