दिल्ली सरकार बनाम एलजी मामले में चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच से फैसला सुना दिया है, जिसमें दो जजों ने फैसले से सहमति जताते हुए अपना पृथक राय भी दी है. पूर्ण राज्य नहीं मानने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में चुनी हुई सरकार को संवैधानिक दायरे में कानून बनाने और प्रशासनिक निर्णय की इजाजत दी है. सभी पहलुओं के प्राथमिक आंकलन से यह स्पष्ट है कि फैसले को लागू करने पर शीला दीक्षित सरकार के दौर के अधिकार आप सरकार को मिल सकते हैं, जिसके लिए हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मांग की थी.


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दिल्ली सरकार की सभी मांगे सुप्रीम कोर्ट ने नहीं मानी
दिल्ली हाईकोर्ट ने 4 अगस्त 2016 को दिये गये फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 239-एए के तहत एलजी यानि उपराज्यपाल ही दिल्ली के मुखिया हैं. हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि मंत्रिमण्डल की हर सलाह को मानने के लिए एलजी बाध्य नहीं है और तबादले तथा नियुक्तियों के बारे में एलजी तथा केन्द्र सरकार को ही सभी अधिकार हासिल हैं. एलजी के पास स्वतन्त्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है और वे दिल्ली सरकार के कामकाज में बाधक नहीं बन सकते हैं. फैसले में यह भी कहा गया है कि दिल्ली सरकार को संविधान के अनुच्छेद-239एए के तहत अनेक मामलों पर कोई अधिकार नहीं है. 


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संविधान के अनुसार भूमि, कानून व्यवस्था और पुलिस जैसे मामलों पर दिल्ली में केन्द्र सरकार के पास ही सभी संवैधानिक शक्तियाँ हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि मंत्रिमण्डल के निर्णयों को एलजी के अनुमोदन के बाद ही लागू किया जा सकता है और गतिरोध की स्थिति में मामले को राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करना चाहिए. चीफ जस्टिस और दो अन्य जजों ने कहा कि दिल्ली सरकार को हर फैसले के लिए एलजी का अनुमोदन लेना पड़ेगा, हालांकि हर मामले में एलजी की सहमति जरुरी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल मैकेनिकल तरीके से सारे मामलों को राष्ट्रपति के सामने नहीं भेजेंगे और जनता की चुनी हुई सरकार के प्रतिनिधियों को सम्मान दिया जाना चाहिए.


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एलजी और केन्द्र सरकार को संघीय ढांचे में करना होगा काम
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसले में कहा कि संवैधानिक संस्थाओं और सरकारों के बीच भरोसा होना चाहिए और सभी को संविधान की भावना के तहत अपना कर्त्तव्य पालन करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संघीय ढांचा संविधान का बेसिक ढांचा है, जिसके तहत एलजी को दिल्ली सरकार के साथ सौहार्दपूर्वक काम करना चाहिए. संविधान पीठ के जज चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के पास वास्तविक शक्तियाँ और दिल्ली सरकार को संवैधानिक शक्तियों के दायरे में काम करने की इजाजत होनी चाहिए. 


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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या होगा अंजाम
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केन्द्र शासित राज्यों के अलावा विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की निगाह बनी हुई थी, जहाँ दिल्ली में गतिरोध के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के विरुद्ध राजनीतिक धुव्रीकरण का प्रयास हो रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने नौ जजों द्वारा पहले दिये गये फैसले का हवाला देते हुए यह साफ करा दिया है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. दिल्ली सरकार की स्वायत्ता को बहाल करते हुए एलजी के अधिकारों की सीमाओं को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से स्पष्ट किया है. 


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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लोकतांत्रिक मूल्यों, संघीय ढांचे और स्वस्थ संवाद की पैरवी करते हुए संवैधानिक प्रावधानों का व्यवहारिक विश्लेषण किया है. सुप्रीम कोर्ट ने अराजकता को संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध बताते हुए सभी सरकारों को परस्पर संवाद से संविधान के अनुरूप काम करने का आदेश दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद आप सरकार द्वारा एलजी के अनुमोदन के बगैर लिये गये अनेक फैसलों को रद्द कर दिया गया था. क्या उन फैसलों पर अब पुर्नविचार होगा? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली में टकराव खत्म होगा या अब राष्ट्रपति भवन भी विवादों के घेरे में आयेगा, इसका फैसला अब राजनीतिक दलों के हाथ में है.


(लेखक सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)