फ्रांस: दो बार विश्व युद्ध में बर्बाद हो चुका दुनिया का एक सम्पन्न देश
अपनी संस्कृति के लिए मशहूर फ्रांस आज बढ़ती महंगाई की वजह से तीखे घरेलू विरोध प्रदर्शन देख रहा है.
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी कूटनीतिक समर्थन मिल रहा है. हाल ही में भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस हमले के खिलाफ निंदा प्रस्ताव के पारित होने में सफलता मिली है. इस पूरे घटनाक्रम में फ्रांस की भूमिका उल्लेखनीय रही. फ्रांस भारत के लिए हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण देश रहा है और दोनों देशों के संबंध काफी मजबूत रहे हैं.
दरअसल फ्रांस ही वह देश है जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पेश किया. फ्रांस इस सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य़ है. जबकि कई मामले में, जिसमें अजहर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद में वीटो करता रहा है. हालांकि हमले के निंदा प्रस्ताव का वह विरोध नहीं कर सका. ऐसे में भारत के लिए फ्रांस का मजबूत समर्थन दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्ते को बयां करता है.
यह भी पढ़ें: जानिए क्या है ‘1267’ जिससे बेचैन हैं पाकिस्तान, चीन और सऊदी अरब
फ्रांस: एक बेमिसाल संस्कृति
फ्रांस यूरोप का वह देश है जो कि अपनी बेमिसाल संस्कृति, फैशन, भाषा के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. फ्रांस ने दो विश्व युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान झेले हैं. गलत नहीं होगा कि यह देश इन दोनों युद्ध में बरबाद ही हो गया था. लेकिन यहां के लोगों ने अपनी उन्नत जीवन शैली को फिर से जीवंत करते हुए अपनी संस्कृति को एक बार फिर खड़ा किया और साथ ही सैन्य महाशक्ति भी बना जिससे उसे पहले दो विश्व युद्ध जैसी त्रासदी न झेलनी पड़े. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप को एक करने में फ्रांस का ही सबसे बड़ा योगदान है और यह यूरोपीय संघ का संस्थापक देश है.
भौगोलिक स्थिति
फ्रांस पश्चिम में अटलांटिक महासागर की बिस्के की खाड़ी और इंग्लिश चैनल, दक्षिण में स्पेन, पूर्व में भूमध्य सागर, इटली स्विटजरलैंड और जर्मनी से घिरा है. उत्तर में बेल्जियम और लक्जमबर्ग फ्रांस की सीमा को छूते हैं. इसके अलावा फ्रांस ब्रिटेन से समुद्री सीमा भी साझा करता है. इसके अलावा यह मोनाको और एंडोरा जैसे छोटे देशों से भी जमीनी सीमा साझा करता है. यहां पूर्व में आल्प्स और दक्षिण में प्रेनिस पर्वत श्रृंखलाएं हैं. यहां से प्रवाहित होने वाली दो प्रमुख नदियां सेन और लवार. फ़्रान्स का भू-भाग ज्यादातर सपाट मैदान है. इसका कुछ भूभाग संसार के अन्य भागों में भी हैं. इनमें ग्वाडेलोप एवं मार्टिनिक (अटलांटिक महासागर), मायोट, फ्रेंच गुयाना ( दक्षिण अमेरिका) और रीयूनियन (अफ्रीका के मैडागास्कर द्वीप के पास) को महानगरीय दर्जा हासिल है. इसके अलावा सेंट-पियरे और मिकेलॉन, सेंट बार्थेलेमी, सेंट मार्टिन सभी अटलांटिक महासागर जबकि वालिस तथा फ्यूटुना जैसे द्वीप प्रशांत महासागर में स्थिति हैं.
