नई दिल्लीः रामायण के घटनाक्रमों में कई कथाएं हैं जो मानव को उनके जीवन के कर्मों की सीख देती हैं. इसमें सबसे बड़ी सीख निष्ठा से कर्तव्य पालन और न्याय की है. दरअसल, लोग अनजान के साथ तो तब भी न्याय कर लेते हैं, लेकिन जैसे ही कोई अपना न्याय के दायरे में आता है तो पक्षपात की संभावना बढ़ जाती है.
श्रीराम-हनुमान की दंत कथा
ऐसी ही एक दंतकथा भक्त शिरोमणि हनुमान और उनके प्रभु श्रीराम के बारे में प्रचलित है. हुआ यूं कि एक बार ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में ऋषियों की कोई सभा थी. उसमें उस समय ऋषि विश्वामित्र समेत कई महर्षि और ब्रह्मर्षि आए थे.
देवताओं के ऋषि नारद भी आए. ठीक इसी समय किसी कार्य से हनुमान भी ऋषि आश्रम पहुंचे और श्रीराम के गुरुओं के रूप में पहले विश्नामित्र और फिर वशिष्ठ को प्रणाम किया.
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ऋषि वशिष्ठ के यहां हुई सभा
देवर्षि नारद ने देखा और फिर चर्चा चल पड़ी. धीरे-धीरे चर्चा का विषय इस ओर मुड़ गया कि राम ज्यादा शक्तिशाली हैं या राम का नाम. सब लोग राम को अधिक शक्तिशाली बता रहे थे और नारद मुनि का कहना था कि राम नाम में ज्यादा ताकत है. नारद मुनि की बात कोई सुन ही नहीं रहा था. हनुमान जी इस चर्चा के दौरान चुपचाप बैठे हुए थे.
नारद ने हनुमान के भरे कान
जब सभा खत्म हुई, तो नारद मुनि ने हनुमान जी से कहा कि ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर वह सभी ऋषि मुनियों को नमस्कार किया करें. हनुमान जी ने पूछा,
“ऋषि विश्वामित्र को नमस्कार क्यों न करूं?” नारद मुनि ने जवाब दिया, “वो पहले राजा हुआ करते थे, इसलिए उन्हें ऋषियों में मत गिनो.”
ऋषि विश्वामित्र हुए क्रोधित
नारद जी कहने पर हनुमान जी ने ऐसा ही किया. हनुमान जी सबको नमस्कार कर चुके थे और उन्होंने विश्वामित्र को नमस्कार नहीं किया. इस बात पर ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो गए. उन्होंने एक दिन श्रीराम से इस बारे में कहा तो राम ने गुरु के अपमान का दंड पूछा. तब ऋषिवर ने कहा-कोई बात नहीं पुत्र, उसे क्षमा कर दो. क्योंकि यह दंड दिया नहीं जा सकता. तब राम ने कहा- आप बताइए, उचित दंड जरूर मिलेगा. ऋषि ने कहा- मृत्युदंड.
हनुमान को सुनाया गया मृत्युदंड
श्रीराम ने दृढ़ निश्चय करके हनुमान को मृत्यु दंड सुना दिया. श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र का आदेश नहीं टाल सकते थे, इसलिए उन्होंने हनुमान को मारने का निश्चय कर लिया. इस तरह उन्होंने न्याय को संबंध से बड़ा बताने का उदाहरण सामने रखा.
सिद्ध हुआ, राम से बड़ा राम का नाम
अब इधर, हनुमान जी ने नारद मुनि से इस संकट का समाधान पूछा. नारद ने कहा, “आप बेफिक्र होकर राम नाम का जाप करना शुरू करें.” हनुमान जी ने ऐसा ही किया. वो आराम से बैठकर राम नाम का जाप करने लगे. श्रीराम ने उन पर अपना धनुष बाण तान दिया. साधारण तीर हनुमान जी का बाल भी बांका न कर सके.
जब हनुमान जी पर श्री राम के तीरों का कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने ब्रह्माण्ड के सबसे शक्तिशाली शस्त्र ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया, लेकिन राम नाम जपते हुए हनुमान पर ब्रह्मास्त्र का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा. बात को बढ़ता देख नारद मुनि ने ऋषि विश्वामित्र से हनुमान जी को क्षमा करने को कहा. तब जाकर विश्वामित्र ने हनुमान जी को क्षमा कर दिया.
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