वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन की खोई धरोहर वापस लौटी, इसी नोटबुक में बताया था 'बंदर की संतान हैं इंसान'
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वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन की खोई धरोहर वापस लौटी, इसी नोटबुक में बताया था 'बंदर की संतान हैं इंसान'

चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के बारे में स्कूल या कॉलेज की किताबों में बहुत से लोगों ने पढ़ा होगा. पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत, विकास और रचनाएं कैसे हुई, इससे जुड़े रिसर्च के दौरान लिखी गई नोटबुक जब रहस्यमयी तरीके से वापस लौटी तो लाइब्रेरी से जुड़े हर सदस्य की खुशी देखने लायक थी. 

फोटो: (Cambridge University Library)

लंदन: ब्रिटेन के वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन को 'जीवन की उत्पत्ति' के बारे में दिए गए सिद्धांतों के लिए जाना जाता है. उनकी लिखी नोटबुक का बहुत पहले गायब हुआ एक सेट जब अचानक कई साल बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (Cambridge University) की लाइब्रेरी में वापस पहुंचा तो बहुत से लोगों ने इस धरोहर के लौटने पर राहत की सांस ली.   

  1. 20 साल बाद लौटी बेशकीमती धरोहर
  2. गायब थी चार्ल्स डार्विन की 'खास' नोटबुक 
  3. रहस्यमयी तरीके से वापस लौटी: लाइब्रेरी प्रशासन

यूनिवर्सिटी प्रशासन का  बयान

यूनिवर्सिटी की ओर जारी बयान में कहा गया कि डार्विन की लिखी दो नोटबुक - जिनमें से एक में उनका फेमस 'ट्री ऑफ लाइफ' स्केच शामिल है. उसे कोई लौटा गया है. बता दें कि लाइब्रेरी के अंदर किसी ने गुलाबी रंग का थैला रख दिया था, जिसके अंदर ये कॉपी थी और उसमें लाइब्रेरियन के लिए ‘हैप्पी ईस्टर’ का संदेश लिखा था. इनमें से एक कॉपी में वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का प्रसिद्ध ‘ट्री ऑफ लाइफ’ स्केच बना था. 

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यूनिवर्सिटी ने चलाया था वैश्विक अभियान

सीएनएन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक ये नोटबुक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी से जनवरी 2001 में गायब हुई थी. इनके चोरी होने की संभावना भी जताई गई थी. उस समय यूनिवर्सिटी ने इन्हें खोजने में मदद करने के लिए एक वैश्विक अपील की थी. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरियन जेसिका गार्डनर ने कहा, 'नोटबुक की सुरक्षित वापसी पर हम अपनी खुशी बयान नहीं कर सकते हैं. कोई नहीं जानता इस नुकसान की भरपाई कैसे होती.' बता दें कि स्थानीय जासूसों ने इंटरपोल को इसकी जानकारी दी थी, जिसके बाद कॉपी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खोज शुरू हुई. इसकी कीमत लाखों डॉलर आंकी गई थी. 

क्यों महत्वपूर्ण थी ये नोटबुक?

दरअसल चार्ल्स डार्विन ने जुलाई 1837 में लंदन में चमड़े की जिल्द वाली अपनी 'लाल कॉपी' पर लिखा 'मैं सोचता हूं' यानी 'I think' और फिर उसके भीतर लिखना शुरू किया था. इसी नोटबुक में उन्होंने जीवन की उत्पत्ति और विकास से जुड़ी स्टडी के बारे में एक ट्री का रेखांकन किया था. अपने 20 साल के अध्ययन को 24 नवंबर 1859 को पहली बार डार्विन ने प्रकाशित करवाया था और दुनिया को ओरिजिन ऑफ स्पीशीज का सिद्धांत मिला था.

धार्मिक मान्यताओं को किया था खारिज

आपको बता दें कि साल 1859 में जब 'ओरिजिन ऑफ स्पीशीज' (Origin of Species) किताब जब छपी थी, तो उसने दुनिया की सोच बदल दी थी. इस किताब पर उस वक्त बेहद हंगामा हुआ था क्योंकि इस किताब ने दावा किया था कि विज्ञान के तथ्यों के मुताबिक दुनिया किसी चमत्कार से नहीं बनी बल्कि जीवों का विकास सिंगल सेल से हुआ था. इस किताब ने उस समय धार्मिक मान्यताओं को पूरी तरह से खारिज कर दिया था.

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