Bangladesh Crisis: मोदी सरकार पड़ोसी के तौर पर मालदीव की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है. मौजूदा समय में संघर्ष से जूझ रहे बांग्लादेश के लिए भी मालदीव एक संदेश है, क्योंकि गंभीर आर्थिक संकट के समय इन देशों की मदद के लिए केवल भारत ही आगे आया है.
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S. Jaishankar Maldives visit: विदेश मंत्री एस जयशंकर की माले यात्रा के दौरान मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने मीडिया से कहा कि वह अपनी सरकार की विदेश नीति के खिलाफ कुछ भी करने की अनुमति नहीं देंगे. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह मालदीव के हित को प्राथमिकता देने की उसी नीति का पालन कर रहे हैं. राष्ट्रपति मुइजू इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या उनकी सरकार पिछले साल सत्ता में आने के लिए सत्तारूढ़ पीएनसी-पीपीएम गठबंधन द्वारा शुरू किए गए 'इंडिया आउट' अभियान को अनुमति देगी. मालदीव के राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने अपने देश की विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं किया है. यह प्रतिक्रिया मंत्री जयशंकर के मालदीव में दो दिन बिताने और कई परियोजनाओं का शुभारंभ करने के बाद विशेष विमान से भारत के लिए रवाना होने के तुरंत बाद आई.
अचानक क्यों बदल गया मोहम्मद मुइज्जू का दिल?
एस. जयशंकर की यात्रा के दौरान राष्ट्रपति मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू और उनके मंत्री ऐसे पेश आए जैसे कि मुइजू के पिछले 17 नवंबर को शपथ लेने के बाद से दोनों देशों के बीच कोई मनमुटाव नहीं हुआ हो. इस प्रत्यक्ष परिवर्तन के पीछे यह तथ्य है कि मालदीव भयंकर आर्थिक संकट में है और यहां तक कि साम्यवादी चीन भी बिना किसी लाभ के मालदीव को उबार नहीं सकता. तथ्य यह है कि मालदीव को कुछ सौ मिलियन अमरीकी डॉलर के बजटीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें भारत पहले ही मई में एसबीआई को 50 मिलियन अमरीकी डॉलर का भुगतान कर चुका है और सितंबर में 50 मिलियन अमरीकी डॉलर का भुगतान करना है. मालदीव को 2026 में बाजार को लगभग एक बिलियन अमरीकी डॉलर का भुगतान करना है और देश को डिफ़ॉल्ट का सामना करना पड़ रहा है.
क्यों बांग्लादेश के लिए है बड़ा मैसेज?
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार पड़ोसी के तौर पर मालदीव की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है. वहीं, मौजूदा समय में संघर्ष से जूझ रहे बांग्लादेश के लिए भी मालदीव एक संदेश है, क्योंकि गंभीर आर्थिक संकट के समय इन देशों की मदद के लिए केवल भारत ही आगे आया है. ऐसे समय में ना ही चीन आगे आता है और ना ही अमेरिका. पश्चिमी देश भी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाते हैं. यह तब है जब मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू तुर्की, चीन, मध्य पूर्व और चीन से वित्तीय सहायता लेने की कोशिश कर रहे हैं, जो आम तौर पर बाजार दरों पर एक्जिम बैंकों के माध्यम से ऋण देते हैं.
तो क्या मुइजू को समझ आ गई अपनी गलती?
भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग स्थापित करने का राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का निर्णय सत्ता संभालने के पिछले वर्ष के उनके अपने आकलन और इस अहसास से आया है. उनको पता चल गया है कि विकास, सुरक्षा और वित्तीय तनाव के मामले में केवल भारत ही काम कर सकता है. मुइजू के सत्ता संभालने से पहले भारत द्वारा 28 द्वीप परियोजना और ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना शुरू की गई थी. ये विकास परियोजनाएं तैयार होने के कगार पर हैं और ये किसी राजनीतिक दल के हित में ना होकर मालदीव के हित में हैं.
पिछले साल राष्ट्रपति मुइजू ने हिंद महासागर में सक्रिय ड्रग तस्करों, समुद्री डाकुओं और हथियार तस्करों के साथ मालदीव की सुरक्षा आवश्यकताओं को भी महसूस किया है. उन्हें एहसास है कि भारतीय सुरक्षा सहायता के बिना, मालदीव इन ताकतों के सामने असुरक्षित हो जाएगा. अंत में, श्रीलंका की तरह, मालदीव भी वित्तीय तनाव का सामना कर रहा है और भारत बिना किसी दबाव के मदद करने को तैयार है जैसा कि उसने पुनर्भुगतान को आगे बढ़ाकर दिखाया है.
क्या बांग्लादेश को समझ आएगी ये बात?
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को भी जल्द ही एहसास हो जाएगा कि वह विकास, सुरक्षा और वित्तीय तनाव के मोर्चे पर संकट का सामना कर रही है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केवल भारत ही है जो बिना किसी लालच के मदद करने को तैयार है. भले ही बांग्लादेश वर्तमान में राजनीतिक संकट से गुजर रहा है, जिसमें अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग के समर्थकों के नाम पर इस्लामवादी हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि ढाका आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और 2022 में वित्तीय सहायता के लिए उसे श्रीलंका की तरह भारत के पास आना पड़ेगा. नेपाल की भी यही स्थिति होगी, लेकिन उसकी मुद्रा स्थिर भारतीय रुपये से जुड़ी हुई है.