अमित शाह करेंगे केरल के त्रिपुन्निथुरा में रोड शो, जानिए क्या है इसका धार्मिक महत्व

एर्नाकुलम जिले के त्रिपुन्निथुरा स्थित श्री पूर्णनाथ रायसी मंदिर के त्योहार विश्व प्रसिद्ध रहे हैं. यहां का प्रमुख उत्सव वृश्चिकोत्सव रहा है. इसे वृश्चिकोलास्वाम भी कहते हैं. वृश्चिक राशि पर आधारित यह उत्सव हर साल नवंबर-दिसंबर के बीच होता है. किसी समय में यहां कुडलमानिकम् शासन काल में इस उत्सव की अद्भुत छटा दूर-दूर तक फैली थी.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Mar 24, 2021, 10:18 AM IST
  • बुधवार को केरल के त्रिपुन्निथुरा में अमित शाह करने जा रहे हैं रोड शो
  • सदियों की प्राचीनता समेटे है त्रिपुन्निथुरा का श्रीपूर्णनाथ रायसी मंदिर
अमित शाह करेंगे केरल के त्रिपुन्निथुरा में रोड शो, जानिए क्या है इसका धार्मिक महत्व

नई दिल्लीः केरल में आगामी दिनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में वहां भाजपा भी अपनी जमीन तलाशने में जुटी है. बुधवार को इसी सिलसिले में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहुंचेंगे और एक भव्य रोड शो करेंगे. उनका रोड शो एर्नाकुलम शहर के कोट्टाककोम स्थिति त्रिपुन्निथुरा में है. इसी त्रिपुन्निथुरा में स्थित है श्रीपूर्णनाथ रायसी मंदिर.

सदियों-सदियों की प्राचीनता समेटे हुए यह मंदिर आज भी शान से खड़ा है और आस्था व विश्वास के बड़ी प्रतीक के रूप में जाना जाता है. खास बात है कि अमित शाह का रोड शो इसी त्रिपुन्निथुरा में इसी मंदिर से होते हुए गुजरेगा. ऐसे में एर्नाकुलम के इस इलाके और इस प्राचीन मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है. 

त्रिपुन्निथुरा की प्राचीनता और विश्वास की विरासत पर डालते हैं एक नजर-

राजनीतिक रूप से देखें तो एर्नाकुलम के इस इलाके में रोड शो का अमित शाह का फैसला इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि किसी जमाने में त्रिपुन्निथुरा खुद भी राजनीति के केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है. जिस केरल में पहले का साम्राज्य कोच्चि रहा है, उस कोच्चि साम्राज्य की राजधानी होने का गौरव त्रिपुन्निथुरा को प्राप्त था.

कहते हैं कि राजधानी के रूप में इसे भगवान का वरदान प्राप्त था और उनकी कृपा से यह नगर हमेशा ही धन-धान्य से भरा-पूरा रहा. इसकी झलक या कहें की पूर्ण प्रदर्शन श्री पूर्णनाथ रायसी मंदिर के वार्षिक उत्सव में देखने को मिलती थी.

इसमें भारी-भारी सोने के गहनों और अलंकारों से सजे सैकड़ों हाथी पहुंचते थे. यहां विभिन्न कलाओं का प्रदर्शन होता था, साथ ही मेले जैसे माहौल में लोग बड़ी संख्या में जुटा करते थे. 

मंदिर का यह उत्सव राजपरिवार से भी जुड़ा था. इस दौरान ही राज्य के उत्तराधिकारी का चुनाव, उनकी योग्यता का परीक्षण, विद्वानों के शास्त्रार्थ और राजपरिवार के पारिवारिक समारोह भी भगवान पूर्णनाथ की कृपा के तले आयोजित किए जाते थे. 

ऐसा रहा है उत्सव का सौंदर्य
श्री पूर्णनाथ रायसी मंदिर के त्योहार विश्व प्रसिद्ध रहे हैं. यहां का प्रमुख उत्सव वृश्चिकोत्सव रहा है. इसे वृश्चिकोलास्वाम भी कहते हैं. वृश्चिक राशि पर आधारित यह उत्सव हर साल नवंबर-दिसंबर के बीच होता है. किसी समय में यहां कुडलमानिकम् शासन काल में इस उत्सव की अद्भुत छटा दूर-दूर तक फैली थी.

मंदिर के देवता भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है जो यहां संथागोपाल मूर्ति के स्वरूप में स्थापित हैं. 

संतानहीन दंपतियों या फिर जिनके बच्चे डरते या बीमार होते हैं उनके लिए यह मंदिर तीर्थ की तरह है. उत्सव में कांतिका सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है. माना जाता है कि पूर्णिमा के दिन सोने के पात्र से वृश्चिकोत्सवम के दौरान भगवान को अर्घ्य और पूर्णाहुति देने से मनोकामना पूरी होती है. इसके बाद सबसे बड़ा दिन वृश्चिकोत्सवम अनुदान का होता है, जिसमें दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं, ब्राह्मणों और जरूरत मंद लोगों को दान दिया जाता है. इस दिन श्रीपूर्णनाथ रायसी भगवान की सजे हुए हाथियों पर शोभायात्रा निकाली जाती है, जो कि विश्व भर में देखी जाती है. 

