फ्लोरिडा: अमेरिका (US) में हर आठ में से एक दंपति बांझपन (Infertility) का शिकार है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि 30 से 50 फीसदी मामलों में डॉक्टर, पुरुषों में इनफर्टिलिटी की वजह का पता नहीं लगा पाते. इनफर्टिलिटी का पता चलने के बाद कई दंपति एक ही तरह के सवाल पूछते हैं, 'क्या ऐसा होने की वजह काम का बोझ, मानसिक तनाव, फोन और लैपटॉप जैसे प्लास्टिक या फिर खानपान की आदतें तो नहीं हैं.' वहीं आजकल ऐसे मरीज भी हैं जो ये सवाल भी पूछ रहे हैं कि क्या पर्यावरण में मौजूद विषैले पदार्थ प्रजनन क्षमता पर असर डाल रहे हैं? इनफर्टिलिटी के बारे में और कुछ भी जानने से पहले एक बात जाननी बहुत जरूरी है कि ये कोई बीमारी नहीं बल्कि एक समस्या है और मेडिकल साइंस के पास इस समस्या का समाधान भी है.
आजकल पुरुषों में इनफर्टिलिटी (Male Infertility) लेकर सबसे बड़ा सवाल ये पूछ रहे हैं कि क्या पर्यावरण में मौजूद विषैले पदार्थ प्रजनन क्षमता पर असर डाल रहे हैं? दरअसल पुरुषों की घटती प्रजनन क्षमता अमेरिका में तेजी से बढ़ी है. आमतौर पर बांझपन एक साल तक नियमित तौर पर शारीरिक संबंध बनाने के बावजूद गर्भधारण करने की अक्षमता को कहा जाता है. ऐसे मामलों में, डॉक्टर्स इसका पता लगाने के लिए दंपति का आकलन करते हैं.
पुरुषों के लिए, प्रजनन का मूल्यांकन का आधार सीमेन का विश्लेषण होता है वहीं शुक्राणओं का आकलन करने के कई तरीके होते हैं. शुक्राणुओं की संख्या का पता लगाने के बाद कुल गतिशील शुक्राणुओं को देखा जाता है जो तैरने और चलने में सक्षम शुक्राणुओं के अंशों का मूल्यांकन करता है.
इनफर्टिलिटी की समस्या सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं बल्कि पुरुषों के साथ भी होती है. मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक इनफर्टिलिटी के पीछे शिक्षा के साथ-साथ जागरूकता भी एक बड़ी वजह है. यदि कोई कपल उचित समय पर संबंध स्थापित करे तो महिला के गर्भ में बच्चा ठहर सकता है. वहीं महिलाओं और पुरुषों का बिजी शेड्यूल भी इसकी एक बड़ी वजह है. एक निश्चित उम्र के बाद कपल्स में इनफर्टिलिटी की समस्या ज्यादा हो जाती है
भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टरों का कहना है कि मोटापे से लेकर हार्मोन का असंतुलन और आनुवंशिक बीमारियां प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं. कई पुरुषों को इलाज से मदद मिल सकती है. जोखिम के कई कारकों को नियंत्रित करने के बावजूद, पुरुषों की प्रजनन क्षमता कुछ दशकों से तेजी से घट रही है. विभिन्न स्टडी में इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि आज पुरुषों में पहले की तुलना में कम शुक्राणु बन रहे हैं और वे कम सेहतमंद हैं. अब सवाल उठता है कि किस कारण से क्षमता प्रभावित हो रही है.
वैज्ञानिक काफी समय से जानते हैं कि पशुओं में पर्यावरणीय विषैलेपन (Environmental Toxicity) के संपर्क में आने की वजह से उनका हार्मोन संतुलन बिगड़ा जिससे प्रजनन क्षमता प्रभावित हुई. वहीं मनुष्यों में इसका परिणाम जानने के लिए जान-बूझकर उन्हें ऐसे खतरनाक पदार्थों के संपर्क में नहीं रखा गया लेकिन स्थितियों को समझने के लिए उन्होंने वातावरण में मौजूद खतरनाक केमिकल्स पर फोकस किया. हालांकि इस दौरान किसी खास केमिकल की पहचान नहीं हो सकी जिससे ये पता चल सके कि इनफर्टिलिटी के मामले में इसकी कोई भूमिका है.
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
आज के समय में कई केमिकल्स का खुले आम इस्तेमाल हो रहा है. अमेरिका (US) में करीब 80 हजार से ज्यादा केमिकल रजिस्टर्ड हैं. मौजूदा सिस्टम में इनसे होने वाले नुकसान का पता नहीं चलता. सबूत मिलने में अक्सर लंबा वक्त लग जाता है तभी उन्हें मार्केट से हटाया जाता है. रिसर्चर्स का कहना है कि इस विषय में भी जागरूक होना जरूरी है. वहीं इस सिलसिले में यानी Infertility को दूर करने के लिए डॉक्टरों की सलाह लिए बगैर अपनी तरफ से कोई दवा नहीं खानी चाहिए.
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
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