इस देश की जनता नहीं चाहती चीन का साथ, लेकिन राष्ट्रपति हैं बेताब
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इस देश की जनता नहीं चाहती चीन का साथ, लेकिन राष्ट्रपति हैं बेताब

अपनी विस्तारवादी आदतों के लिए मशहूर चीन अब फिलीपिंस को अपने खेमे में लेने की हर संभव कोशिशों में लगा हुआ है.

फाइल फोटो

मनीला: अपनी विस्तारवादी आदतों के लिए मशहूर चीन अब फिलीपिंस को अपने खेमे में लेने की हर संभव कोशिशों में लगा हुआ है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) फिलीपिंस के साथ राजनयिक संबंधों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए तैयार हैं. हालांकि, राष्ट्रपति का झुकाव भले ही चीन की तरफ हो, लेकिन फिलीपिंस की जनता इससे सहमत नहीं है. 

फरवरी में फिलीपिंस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे (Rodrigo Duterte) ने कहा था कि वह अमेरिकी सैनिकों को अपनी जमीन पर उतरने की अनुमति नहीं देंगे और दो दशक पुराने समझौते को खत्म कर देंगे. चीन निश्चित रूप से ऐसे दोस्त को पसंद करता है. अमेरिका के बाहर निकलने का मतलब होगा चीन की एंट्री और यही वह चाहता है. लेकिन अमेरिका फिलीपींस का मुख्य रक्षा सहयोगी भी है और डुटर्टे के जनरल उससे संबंध बिगड़ना नहीं चाहते. खासकर तब जब चीन दक्षिण चीन सागर पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है.

चीन ने फिलीपिंस के लिए कुछ अच्छा नहीं किया
पिछले तीन महीनों में चीन ने फिलीपिंस के लिए कुछ अच्छा नहीं किया है. एक चीनी पोत फिलीपीन की नाव में जा घुसा, जिससे वह विवादित क्षेत्र में डूब गई. इसके अलावा, चीन ने फिलीपींस द्वारा दावा किए गए सात रीफ को कृत्रिम द्वीपों में बदल दिया और उनका सैन्यीकरण किया. इसके बावजूद राष्ट्रपति का झुकाव बीजिंग की तरफ है. उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि बीजिंग एक पसंदीदा आर्थिक भागीदार है. डुटर्टे ने चीन-विरोधी पूर्व राष्ट्रपति बेनिग्नो एक्विनो (Benigno Aquino) से भी कोई सबक नहीं सीखा. जो समुद्री विवाद पर ड्रैगन को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक ले गए थे. डुटर्टे खुद को अमेरिका और चीन के बीच उलझाये हुए हैं. अब, उनकी दक्षिण चीन सागर के एक द्वीप पर हवाई पट्टी को दुरुस्त करने की योजना है.

राष्ट्रपति का झुकाव भले ही चीन की तरफ हो, लेकिन फिलीपिंस की जनता इससे सहमत नहीं है. 2018 में शी जिनपिंग की फिलीपींस यात्रा के दौरान, फिलीपींस के लोगों ने स्पष्ट किया था कि वे चीनी हस्तक्षेप नहीं चाहते, और उन्हें चीनी धन नहीं चाहिए. इस हिस्से में चीन ने बुनियादी ढांचे के लिए किसी तरह का निवेश नहीं किया है, सिवाए दक्षिण चीन सागर के सैन्यीकरण को छोड़कर. इस वजह से डुटर्टे वापस अमेरिका के पास पहुंचे और सैन्य समझौते को रद्द नहीं करने की बात कही. यानी अमेरिकी सेना फिलीपींस में बनी रहेगी. हालांकि, डुटर्टे कब तक अमेरिका के साथ बने रहते हैं यह कहना मुश्किल है. क्योंकि वह काफी हद तक चीनी राष्ट्रपति जैसी सोच रखते हैं. इसलिए बीजिंग के लिए उन्हें समझौते की मेज पर लाना आसान होगा.

डुटर्टे चाहते हैं कि कानून उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप हो, जबकि शी चीन में खुद ही कानून हैं.  गौरतलब है कि 2016 में सत्ता में आने के बाद से रोड्रिगो डुटर्टे का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा रहा है. इस वजह से अमेरिका और फिलीपींस के बीच तल्खी भी बढ़ी है. इसके मद्देनजर अमेरिका ने अपने सैन्य बेस को कहीं और शिफ्ट करने का ऐलान भी कर दिया था, लेकिन देश में चीन के व्यापक विरोध को ध्यान में रखते हुए डुटर्टे को अपने कदम वापस खींचने पड़े. 

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