अस्मत जनजाति की आबादी लगभग 65000 बताई जाती है. ये करीब दो-दो हजार की आबादी वाले गांवों में रहते हैं. इस जनजाति को 'हेड हंटर' कहा जाता है. इस जनजाति के ऊपर लिखी गई कई किताबों में दावा किया जाता है कि ये जनजाति नरभक्षी है और इंसान व जानवर के सिर का शिकार करती है.
अस्मत जनजाति के लोगों का मानना है कि वे लकड़ी से उत्पन्न हुए हैं. इसलिए ये लकड़ी को पवित्र मानते हैं. प्राचीन काल में भी वे लकड़ी से अद्भुत चीजें तराशते थे. अस्मत को पाषाण युग का सबसे अच्छा लकड़हारा माना जाता है और उनकी कई नक्काशीदार नक्काशी दुनिया भर के संग्रहालयों में है.
अस्मत जनजाति की बेहद क्रूर प्रथाओं में से एक 'हेड हंटिंग' और नरभक्षण है. अस्मत न केवल खोपड़ियों का शिकार करते हैं, बल्कि उनकी पूजा भी करते हैं. मृतक की खोपड़ी को खाली कर बुरी आत्माओं को शरीर में प्रवेश करने या बाहर निकलने से रोकने के लिए आंखें और नाक के हिस्सों को बंद कर देते हैं. सजाई गई खोपड़ियों को अस्मत द्वारा अपने लंबे घरों में एक सम्मानजनक स्थान पर रखा जाता है.
अस्मत तकिये के बजाय मानव खोपड़ी को अपने सिर के नीचे रखते हैं. वे खोपड़ी से निकाल कर जानवरों के दिमाग को भी खा जाते हैं. ये अपने बच्चों के नामकरण के लिए भी खोपड़ी का शिकार करते हैं. ये मानते हैं कि किसी व्यक्ति को मारकर अगर खा जाएं तो उसकी शक्ति इनके अंदर आ जाती है.
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बेहद पुरानी प्रथा के मुताबिक अस्मत जनजाति के लोग अपने बच्चों का नाम किसी मृतक या मारे गए शत्रु के नाम पर रखते हैं. इसी चक्कर में कई बार तो 10-10 साल तक बच्चे का नामकरण नहीं हो पाता. जब कोई शिकार मिलता है, उसे मारकर खोपड़ी लाई जाती है फिर मारे गए व्यक्ति के नाम पर ही बच्चे का नामकरण होता है.
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