नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े सूबे यानी उत्तर प्रदेश में इन दिनों जिन्ना के नाम पर सियासी पारा आसमान छू रहा है. भले ही अखिलेश यादव ने एक खास वर्ग को साधने के लिए जिन्ना की तारीफ की थी, लेकिन अब ऐसा लगा रहा है कि चुनाव से पहले जिन्ना को लेकर उनके उस बयान से भारी नुकसान होने वाला है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो अखिलेश का उनके लिए ही जिन्ना प्रेम सिरदर्द बनता जा रहा है.
वजह नंबर 1). अखिलेश एंड कंपनी को गलती नहीं स्वीकार
भरे मंच से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने खुद का जिन्ना प्रेम जाहिर कर दिया तो सियासत में उबाल आ गया. अखिलेश ने जिन्ना को देश की आजादी का फुल क्रेडिट दे दिया. उन्होंने कहा कि गांधी, पटेल, नेहरू, जिन्ना ने मिलकर आजादी दिलाई. अखिलेश की इस गुस्ताखी पर पूरे सियासी महकमे हो-हल्ला शुरू हो गया. इन सबके बीच जिस पहलू ने अखिलेश को कमजोर किया वो उनके साथियों की करतूत है.
यूपी की राजनीति में इन दिनों चमक-धमक दिखाने वाले नेता ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश के बयान पर ऐसा कह दिया जो शायद देश के किसी भी नागरिक को बर्दाश्त ना हो पाए. उन्होंने कहा कि जिन्ना भारत के पीएम होते तो देश का बंटवारा नहीं होता. मतलब ये कि अखिलेश और उनके साथियों की ये चाहत होती है कि काश हमारे देश के प्रधानमंत्री टू नेशन थ्योरी की मांग रखने वाले जिन्ना होते.
यूपी में कैसे जिंदा हो गया जिन्ना का जिन्न
11 सितंबर 1948... ये वो तारीख है, जब भारत के बंटवारे का विलेन इस दुनिया से चला गया था. इस दिन मोहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु हो गई थी. लेकिन 73 साल बाद जिन्ना फिर से जिंदा हो गया है और वो उत्तर प्रदेश के सियासी मंच पर प्रकट हो गया है. यूपी चुनाव में जिन्ना को लेकर जंग चल रही है. पहले समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने जिन्ना का नाम लिया और कहा कि जिन्ना ने आजादी दिलाई. इसके बाद से सीएम आदित्यनाथ योगी और AIMIM चीफ ओवैसी तक सबने जिन्ना को लेकर राजनीतिक वार पलटवार किए, लेकिन अखिलेश के लिए ये नुकसानदायक ऐसे साबित हो रहा है कि भाजपा ने ये भाप लिया है कि इस मुद्दे को चुनाव में कैसे भुनाना है.
2). बीजेपी ने बनााया चुनाव का बड़ा मुद्दा
यूपी में अब तक शहरों का नाम बदलने वाली बीजेपी ने इस बार अखिलेश यादव का ही नाम बदल दिया. डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने अखिलेश यादव का नाम बदलकर अखिलेश अली जिन्ना कर दिया. इस मसले को तफसील से समझिए..
हुआ कुछ ऐसा कि जिन्ना पर जंग के बीच यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का नाम जुड़ गया है. मौर्य ने तो अखिलेश यादव का नाम ही बदल देने की चाहत जाहिर कर दी है. वो अखिलेश यादव को अखिलेश अली जिन्ना कह कर बुला रहे हैं.
केशव प्रसाद ने कहा, 'अब मैं अखिलेश यादव नहीं कहता हूं अब उन्हें अखिलेश अली जिन्हा कहता हूं । लेकिन वो जो पिछड़ों के नाम पर जो थोड़ी मोड़ी राजनीति की कोशिश कर रहे हैं उसे अवसरवादिता कहा जाता हैस लेकिन मैं ये विश्वास रखता हूं पिछड़ा ना तो उनके साथ 2014 से गया है ना ही 2022 के बाद जाएगा.'
BJP इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती है. जहां केशव प्रसाद ने सपा के मुखिया की चुटकी ली, तो वहीं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने ये कह दिया कि चुनाव आते ही कुछ लोग जिन्ना का नाम रटने लगते हैं.
इसके अलावा भाजपा के अमित मालवीय ने कहा था कि पाकिस्तान बनाने वाले जिन्ना को अखिलेश अब्बा मान बैठे हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी इस मुद्दे पर अखिलेश को कहा था कि जिन्ना को महिमामंडित करने वाले देश से माफी मांगें. यूपी में अखिलेश यादव अपनी रैलियों में मुख्यमंत्री योगी पर सीधे हमले कर रहे हैं. आज सीएम योगी ने चंदौली से इसका जवाब दिया. योगी ने कहा कि अखिलेश यादव परिवार की भाषा नहीं जानते हैं, इसीलिये ऐसे आरोप लगाते हैं.
मतलब साफ है बीजेपी ने मूड बना लिया है कि इस मसले को वो चुनाव का बड़ा मुद्दा बनाकर अखिलेश की किरकिरी करेगी.
3). जिन्ना से समाजवादी प्रेम का पब्लिक पर असर
सबसे पहले ये जानना होगा कि कौन था मोहम्मद अली जिन्ना? आपको बता दें, यदि जिन्ना को भारत विभाजन का मुख्य खलनायक कहा जाए तो गलत नहीं होगा. उन्होंने ही टू नेशन थ्योरी पर पाकिस्तान मांगा. जिन्ना को ही आजादी के बाद दंगों का जिम्मेदार माना जाता है. कश्मीर पर पहले हमले का जिम्मेदार जिन्ना ही था. जिन्ना पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल थे. जिन्ना को पाकिस्तान में कायदे-आजम का दर्जा प्राप्त है.
इससे ये समझा जा सकता है कि यदि समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव जिन्ना प्रेम जाहिर करेंगे तो आमजन पर इसका क्या असर पड़ेगा. हां, ये बात अलग है कि देश की खाने और पाकिस्तान की गाने वालों को अखिलेश पसंद भी आएंगे. पाकिस्तान की जीत पर भारत में पटाखे फोड़ने वालों के लिए अखिलेश से अच्छा कोई नहीं होगा.
सवाल है कि आखिर यूपी चुनाव में जिन्ना का जाप क्यों हो रहा है. यूपी में करीब 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं तो क्या जिन्ना पर जंग इस वोट बैंक की वजह से हो रही है. सवाल ये भी है जिन्ना का नाम किस पार्टी का खेल बनाएगा और किसका बिगाड़ेगा.
यूपी में ये पहली बार नहीं है, जब नेताओं को जिन्ना की याद आई हो. लेकिन हैरत की बात ये है कि जिन्ना का जिन्न चुनाव के वक्त ही बोतल से बाहर आता है और चुनाव असली मुद्दों से भटक जाता है.
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