नई दिल्लीः सनातन परंपरा में प्रसिद्ध चारों धाम के कपाट एक-एक करके खोल दिए गए हैं. यमुनोत्री मंदिर से शुरू हुआ यह सिलसिला मंगलवार को बद्रीनाथ मंदिर (Badarinath Dham) के कपाट खुलने के साथ खत्म हुआ. भगवान बदरीविशाल अपने पावन धाम में श्रद्धालुओं को छह माह तक दर्शन देंगे. हालांकि श्रद्धालु कोरोना काल के कारण दर्शन नहीं कर पाएंगें.
यह धाम जितना पवित्र है, इसके महत्व का इतिहास और पौराणिक कहानियां भी बहुत रोचक हैं. एक-एक करके डालते हैं इन पर नजर-
ऐसे पड़ा बदरीनाथ नाम
प्राचीन काल में धरती पर मानव कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने भक्त स्वरूप में कई हजार वर्षों तक महादेव शिव की तपस्या की थी. इस तपस्या के दौरान उन्हें कोई कष्ट न हो और तपस्या में विघ्न न पड़े इसलिए देवी लक्ष्मी अपना आंचल उनके सिर पर डाले खड़ी रहीं. श्रीविष्णु (Lord Vishnu) शालिग्राम विग्रह में बदल गए और देवी लक्ष्मी बेर का पेड़ बन गईं.
जब तपस्या पूरी हुई तब देवी के इस त्याग पर भगवान विष्णु ने कहा- कि आज से मुझे मेरे नहीं, आपके नाम से जाना जाएगा. संस्कृत में बद्री (बदरी) का अर्थ बेर होता है, इसलिए श्रीहरि बद्रीनाथ (Badarinath Dham) कहलाए.
नीलकंठ पर्वत और बदरीनाथ
बदरीनाथ धाम (Badarinath Dham) शैव और वैष्णव संप्रदाय की एक कड़ी भी है. दरअसल महादेव शिव (Lord Shiv) और विष्णु (Lord vishnu) दोनों एक-दूसरे के भक्त और आराध्य हैं. लेकिन इनके अलग-अलग पंथ भी हैं. जब श्रीहरि ने महादेव की तपस्या की तो उन्होंने प्रकट होकर कहा -आपकी ही ऊर्जा से तो मैं हूं. आप मेरे ही हृदय में हमेशा वास करते हैं.
आज से यह स्थान इसी का प्रतीक बनेगा. दरअसल, बदरीनाथ धाम जिस जगह है वह नीलकंठ पर्वत में ही आता है. पास ही इस पर्वत का दिव्य शिखर दिखता है. नीलकंठ पर्वत महादेव का ही स्वरूप है. इसी पर्वत के हृदय में हैं बदरीनाथ
जब विष्णु ने दिया महादेव को धोखा
इस स्थान (Badarinath Dham) पर पहले महादेव का निवास था. तपस्या के लिए स्थान की खोज के लिए निकले हरि को यह स्थान पसंद आया. लेकिन यह तो उनके आराध्य का निवास है, इसलिए वह इसे नहीं ले सकते थे. तब प्रभु ने एक नन्हें बालक का रूप लेकर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया.
मां पार्वती के मन इससे ममता जाग गई और वह बालक को चुप कराने का प्रयास करने लगीं. तब उन्होंने सोचा कि इसे कुछ खिला कर सुला देंगे तो यह शांत हो जाएगा. भोलेनाथ समझ गए कि यह कौन हैं. उन्होंने मां पार्वती से कहा भी कि आप बालक को छोड़ दें यह खुद ही चला जाएगा,
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इसलिए केदार में निवास करते हैं भोलेनाथ
मां पार्वती नहीं मानी और उसे सुलाने के लिए भीतर लेकर चली गईं. जब बालक सो गया तो मां पार्वती बाहर आ गईं. इसके बाद हरि ने भीतर से दरवाजे को बंद कर लिया और जब भोलेनाथ लौटे तो भगवान विष्णु ने कहा कि यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है. अब आप यहां से केदारनाथ (Kedarnath) जाएं,
मैं इसी स्थान पर अपने भक्तों को दर्शन दूंगा. इस तरह शिवभूमि भगवान विष्णु का धाम बद्रीनाथ (Badarinath Dham) कहलाई और भोले केदारनाथ में निवास करने लगे.
ऐसे स्थापित हुआ मंदिर
यहां स्थापित उनकी मूर्ति शालिग्राम से निर्मित है. इसके बारे में कहा जाता है इसे आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में पास में स्थित नारद कुंड से निकालकर स्थापित किया था. अन्य मंदिरों में श्रीहरि खड़ी मुद्रा में होते हैं. पद्मनाभ स्वामी में वह लेटी अवस्था में हैं, लेकिन इस मंदिर में श्रीहरि पद्मासन अवस्था में हैं.
जब यहां श्रीहरि का धाम बना तो देवर्षि नारद ही प्राचीन काल में यहां पूजा करते थे. श्रीविग्रह उन्हीं का स्थापित किया था. पास बहते गर्म जल की धाराओं वाले कुंड को ही नारद कुंड कहते हैं. वह इसमें स्नान कर भगवान की पूजा करते थे. श्रीहरि के आदेशानुसार ही 6 महीने यहां मानव पूजन करते हैं और 6 मास तक देवता. यही विधि प्राचीन काल से चली आ रही है.
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