56 साल तक अपने बॉक्सर भाई को छुड़ाने के लिए लड़ी, 88 की उम्र में मौत की सजा से आजाद हुआ
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56 साल तक अपने बॉक्सर भाई को छुड़ाने के लिए लड़ी, 88 की उम्र में मौत की सजा से आजाद हुआ

Iwao Hakamata: 91 साल की हिडेको हकामाता इस लड़ाई में अपने भाई के साथ खड़ी रही हैं. उनका कहना है कि मैंने उन्हें बताया कि उन्हें बरी कर दिया गया है, लेकिन वह चुप रहे. मुझे यह समझ नहीं आया कि वह समझ पाए या नहीं.

56 साल तक अपने बॉक्सर भाई को छुड़ाने के लिए लड़ी, 88 की उम्र में मौत की सजा से आजाद हुआ

Japan Justice System: यह कहानी एक बहन के कठिन संघर्ष की है, जिसने अपने भाई को निर्दोष साबित करने और उसे मृत्यु दंड से बचाने के लिए 56 वर्षों तक अनगिनत लड़ाइयां लड़ीं. यह सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं थी, बल्कि एक ऐसी प्रक्रिया थी जो पूरी तरह से इंसानियत और न्याय के बीच की सीमा को चुनौती देती है. जब सितंबर 2024 में, 88 वर्षीय इवाओ हकामाता को निर्दोष ठहराया गया, तो वह शायद उस पल को समझ भी नहीं सके, जिसे उनके जीवन के सबसे बड़े संघर्ष का अंत कहा जा सकता था.

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या... 
91 साल की हिडेको हकामाता इस लड़ाई में अपने भाई के साथ खड़ी रही हैं. उनका कहना है कि मैंने उन्हें बताया कि उन्हें बरी कर दिया गया है, लेकिन वह चुप रहे. मुझे यह समझ नहीं आया कि वह समझ पाए या नहीं. इवाओ का नाम जापान के इतिहास में सबसे लंबे समय तक मौत की सजा पाने वाले व्यक्ति के तौर पर दर्ज है, लेकिन इस प्रकरण ने जापान के न्याय व्यवस्था की क्रूरता को भी उजागर किया. इसे समझने की जरूरत है क्योंकि न्याय में इतनी देरी का मतलब तो यही हुआ कि ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या.

कहां से शुरू हुई थी कहानी.. 
असल में बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1968 में इवाओ को चार लोगों के हत्या का आरोप लगा था, जिसमें उनके बॉस और उनके परिवार के सदस्य शामिल थे. हालांकि, इवाओ ने शुरू में इन आरोपों का विरोध किया था, लेकिन पुलिस की लंबी पूछताछ और प्रताड़ना के बाद उन्हें एक जबरदस्ती क़ुबूलनामा देने के लिए मजबूर किया गया था. दो साल बाद, उन्हें हत्या और आगजनी के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, हिडेको को अपने भाई के मानसिक और शारीरिक रूप से टूटने का एहसास होने लगा. वह बताती हैं वह बिल्कुल चुप रहते थे और पहले जैसा नहीं रहा.

फिर शुरू हुआ क्रूर सजाओं का दौर.. 
मौत की सजा के बाद, इवाओ को एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया था, जहां वह हर रोज़ इस डर के साथ उठते थे कि आज उनका आखिरी दिन हो सकता है. जापान के सजा-ए-मौत के कैदियों को किसी भी समय यह सूचना दी जाती है कि उन्हें फांसी दी जाएगी, जिससे मानसिक विकार और तनाव और भी बढ़ जाते हैं. हिडेको ने इन कष्टों को करीब से देखा और अपने भाई की आज़ादी के लिए हर संभव कदम उठाया.

कैसे साबित हुए निर्दोष.. 
रिपोर्ट के मुताबिक इन सबके बीच 2014 में इवाओ के मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब उनके बचाव पक्ष ने यह साबित किया कि उस समय मिले खून के धब्बों से उनका डीएनए मेल नहीं खाता था. इसके बाद, अदालत ने इवाओ को फिर से परीक्षण के लिए रिहा किया. इस परीक्षण ने अंततः उनके निर्दोष होने का प्रमाण पेश किया और अक्टूबर 2024 में एक जज ने यह ऐलान किया कि इवाओ हकामाता निर्दोष हैं. हिडेको की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था जब उन्होंने यह सुना कि जब जज ने कहा कि दोषी नहीं हैं, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा दिल बहल गया. मैं एक घंटे तक रोती रही.

न्याय व्यवस्था की गंभीर खामियां
इवाओ की मुक्ति ने जापान की न्याय व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर किया है. यह एक उदाहरण था, जो यह दिखाता है कि कैसे झूठे आरोपों और गलत सबूतों पर पूरी एक ज़िंदगी बर्बाद हो सकती है. हिडेको के लिए अब सबसे अहम बात यह थी कि उनका भाई अब शांतिपूर्ण जीवन जी सके. उनके घर का दरवाज़ा पिंक रंग से रंगा गया है, जो उनके भाई और खुद उनके संघर्ष और उम्मीद का प्रतीक है. हिडेको कहती हैं कि हमारे साथ जो हुआ, वह हमारी किस्मत थी, अब हम किसी से शिकायत नहीं करेंगे. (Photo: Iwao Hakamata)

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