अर्जुन और श्रीकृष्ण से जुड़ी है पौराणिक कथा
मंदिर की पौराणिक कथा ब्रह्नवैवर्त पुराण में वर्णित एक प्रसंग से मिलती है, जो कि महाभारत काल का है. कथा के अनुसार द्वापर युग में द्वारिका के बाहरी क्षेत्र में रहने वाले एक ब्राह्मण का पुत्र जन्म लेते ही मर गया.

वह इसका उलाहना देने तब द्वारका के राजा रहे उग्रसेन के पास पहुंचा. दरअसल, तब की व्यवस्था के अनुसार राजा अपनी प्रजा के सुख-दुख के प्रति इतना अधिक उत्तरदायी था कि उनके घरों में हुई किसी प्राकृतिक दुर्घटना के लिए भी प्रजा अपने राजा को दोषी ठहरा सकती थी. 

पहली बार ब्राह्मण को संवेदना और शांति के जरिए समझा कर भेजा गया, लेकिन ब्राह्मण के घर में 9 संतानों ने जन्म लिया और एक-एक करके सभी मृत हो गए. तब वह द्वारका के द्वार पर ही आत्मदाह करने निकल पड़ा. अपने सखा कृष्ण के लिए इस तरह उलाहना का वचन सुनते हुए अर्जुन को क्रोध आया और उसने वचन दिया कि अब ब्राह्मण का पुत्र हुआ तो काल उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.

 

ब्राह्नण ने अर्जुन के वचन से कहना माना, लेकिन इस घटना के एक वर्ष बाद फिर ब्राह्नण को पुत्र हुआ. अर्जुन ने उसकी रक्षा के लिए महादेव का दिया कालनाशी बाण छोड़ दिया, लेकिन आश्चर्य कि आकाश में जाकर बालक और बाण दोनों ही गायब हो गए. कृष्ण जो कि अर्जुन को सबक सिखाना चाहते थे कि वह अपने अस्त्र-शस्त्रों का घमंड छोड़ दे वह मुस्कुरा रहे थे. 

इधर, अपना वार खाली जाता देखकर अर्जुन निराश हुआ और वचन के अनुसार आत्मदाह करने चला. तब श्रीकृष्ण ने उसकी बांह पकड़ ली और फिर योगमाया के जरिए पाताल लोक गए. यहां अर्जुन ने जो दृष्य देखा तो उसकी आंखें फटी रह गईं. सामने भी श्रीकृष्ण और क्षीरसागर में शेषनाग पर लेटे हुए भी श्रीकृष्ण.

अर्जुन को चौंकता देखकर महाविष्णु ने कहा- चौंकों मत पार्थ, मैं, तुम और ये सारी सृष्टि मैं ही हूं. हम सब कर्म से बंधे हुए हैं. इस तरह महाविष्णु ने अर्जुन को पहली बार गीता जैसा ज्ञान दिया. इसके बाद अर्जुन को ब्राह्मण पुत्र को लौटा दिया. इसके साथ ही उन्होंने शेषनाग पर राजमुद्रा में बैठी मूर्ति भी दी. 

यही मूर्ति श्रीपूर्णनाथ रायसी मंदिर की प्रमुख प्रतिमा है, जिसकी पूजा युगों से होती आ रही है. 

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मंदिर के निर्माण की भी अलग कथा
मंदिर का निर्माण भी बहुत अलग तरीके से हुआ. कहा जाता है कि क्षीर सागर से जब अर्जुन मूर्ति लेकर चला तो उसने कहा कि इतनी शीघ्र इस मूर्ति को उचित जगह पर कैसे स्थापित करेंगें. दरअसल मूर्ति स्थापना उचित मुहूर्त में ही होनी थी. तब श्रीकृष्ण और अर्जुन ने श्रीगणेश को याद किया, क्योंकि उनकी गति सबसे तेज थी. श्रीगणेश ने मूर्ति स्थापना के लिए त्रिपुन्निथुरा का स्थान खोजा, लेकिन यह उन्हें इतना पसंद आया कि वह खुद वहां जाकर बैठ गए. 

जब अर्जुन इस तय स्थान पर मूर्ति स्थापना के लिए पहुंचे तो गणेश वहां खुद ही बैठे मिले. उन्होंने जब श्रीगणेश से हटने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया. समय बहुत ही कम होने के कारण अर्जुन ने श्रीगणेश को एक धक्का दिया और मूर्ति का स्थापित कर दिया. गणेश को धक्का देने का नतीजा हुआ कि इस मंदिर में उनका स्थान दक्षिण की ओर बना हुआ है. यह अकेला और अनोखा मंदिर ऐसा है कि जहां श्रीगणेश दक्षिण में स्थापित हैं, जबकि सभी मंदिरों में श्रीगणेश उत्तर या पूर्व में स्थापित होते हैं. 

त्रिपुन्निथुरा को तीन वेदों की धुरी वाला क्षेत्र भी कहा जाता है. कभी इसे विद्वानों की नगरी और सौभाग्य की नगरी भी कहा गया था. कहा जाता था कि जो भी कोई यहां मनोकामना लेकर आया वह खाली हाथ नहीं गया. बुधवार को अमित शाह केरल में भाजपा की जीत की कामना से पहुंच रहे हैं. उनकी मनोकामना त्रिपुन्निथुरा की जमीन से कितनी पूरी होती है, मतगणना का दिन ही बताएगा. 

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