दुनिया के सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं इस देश में
फ्रांस का क्षेत्रफल 632 834 वर्ग किलोमीटर (244,340 वर्ग मील) है जिसमें से 551 695 वर्ग किलोमीटर (213,010 वर्ग मील) महानगरीय क्षेत्र में आता है. यहां की आबादी लगभग 6 करोड़ 73 लाख की है. देश की प्रमुख भाषा फ्रेंच है जो दुनिया के कई दूसरे हिस्सों में भी बोली जाती है. प्रमुख धर्म ईसाई है और यहां की मुद्रा यूरो है. दुनिया के बड़े और प्रमुख शहरों में से एक पेरिस यहां की राजधानी है. पेरिस को फैशन की राजधानी भी कहा जाता है. यहां लोकतांत्रिक गणतंत्र शासन व्यवस्था है. अपनी संस्कृति के लिए मशहूर फ्रांस आज ऐसा पर्यटन स्थल है जहां दुनिया में सबसे ज़्यादा पर्यटक पहुंचते हैं.
संक्षिप्त इतिहास
प्राचीन काल के लौह युग में फ्रांस में सेल्टिक गॉल निवास करते थे. गौल पर पहली शताब्दी में रोम के जूलिअस सीज़र ने जीत हासिल की जिसके बाद यहां के लोगों ने रोमन भाषा और संस्कृति को अपनाया. दूसरी और तीसरी शताब्दी में यहां ईसाई धर्म पहुंचा. चौथी सदी में जर्मनिक जनजाति फ्रैंक्स ने गौल पर कब्ज़ा किया. इसी से फ्रांसिस नाम सामने आया और आधुनिक नाम "फ्रांस" भी इसी से निकला है. फ्रैंक्स यूरोप की पहली जनजाति थी, जिसने रोमन साम्राज्य के पतन के बाद आरियानिज्म को अपनाने की बजाए कैथोलिक ईसाई धर्म को स्वीकार किया. दसवीं सदी में ह्यूग कापेट के फ़्राँस के राजा बनने तक कारोलिंगियन राजवंश ने 987 तक फ़्राँस पर राज किया. उनके वंशजों ने अनेक युद्धों और पूर्वजों की विरासत के साथ देश को एकीकृत किया. 1190 में अधुनिक फ्रांस साम्राज्य बना जो मध्य युग में बड़ी ताकत बनकर उभरा. सोलहवीं सदी में धार्मिक गृह युद्ध के बाद फ्रांस यूरोप में सांस्कृतिक, राजनैतिक और सैन्य शक्ति बन गया. 17 वीं सदी और लुई चौदहवें के शासनकाल के दौरान फ़्राँस सबसे अधिक शक्तिशाली था. इस दौरान फ्रांस दुनिया भर में औपनिवेशिक ताकत बन कर उभरा.
फ्रेंच क्रांति और उसके बाद
18वीं शताब्दी के अंत में फ्रांस की मशहूर क्रांति हुई. जिसने दुनिया भर में गणतांत्रिक शासन व्यवस्था और उसके जैसी अन्य क्रांतियों की नींव रखी जिनमें मानव और नागरिक अधिकारों को प्रमुख रूप से शामिल गिया, जो आज भी अनेक देशों में प्रमुखता से देखे जाते हैं. क्रांति के बाद 19वीं सदी में फ्रांस में नेपिलियन का उदय हुआ. नेपोलियन ने दुनियाभर में खासतौर पर यूरोप में राजशाही के खिलाफ अपना विजयी अभियान चलाया, लेकिन जल्द ही नेपोलियन को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 1870 में तीसरे फ्रेंच गणतंत्र की स्थापना हुई.
दो विश्वयुद्ध में फ्रांस
20 सदी में हुए दो विश्व युद्ध जर्मनी से शुरू हुए और पड़ोसी फ्रांस को इसकी भीषण त्रासदी झेलनी पड़ी. 1944 में चौथा फ्रेंच गणराज्य की स्थापना हुई जो की अलजीरिया युद्ध के बाद खत्म हो गई. 1958 से पांचवा फ्रेंच गणतंत्र अभी तक जारी है. 1962 में अलजीरिया सहित फ्रांस के बहुत सारे उपनिवेश स्वतंत्र हुए जिनके आज भी फ्रांस से गहरे आर्थिक और सैन्य संबंध हैं.
