हलाला-बहुविवाह, औरतों पर जुल्म का ये जरिया बंद हो
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हलाला-बहुविवाह, औरतों पर जुल्म का ये जरिया बंद हो

ट्रिपल तलाक के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम बहु विवाह, हलाला, मुता निकाह पर केंद्र सरकार और लॉ कमीशन को नोटिस भेजा है. चार याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये केस पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास ट्रांसफर कर दिया है. मुस्लिम समाज में फैली ये वो प्रथाएं हैं जो महिला शोषण का ज़रिया बनी हुई हैं.

हलाला-बहुविवाह, औरतों पर जुल्म का ये जरिया बंद हो

ट्रिपल तलाक के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम बहु विवाह, हलाला, मुता निकाह पर केंद्र सरकार और लॉ कमीशन को नोटिस भेजा है. चार याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये केस पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास ट्रांसफर कर दिया है. मुस्लिम समाज में फैली ये वो प्रथाएं हैं जो महिला शोषण का ज़रिया बनी हुई हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस नोटिस के बाद एक बार फिर इन मुद्दों पर बहस तेज़ हो गई है, ये प्रथाएं हमेशा से बहस का मुद्दा रही हैं. मुस्लिम महिलाएं ट्रिपल तलाक, बहु विवाह, हलाला, मुता निकाह को लेकर लंबे समय से लड़ाई लड़ती आ रही हैं. जब सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-बिद्दत यानि कि एक बार में तीन तलाक देने को अवैध घोषित किया तब से मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका इसे शरिया में दखलअंदाज़ी बता रहा है. लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने इंस्टेंट तलाक पर अपना फ़ैसला सुनाया तो मुस्लिम महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई. क्योंकि ट्रिपल तलाक मुस्लिम मर्द के हाथों में वो हथियार था जिसका महिलाओं के खिलाफ बेजा इस्तेमाल होता रहा है. ना जाने ऐसे कितने मामले सामने आते हैं जब पति छोटी-छोटी सी बातों पर बीवी को तलाक, तलाक, तलाक बोल देता है और चंद सेकंड में औरत सड़क पर आ जाती है उसका भविष्य अंधेरों से भर जाता है. इंस्टेंट ट्रिपल तलाक के ख़िलाफ़ कानूनी लड़ाई लड़ने वाली औरतें खुद इसकी भुक्तभोगी हैं, ये वो औरतें हैं जिन्हें उनके शौहरों ने तीन तलाक दिया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संस्थाओं ने इसका विरोध भी किया है क्योंकि उनका कहना है कि ये फ़ैसला शरिया में दखलअंदाज़ी है जिसे मुसलमान बर्दाश्त नहीं कर सकता है.

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बहु विवाह, मुता निकाह, हलाला के ख़िलाफ़ बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय और तीन तलाक मामले में पिटीशन लगाने वाली सायरा बानो ने मिलकर पीआईएल दायर की थी. दिल्ली की नफीसा खान और समीना बेगम ने भी अलग-अलग पिटीशन लगाई हैं. इन सभी ने हलाला निकाह और बहु विवाह को ग़ैर कानूनी घोषित करने की मांग की है. इनके अलावा एक पिटीशन हैदराबाद के मौलिम मोहसिन बिन हुसैन बिन अब्दाद अल खतरी ने लगाई है, जिसमें उन्होंने निकाह मुता और निकाह मिस्यार को अवैध घोषित करने की मांग की है. याचिका दायर करने वाली नफीसा ने हलाला, बहु विवाह को अवैध घोषित करने की मांग की है क्योंकि ये प्रथाएं महिलाओं को उनके अधिकारों से तो वंचित रखती ही हैं बल्कि महिला शोषण का बहुत बड़ा ज़रिया भी हैं. 

इंस्टेंट ट्रिपल तलाक, हलाला, मुता निकाह और बहु विवाह को लेकर हमेशा से विवाद रहा है, इन कुप्रथाओं के खिलाफ़ महिलाएं लंबे वक्त से विरोध करती आई हैं और लड़ाई लड़ रही हैं, ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुस्लिम महिलाओं के हौसले बुलंद हैं और अब हलाला, मुता निकाह, बहु विवाह पर नोटिस ने एक उम्मीद बंधाई है कि अब वक्त आ गया है कि मुस्लिम महिलाओं के ऊपर से लटकने वाली ये तलवार हट जाए.

