संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पुलवामा हमले के निंदा प्रस्ताव का चीन ने समर्थन किया था लेकिन मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में एक बार फिर रोड़ा अटका दिया.
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नई दिल्ली: पुलवामा आतंकी हमले को लेकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक स्तर पर भारत को एक बार फिर झटका लगा है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद (UNSC) ने इस हमले की निंदा प्रस्ताव का समर्थन करने के बावजूद चीन ने अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव को एक बार फिर अटका दिया है. पुलवामा हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. जिसका प्रमुख मसूद अजहर है. चीन लंबे समय से मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की भारत की मांग का विरोध करता आ रहा है. इस बार चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस हमले की निंदा का विरोध नहीं करते हुए बयान पर सहमति जताई थी, जबकि इसमें मसूद अजहर के जैश-ए-मोहम्मद का भी नाम शामिल था.मसूद को आतंकी घोषित करने वाला 1267 का प्रस्ताव बहुत पहले से चर्चा में हैजिसको लेकर इन दिनों पाकिस्तान चीन के अलावा सऊदी अरब भी असहज है.
क्या है चीन की के इस कदम का मतलब
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य हैं जो किसी भी संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को वीटो कर खारिज कर सकते हैं. इनमें चीन के अलावा अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस शामिल हैं. पुलवामा हमले के निंदा प्रस्ताव को चीन वीटो कर सकता था लेकिन इससे यह संदेश जाता कि वह आतंकवाद के खिलाफ नहीं है. इसीलिए उसे इस प्रस्ताव को सहमित देनी पड़ी, लेकिन मसूद के प्रस्ताव का समर्थन करना चीन और पाकिस्तान के रिश्तों में विपरीत फर्क ला देता. पाकिस्तान अब भी इस मामले में अलग थलग है. पाकिस्तान ने यह दिखाने के लिए के वह आतंकवाद का विरोधी है सुरक्षा परिषद की बैठक से पहले ही उसने 2008 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा (जेयूडी) और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन पर एक बार फिर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन उसने मसूद अजहर पर कोई कार्रवाई नहीं की. चीन शुरू से अब तक सुरक्षा परिषद के हर प्रस्ताव का विरोध करता रहा है जिसमें सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध सूची में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के तौर पर शामिल करने की बात रही है.
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क्या है 1267 संकल्प
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 1267 संकल्प 15 अक्टूबर 1999 को परिषद ने सर्वसहमति से अपनाया था. उस समय तालिबान, अलकायदा और दुनिया भर में फैले बाकी आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने के लिए उन्हें सूचीबद्ध किया गया था. इस प्रस्ताव के तहत सुरक्षा परिषद किसी आतंकवादी को या आतंकी संगठन को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी या आतंकवादी संगठन घोषित कर सकती है और उस पर व्यापक प्रतिबंध लग जाता है. इस साथ ही संयुक्त राष्ट्र के सभी देश उससे आतंकवादी (या आतंकी संगठन) की तरह रवैया अपनाते हैं, भले ही वे दुनिया में कहीं भी स्थित हों. इस प्रस्ताव के तहत संयुक्त राष्ट्र का कोई भी देश किसी आंतकवादी को वैश्विक आतंकवादी की सूची में शामिल करने का निवेदन कर सकता है जिसका सुरक्षा परिषद का स्थायी समिति का अनुमोदन करना जरूरी है. अगर कोई एक भी स्थायी सदस्यीय देश इस प्रस्ताव का वीटो करता है तो वह निवेदन पारित नहीं होगा. चीन ने इस बार भी भारत के इस प्रस्ताव को वीटो किया है. हालांकि उसने पूरी तरह खारिज न कर तकनीकी कारण से इसे केवल 9 महीने टाला है.
पाकिस्तान और चीन इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हैं
भारत 1267 के तहत कई आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जा चुका है. जिसका पाकिस्तान विरोध भी कर चुका है. वहीं चीन की नीति भारत विरोधी होने के साथ ही पाकिस्तान का समर्थन करने की है. चीन भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले हर विवाद में चीन पाकिस्तान का साथ देता है. ऐसें में चीन 1267 प्रस्तावों में पाकिस्तान का साथ देता है. चीन और पाकिस्तान 1267 को लेकर पाकिस्तान का साथ देना उनकी नीति में साफ दिखाई देता है. चीन के लिए 1267 का विरोध अब तक भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोकने का जरिया है. वह भारत की स्थायी सदस्यता का खुल कर विरोध करता रहा है. इसके अलावा वह भारत के एनएसजी (राष्ट्रीय सुरक्षा समूह) में शामिल होने पर भी खुल कर ऐतराज जताता रहा है, जबकि इस मामले में भारत को दुनिया के ज्यादातर देशों को समर्थन हासिल है. इसके अलावा चीन पाकिस्तान का दोस्त होने के साथ ही बड़ा साझेदार भी है.
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सऊदी अरब की क्या है भूमिका
हाल ही में पुलवामा हमले के बाद सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान की यात्रा की और वहां 20 बिलियन डॉलर का निवेश भी करने की घोषणा की. इसके अलावा दोनों देशों ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि संयुक्त राष्ट्र में किसी को आतंकवादी घोषित करने की प्रक्रिया का राजनीतिकरण बचने की जरूरत है. बताया जा रहा है कि यह सउदी अरब ने पाकिस्तान को खुश करने के लिए बयान दिया है. पुलवामा हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी जिसके बाद से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गया है.
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सऊदी अरब ने इस संयुक्त बयान में बड़ी सावधानी बरती है. उसने इस बयान में यह ध्यान रखा है कि ऐसा न लगे कि वह किसी आतंकवादी घटना के खिलाफ नहीं है. यह सऊदी अरब ने भारत के साथ बातचीत में स्पष्टता से रेखांकित भी किया है. दरअसल सऊदी अरब को यमन के खिलाफ अपनी लड़ाई में पाकिस्तान का समर्थन चाहता है. हालांकि उसे अमेरिका का समर्थन हासिल है, लेकिन वह और देशों का भी समर्थन चाहता है जिसमें पाकिसतान से उसे समर्थन मिल सकता है हालांकि पाकिस्तान ने अभी तक उसे खुलकर तो समर्थन नहीं दिया है.