आधुनिक फ्रांस
आज फ्रांस एक बार फिर दुनिया भर में कला संस्कृति, विज्ञान और दर्शन का केंद्र है. यह दुनिया का 7वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. घरेलू संपत्ति में यह दुनिया का चौथा बड़ा देश है. विकसित देशों में शुमार हो चुका यह देश आज एक परमाणु ताकत होने के साथ साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है जिसे वीटो शक्ति हासिल है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह जी7 देशों के समूह, नाटो, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग और विकास (OECD) का सदस्य है.
आतंकी हमलों का शिकार फ्रांस
2015 से फ्रांस दुनिया भर में फैले इस्लामिक आतंकवाद के निशाने पर आ गया. जनवरी 2015 में कुछ आतंकवादियों ने पेरिस में 17 लोगों को गोलियों से मार दिया. जिसके बाद फ्रांस ने सीरिया में आईसिस आतंकवादियों के खिलाफ हवाई हमले किए. इसके बाद नवंबर 2015 में पेरिस में आतंकी हमलों में 130 लोग मारे गए जिसके बाद फ्रांस में इमरजेंसी लगा दी गई. इसके बाद जुलाई 2016 में नीस में हुए एक लॉरी हमले में 84 लोग मारे गए जिसकी जिम्मेदारी आइसिस ने ली.
वर्तमान परिदृश्य
वर्तमान में फ्रांस दो तरह की चुनौती देश में झेल रहा है. पहली समस्या उसके सामने आतंकवाद की है. मई 2017 में इमैनुएल मैक्रों देश के राष्ट्रपति बने. 39 वर्षीय मैक्रों एक बैंकर रह चुके हैं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव से एक साल पहले ही अपने राष्ट्रपति चुनाव अभियान की शुरुआत की थी. उनके एन मार्के मूवमेंट को देश में व्यापक समर्थन मिला और उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी परंपरागत समाजवादी और गणतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवारों को बड़े अंतर से हरा दिया. राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति मैक्रों को की लोकप्रियता में भारी कमी आई जब उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था में बड़े परिवर्तन करने की कोशिश की. इसकी वजह से देश में कीमतें बढ़ीं जिनमें पैट्रोल डीजल की कीमत में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी हो गई मैक्रों की नीतियों के खिलाफ देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए.
क्या है येलो आंदोलन जिससे परेशान है फ्रांस
पिछले कुछ समय में राजधानी पेरिस से लेकर छोटे क़स्बों तक से ऐसे आंदोलन की गूंज उठी जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. येलो वेस्ट या येलो जैकेट आंदोलन के नाम से मशहूर हुए इस आंदोलन में भाग लेने वाले लोग वही पीले रंग के वो जैकेट पहने हुए थे, जिन्हें सुरक्षा के लिहाज़ से पहना जाता है क्योंकि इनका चटख रंग ध्यान खींचता है. फ्रांस में 2008 में बने क़ानून के मुताबिक़ वाहनों में इस तरह के जैकेट रखना अनिवार्य है ताकि गाड़ी कहीं ख़राब हो जाए तो इसे पहनकर उतरें तो वे पीछे आने वाली गाड़ियों से दुर्घटना के शिकार न हो जाएं. प्रदर्शनकारियों ने ये जैकेट सांकेतिक रूप से पहनी थी जिससे वे अपनी मांगों और समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान खींच सकें.
यह भी पढ़ें: अफगानिस्तान: आज भी शांति को तरस रहा है दुनिया को 90% अफीम देने वाला देश
मध्यवर्ग के लोगों का है यह आंदोलन
17 नवंबर 2018 को शुरू हुए इस आंदोलन में लोग प्रमुख रूप से तेल की कीमतों में बहुत अधिक वृद्धि, आय का न बढ़ना, बेरोज़गारी का विरोध कर रहे हैं. जिनमें सबसे उल्लेखनीय पेट्रोल-डीजल की कीमतों का विरोध है. राजधानी पेरिस से लेकर फ्रांस के अन्य प्रमुख शहरों और छोटे क़स्बों तक लाखों की संख्या में लोगों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया. इनमें ज्यादातर आम मध्यवर्ग के लोग ही शामिल रहे, लेकिन फ्रांस के बाहर इस आंदोलन की आग ज्यादा तेज दिखी. यह आंदोलन इसके पड़ोसी देशों इटली, बेल्जियम और नीदरलैंड तक फैल गया था मगर वहां इतना क़ामयाब नहीं हो पाया.