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अब बात करते हैं हलाला जैसी बेहद अमानवीय प्रथा की. दरअसल शरीयत के मुताबिक तलाक देन वाले पुरुष से दोबारा निकाह करने के लिए महिला को किसी दूसरे पुरुष के साथ शादी करके तलाक लेना ज़रूर होता है, इसे ही हलाला निकाह कहा जाता है. अब मसला ये है कि अगर पति ने गुस्से में बीवी को तलाक दे दिया तो उसकी सज़ा बीवी क्यों भुगते, औरत किसी और से शादी क्यों करे और अगर वो कर भी ले तो उससे तलाक क्यों ले. हलाला को लेकर कहा जाता है कि पैसे लेकर तथाकथित मौलाना ये काम करते हैं. हालांकि इंस्टेंट तलाक अवैध होने के बाद हलाला जैसी प्रथा अपने आप ख़त्म हो सकती है क्योंकि इंस्टेंट तलाक ही वो रास्ता है जिसमें पति बिना सोचे, समझे गुस्से में बीवी को तलाक दे सकता है. लेकिन जब ट्रिपल तलाक अवैध हो गया तो हलाला का सवाल ही नहीं उठता है. कुरान में तलाक को ना लेने लायक काम का दर्जा दिया गया है, इसलिए तलाक की प्रक्रिया को कुरान में बहुत कठिन बनाया गया है. कुरान में इंस्टेंट तलाक जैसी किसी बात का कोई ज़िक्र नहीं है. इसलिए महिलाएं इसके खिलाफ़ हैं लेकिन तलाक-ए-बिद्दत यानि की एक साथ तीन तलाक देना प्रचलन में था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है. क्योंकि पति, फोन पर, मेल पर, लेटर से तलाक दे सकता था जो महिलाओं के साथ बड़ा ज़ुल्म है. कुरान में कहीं भी हलाला के आज के स्वरूप का ज़िक्र नहीं है कि तलाक के बाद पति महिला को हलाला करने के लिए किसी और के पास भेजे क्योंकि ये एक बलात्कार है. कुरान में ऐसा कोई ज़िक्र नहीं है कि हलाला पूर्व नियोजित हो सकता है. 

कुरान की सुरह बक़रह की आयत संख्या 230, 231 और 232 के मुताबिक अगर पति कुरान में लिखी तलाक के मुताबिक तलाक देता है तो फिर उस पर उसकी बीवी वैध नहीं होगी जब तक कि वो औरत किसी दूसरे व्यक्ति से शादी ना कर ले और फिर अगर उसका दूसरा पति उसे तलाक दे सकता है तो फिर इन दोनों के लिए एक दूसरे की ओर पलटकर आने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन जैसे तलाक-ए-बिद्दत का बेजा इस्तेमाल हुआ उसी तरह हलाला को भी महिलाओं के शोषण का ज़रिया बना लिया गया. कुरान में जो लिखा है उसे धर्म के ठेकेदारों ने अपने मुताबिक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.

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मुता निकाह दरअसल कुछ दिन के लिए की जाने वाली शादी है. इसमें एक करार होता है जिसमें पहले से तय होता है कि शादी कितने दिन के लिए हो रही है. वह वक्त बीतने के बाद ये शादी अपने आप खत्म मान ली जाती है, इसके लिए महिला को मेहर के रूप में कुछ पैसे दिए जाते हैं. अब ये मुता निकाह की महिलाओं के शोषण और अत्याचार का रास्ता बना. हैदराबाद समेत देश के तमाम हिस्सों में मुता निकाह के मामले सामने आते हैं, जहां विदेशों से आने वाले बड़ी उम्र के रईस अपनी अय्याशी के लिए गरीब परिवारों को पैसों का लालच लेकर मुता निकाह करते हैं और फिर अय्याशी कर वापस अपने मुल्क़ वापस चले जाते हैं.

मुस्लिम महिलाओं के शोषण का सबसे बड़ी वजह बहु विवाह है. मुस्लिमों को कानून में एक से ज़्यादा शादी करने की छूट दी गई है. लेकिन ये छूट भी औरतों की बदहाली, उनके शोषण का ज़रिया है. कुरआन के मुताबिक मर्द बहु विवाह तक सकता है लेकिन उसकी शर्तें बहुत कड़ी हैं, एक से ज्यादा शादी करने के पहले पुरुष को ये तय करना होता है कि वो अपनी सभी पत्नियों को बराबर का हक़ दे चाहे वो संपत्ति का हो, समय हो या फिर शारीरिक. लेकिन मुसलमान मर्दों ने इसको भी अपनी सहूलियत के मुताबिक अपने हिसाब से इस्तेमाल किया. एक औरत को बिना तलाक दिए उसको बदहाल हालत में छोड़कर पुरुष दूसरी-तीसरी शादी कर लेता है. जबकि उसकी ज़िम्मेदारी है कि वो अपनी पत्नी का ख़्याल रखे.

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दरअसल इस्लाम और मुसलमान में अब बहुत फर्क आ गया है. कुरान जीने का तरीका है, उसमें लिखा है कि मुसलमान को कैसे रहना है, नियम हैं, कायदें हैं. महिलाओं के अधिकार भी हैं लेकिन बात जब हम ज़मीनी हक़ीकत की करते हैं तो इसका दूसरा रूप सामने आता है. कहने के लिए इस्लाम महिलाओं के हक़ की बात करता है लेकिन वास्तविक स्वरूप ये है कि मज़हब के नाम पर महिलाओं का शोषण किया जाता है, महिलाओं को खुद धर्म की अफीम खिलाई जाती है, तभी तो मुसलमान औरतों का बड़ा तबका इंस्टेंट ट्रिपल तलाक को शरिया में दखलअंदाज़ी मानती हैं, लेकिन अगर ईमानदारी से पूछा जाए तो शायद ही कोई महिला, इंस्टेंट ट्रिपल तलाक, हलाला, मुता निकाह, और बहु विवाह को सही माने. हम मुस्लिम महिलाएं उम्मीद करती हैं कि जिस तरह से इंस्टेंट ट्रिपल तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है ठीक वैसे ही महिलाओं के साथ आमनवीय और ज़ुल्म का ज़रिया बने हलाला, मुता निकाह और बहु विवाह जैसी प्रथाओं पर रोक लगे. फिर इसे कोई धर्म में दखलअंदाज़ी बताए या फिर तानाशाही.

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