चुनाव के पहले क्यों जरूरी है आचार संहिता, समझिए सरल भाषा में

देश की राजधानी दिल्ली में अब आधिकारिक तौर पर चुनाव की घोषणा कर दी गई है. 8 फरवरी को सभी 70 सीटों पर चुनाव कराने की तैयारी में चुनाव आयोग लग गई है. इसके साथ ही दिल्ली में आचार संहिता लागू कर दिया गया है, जिसका मतलब क्या है और क्यों लागू किया जाता है, हम आपको बताते हैं. 

Written by - Satyam Dubey | Last Updated : Jan 7, 2020, 01:54 AM IST
    • आचार संहिता के दौरान सरकार पर लगाई जाने वाली पाबंदी
    • चुनाव आयोग की चुनाव में क्या हैं मुख्य जिम्मेदारियां
    • चुनाव के दौरान किए जाते हैं सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतेजाम
    • राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को सौंपनी होती है ये जानकारी
चुनाव के पहले क्यों जरूरी है आचार संहिता, समझिए सरल भाषा में

नई दिल्ली: चुनाव आयोग की ओर से चुनाव की तिथि घोषित करने के साथ ही उस जगह पर आचार संहिता को लागू कर दिया जाता है. आचार संहिता लागू करने का मतलब होता है कि उस जगह पर सरकार अब कोई नई नीति नहीं लाएगी ना ही उन्हें लागू किया जाएगा. पहले से जो प्रोजेक्ट या नीतियां सक्रिय हैं, उनके विकास का काम सरकारी बाबुओं और निवर्तमान सरकार की मदद से चलती रहेगी.

8 फरवरी को दिल्ली में वोटिंग होगी और 11 फरवरी यानी तीन दिन बाद यह तय हो जाएगा कि दिल्ली का अगला सीएम कौन होगा. इस बीच केजरीवाल सरकार किसी भी तरह के नए नीतियों पर काम नहीं करेगी.

आचार संहिता के दौरान सरकार पर लगाई जाने वाली पाबंदी

कहा जाता है कि "इलेक्शन शुड बी फ्री एंड फेयर" यानी कि चुनाव स्वतंत्र रूप से और सबकी क्षमता के अनुसार कम से कम खर्च में हो जाने चाहिए. इसका एक मतलब यह भी है कि मतदाता मालिक के सामने जो भी उम्मीदवार हो, उसे बराबर का मौका मिले कि वह अपनी बातें और अपनी नीतियों को लोगों के सामने रख सके.

इसके साथ ही सभी राजनीतिक दलों को यह समान अवसर मिले कि वह चुनाव में प्रचार और अभियान चला सके. राजनीतिक दलों के बीच खींचतान न हो इसकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है.

चुनाव आयोग की चुनाव में क्या हैं मुख्य जिम्मेदारियां

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत भारतीय चुनाव आयोग को यह हक दिया गया है कि वह देश के किसी भी भाग में चुनाव का सर्विलांस, निर्देशन और उसपर कंट्रोल को अपने हिसाब से तय करे.

चुनाव आयोग इसके अलावा यह भी तय करता है कि किस उम्मीदवार को कितने रुपए तक चुनावों में खर्च करने हैं, किसे टीवी, रेडियो या फिर अन्य किसी भी माध्यम पर प्रचार करने का कितना समय दिया जाएगा ताकि वह किसी भी सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न कर सके. 

चुनाव के दौरान किए जाते हैं सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतेजाम

इसके अलावा चुनाव आयोग की यह भी जिम्मेदारी होती है कि वह दलों के बीच के झगड़े का निपटारा, अभियान को निष्पक्ष तरीके से चलाया जा रहा या नहीं और सत्ताधारी पार्टी किसी तरह से चुनाव में अनुचित लाभ लेने के लिए सरकारी मशीनरियों का तो इस्तेमाल नहीं कर रही, यह सब भी देखते रहे.

इसके अलावा बूथों पर प्रिजाइडिंग ऑफिसर से लेकर चुनावी क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था तक के कड़े इंतेजामात की पूरी जिम्मेदारी चुनाव आयोग के कंधे पर होती है जो आचार संहिता के दौरान ही तय की जाती है ताकि किसी वजह से यह बाधित न हो जाए.

राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को सौंपनी होती है ये जानकारी

इसके अलावा सभी पार्टयों से लेकर सभी उम्मीदवारों को अपनी संपत्ति से जुड़ी और अपनी निजी जानकारी जैसे की उम्मीदवार पर कोर्ट में कोई मामला चल रहा है कि नहीं या उनकी आय का स्त्रोत क्या है, यह सब जानकारियां साझा करनी होती है.

इसके बाद चुनाव आयोग उन जानकारियों को क्रॉसचेक करती है. चुनाव के लिए कुछ मानक तैयार किए जाते हैं कि पोस्टर, बैनर, भाषण, नारे या सभाएं किसी भी तरह से नियमों और दिशा निरदेशों का उल्लंघन तो नहीं कर रही हैं. 

देश में पहली बार आचार संहिता 1962 के लोसभा चुनाव में लागू किया गया जिसमें सभी राजनीतिक दलों को जो चुनाव में उतरी थीं, शामिल किया गया. यह पहला प्रयोग था जिसके सफल होने के बाद बाद के चुनावों से ही लगातार इसे हर चुनाव से पहले लागू किया जाता है. 

 

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