OPINION: गुस्सा तो गौतम गंभीर की नाक पर रहता है, तारीफ भी करते हैं तो लगता है गरिया रहे हों
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OPINION: गुस्सा तो गौतम गंभीर की नाक पर रहता है, तारीफ भी करते हैं तो लगता है गरिया रहे हों

Gautam Gambhir attitude in press conference: गंभीर ने ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया तो उनके जवाब से मुंबई के कई दिग्गज हिल गए. यहां तक कि संजय मांजरेकर ने तो बीसीसीआई से यह मांग भी कर दी कि गंभीर को आगे से प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं भेजना चाहिए.

 

OPINION: गुस्सा तो गौतम गंभीर की नाक पर रहता है, तारीफ भी करते हैं तो लगता है गरिया रहे हों

भारतीय क्रिकेट में स्कूल ऑफ क्रिकेट की काफी चर्चा होती है. कभी मुंबई स्कूल ऑफ क्रिकेट तो कभी मद्रास और दिल्ली के बारे में बात होती है. सबकी अपनी खासियत है और अपना प्रभाव रहा है. भारतीय क्रिकेट में आजकल मुंबई स्कूल ऑफ क्रिकेट और दिल्ली स्कूल ऑफ क्रिकेट का वर्चस्व देखने को मिल रहा है. मुंबई से रोहित शर्मा टीम इंडिया के कप्तान तो अजीत अगरकर बीसीसीआई के चीफ सेलेक्टर हैं. दूसरी ओर, दिल्ली से गौतम गंभीर भारतीय क्रिकेट टीम के हेड कोच हैं. न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में हार के बाद जितनी आलोचना गंभीर की हो रही है उतनी रोहित और अगरकर की नहीं.

गंभीर के रवैयै से दिग्गज हैरान

गंभीर ने ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया तो उनके जवाब से मुंबई के कई दिग्गज हिल गए. यहां तक कि संजय मांजरेकर ने तो बीसीसीआई से यह मांग भी कर दी कि गंभीर को आगे से प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं भेजना चाहिए. अब कुछ साल पहले की घटनाओं को याद कीजिए जब विराट कोहली कप्तान थे. दिल्ली क्रिकेट से आने वाले कोहली मैदान के अंदर और मैदान के बाहर भी अपने आक्रामक रवैये के लिए मशहूर हैं. विराट भी जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवालों के जवाब देते थे तो लगता था कि वह काफी गुस्से में है. उस समय भी उनकी काफी आलोचना होती थी.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में अधिक आक्रामक

गौतम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रोहित शर्मा, विराट कोहली और केएल राहुल जैसे अनुभवी खिलाड़ियों की तारीफ की. इसके अलावा नीतीश कुमार रेड्डी और हर्षित राणा जैसे युवाओं का बचाव किया. उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ गलतियों को भी स्वीकार किया. हेड कोच जिस अंदाज में नजर आए उससे ऐसा लगा कि वह काफी गुस्से में आए हैं. गंभीर ने तो विराट कोहली के बारे में पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग के बयान के बारे में सवाल ठीक से सुना भी नहीं था कि जवाब देने लगे. उन्होंने कहा, ''पोंटिंग का भारतीय क्रिकेट से क्या लेना-देना है? उन्हें ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट पर ध्यान देना चाहिए." गंभीर को सुनकर ऐसा लगा कि वह पहले से ही इस मूड में आए थे कि उन्हें आक्रामक होकर जवाब देना है.

 

 

संभलकर नहीं दे रहे जवाब

प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पल और आया जब गंभीर के जवाब से सभी हैरान हो गए. उनसे पूछा गया कि क्या ऑस्ट्रेलिया में नीतीश कुमार रेड्डी शार्दुल ठाकुर की तरह ऑलराउंडर की भूमिका निभा सकते हैं तो हेड कोच ने ऐसा जवाब दिया जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. उन्होंने नीतीश की तारीफ करके तो अच्छा किया लेकिन साथ में यह भी कह दिया कि भारतीय क्रिकेट अब आगे बढ़ रही है. इससे ऐसा माना गया कि शार्दुल ठाकुर का करियर समाप्त हो गया है. वह मोहम्मद शमी से एक साल ही छोटे हैं. आमतौर पर हेड कोच 33 साल के किसी खिलाड़ी के बारे में ऐसा नहीं कहते हैं. वह इन सवालों का सीधा और सरल जवाब देकर निकल जाते हैं. गंभीर यह कह सकते थे कि उनका करियर अभी समाप्त नहीं हुआ है और अगर वह अच्छा प्रदर्शन जारी रखते हैं तो टीम भविष्य में उनके नाम पर विचार कर सकती है.

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मन की बात कहने में माहिर

गंभीर 'टीम फर्स्ट' की भावनाओं से आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन वह इसमें इस कदर डूब जाते हैं कि कभी-कभी शब्दों का सही चयन नहीं कर पाते. वह अपने खेल के दिनों से ही जुझारू हैं. मैदान पर विपक्षियों से भिड़ने में वह पीछे नहीं हटते थे. उन्होंने लड़ते हुए टीम इंडिया के लिए अहम पारियां खेली हैं और भारतीय क्रिकेट के हीरो में से एक हैं. गंभीर की शैली में प्रशंसा, समर्थन और ताने शामिल हैं. वह कभी महेंद्र सिंह धोनी के बारे में यह कहते हैं कि एक कप्तान के दम पर ही टीम ने वर्ल्ड कप नहीं जीता था तो कभी धोनी की तारीफ में यह भी कह देते हैं कि वह सबसे सफल कप्तान हैं क्योंकि किसी ने उनकी तरह 3 आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीती है. कभी धोनी के बारे में यह कहते हैं कि अगर जीवन में उन्हें कभी जरूरत होगी तो मदद करने के लिए वह सबसे आगे होंगे. यहां तक कि गंभीर ने पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली की आलोचना भी कर चुके हैं. गांगुली द्वारा ऑनलाइन फैंटेसी गेम का समर्थन करना गंभीर को रास नहीं आया था. हालांकि, यह अलग बात है कि वह खुद भी ऐसा कर चुके हैं. हालांकि, उन्होंने गांगुली की तरह कैश प्राइज का वादा नहीं किया.

 

 

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नहीं बदलेगा यह रवैया

दरअसल, गंभीर का यह रवैया उन्हें दिल्ली क्रिकेट से मिला है. यहां के खिलाड़ियों में शुरू से ही आक्रामक रवैया देखने को मिलता है. यह गंभीर की गलती नहीं है. वीरेंद्र सहवाग, शिखर धवन, इशांत शर्मा, विराट कोहली और गौतम गंभीर इसके लिए मशहूर हैं. ये प्लेयर कभी बोलने से पहले सोचते नहीं. जो मन में आता है तो वह निकाल देते हैं. गंभीर अब जिस पद पर हैं वह काफी जिम्मेदारी वाला है. उन्हें संभलकर बोलने की जरूरत है. अब वह सिर्फ एक कमेंटेटर या क्रिकेटर नहीं हैं. वह भारतीय क्रिकेट टीम की देखरेख कर रहे हैं. ऐसे में उनसे संयमित जवाब की आशा की जाती है. हालांकि, आने वाले भविष्य में ऐसा होता तो नहीं दिख रहा. अब तो लोगों को ऑस्ट्रेलिया में मैच से ज्यादा गंभीर और ऑस्ट्रेलियाई मीडिया के बीच भिड़ंत का इंतजार है.

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