इस वजह से फूटा लोगों का गुस्सा
फ़्रांस में सबसे ज़्यादा डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों का इस्तेमाल होता है. यहां डीज़ल की पिछले साल के अंत तक क़ीमत 120 रुपए प्रति लीटर से ज्यादा हो गई थी जो कि पिछले साल की तुलना में 23 फीसदी ज्यादा थी इसके बाद सरकार ने जब एक बार फिर डीज़ल पर 7.6 फ़ीसदी और पेट्रोल पर 3.9 फ़ीसदी टैक्स बढ़ा दिया तब लोगों में इसे लेकर ग़ुस्सा फूट पड़ा और सड़कों पर उतर आए. लोगों में ईंधन की क़ीमतों की बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ रोष को देखते हुए सरकार ने फ्यूल टैक्स छह महीने के लिए स्थगित करने की घोषणा की. हालांकि इसके बाद प्रदर्शनों में कमी तो आई लेकिन ये पूरी तरह बंद नहीं हुए. आंदोलनकारियों ने हर सप्ताह के अंत में (वीकेंड) आंदोलन करने का फैसला किया जिसके बाद अब तक ऐसे 14 प्रदर्शन हो चुके हैं.
यह भी पढ़ें: सऊदी अरब: ‘एमबीएस’ ने बदल कर रख दी है इस देश की तस्वीर
क्या है रेड स्कार्फ आंदोलन
यलो मूवमेंट से भड़की हिंसा ने फ्रांस जैसे अमन पसंद देश को बुरी तरह से झकजोर कर रख दिया था. इस साल करीब हर सप्ताह येलो आंदोलन की वजह से हिंसा होती रही जो सरकार और पुलिस के लिए खासा सरदर्द रहा. अब इससे परेशान कई लोगों ने जनवरी माह के अंत में पेरिस के 5प्लेस दि ला नेशन’ चौराहे पर हिंसा का विरोध करते हुए लाल स्कार्फ पहने रैली निकाली. जिसे रेड स्कार्फ मूवमेंट कहा गया. इस रैली में लोगों ने फ्रांस और यूरोपियन यूनियन के झंडे के लहराते हुए “यस टू डेमेक्रोसी, नो टू रिवोल्यूशन” के नारे लगाए. उनका कहना था वे येलो आंदोलन के नहीं बल्कि उसकी हिंसा के खिलाफ हैं. हालांकि इससे येलो आंदोलन पर कोई फर्क नहीं आया और हर वीकएंड पर प्रदर्शन जारी है जो किसी न किसी रूप में हिंसा का रूप ले ही लेता है.
काफी पुराने हैं भारत-फ्रांस के बीच रक्षा संबंध
भारत और फ्रांस के बीच लंबे समय से रक्षा संबंध रहे हैं. भारत पिछले कई सालों से फ्रांस से रक्षा संबंधी हथियार, जिसमें लड़ाकू विमान भी शामिल हैं, खरीदता रहा है. साल 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान फ्रांस से राफेल विमान की खरीदने को लेकर घोषणा की थी. जिस पर दोनों देशों के बीच करीब 58,000 करोड़ रुपए की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदने का औपचारिक सौदा सितंबर 2016 में हुआ. इन विमानों की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होने वाली है. इसके बाद साल 2017 में एमैनुएल मैक्रों फ्रांस के राष्ट्रपति बने. वहीं फ्रांस की मीडिया में आई एक खबर के आने के बाद विवाद पैदा हुआ जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था. सौदा अभी रद्द नहीं हुआ है, लेकिन इस पर भारत में राजनैतिक बवाल जारी है. इसके बावजूद भारत और फ्रांस के बीच रक्षा और रणनीतिक संबंध मजबूती से बने हुए हैं.